आर्थिक सलाहकार रह चुके अरविंद सुब्रह्मण्यन ने दावा किया था कि भारत ने 2011-12 से 2016-17 के बीच जीडीपी ग्रोथ रेट को करीब 2.5 परसेंट ज्यादा आंका है. अब इस दावे के हर पॉइंट का जवाब प्रधानमंत्री इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल ( PMEAC ) के सदस्य विवेक देबरॉय ने दिया है.
अरविंद सुब्रह्मण्यन ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट 'India's GDP Mis-estimation: Likelihood, Magnitudes, Mechanisms, and Implications' में दावा किया था कि भारत ने 2011-12 से 2016-17 के बीच जीडीपी ग्रोथ रेट के आंकड़े को करीब 2.5 परसेंट बढ़ाकर दिखाया.
देबरॉय के सुब्रह्मण्यन ने जीडीपी के आंकड़े पर संदेह करते हुए, जिन 17 इंडिकेटर्स का इस्तेमाल किया, उनमें से ज्यादातर इंडिकेटर्स प्राइवेट एजेंसी, सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) के थे. ये संस्था प्राइमरी डाटा का इस्तेमाल नहीं करती. CMIE अपने डाटा के लिए दूसरे सोर्स पर निर्भर करती है.
इन 17 इंडिकेटर्स और 2001-02 से 2016-17 के बीच ग्रोथ के आकंड़े के संबंधों के सुब्रह्मण्यन के तर्क पर भी काउंसिल ने सवाल खड़े किए.
उन्होंने इन इंडिकेटर्स और जीडीपी ग्रोथ के आकंड़े में संबंध होने के दावों को प्रमाणित नहीं किया है. साथ ही उन इंडिकेटर्स के बारे में भी नहीं बताया जो जीडीपी आंकड़ों से ज्यादा मजबूती से जुड़े हैं.विवेक देबरॉय, PMEAC
फिर लेखक ने भारत की तुलना 70 और देशों से की. इसलिए लेखक के ही मुताबिक चला जाए तो अगर भारत के जीडीपी आंकड़ों में दिक्कत है तो उनकी तुलना बाकी देशों से कैसी की जा सकती है.
काउंसिल ने इसका जवाब देते हुए कहा है कि भारत का जीडीपी मापने का तरीका इन देशों से अलग है, इसका मतलब ये नहीं है कि हमारे आंकड़े गलत हैं.
काउंसिल के मुताबिक सुब्रह्मण्यन के रिसर्च पेपर में केंद्रीय सांख्यिकी विभाग के प्रति पक्षपाती रवैया है.
विवेक देबरॉय के मुताबिक सुब्रह्मण्यन ने काफी जल्दबाजी दिखाते हुए भारत के जटिल अर्थतंत्र को आंकने की कोशिश की है. देबरॉय के अलावा PMEAC में रथिन रॉय, सुरजीत भल्ला, चरण सिंह और अरविंद वीरमानी शामिल हैं.
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