हर साल संसद में पेश होने वाले केंद्रीय बजट पर बड़ी तादाद में लोगों की निगाहें लगी होती हैं. इनमें कॉरपोरेट, बिजनेसमैन, किसान और नौकरीपेशा से लेकर आम आदमी तक शामिल होते हैं. आखिर बजट के प्रावधानों का असर देश और समाज के हर तबके पर पड़ता है. लेकिन वित्त मंत्री का बजट भाषण सुनने के पहले अगर इससे जुड़ी कुछ बातों को जान लिया जाए तो बजट को समझना थोड़ा आसान हो सकता है.
2 हिस्सों में होता है बजट भाषण- ए और बी
बजट भाषण के दो हिस्से होते हैं- पार्ट ए और बी. बजट भाषण के पार्ट ए में देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति की समीक्षा होती है, साथ ही अगले वित्त वर्ष के बजट अनुमान भी जताए जाते हैं. इसी में बताया जाता है कि अलग-अलग सेक्टरों के लिए सरकारी खर्च का फ्रेमवर्क क्या होगा, कौन-कौन सी नई स्कीमें लाई जाएंगी और सरकार अगले वित्त वर्ष में किन क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान देगी. पार्ट ए में ही बताया जाता है कि वित्तीय घाटे की क्या स्थिति है और सरकार टैक्स या उधारी के जरिए कितनी रकम जुटाने का इरादा रखती है.
वित्तीय घाटा
जब वित्तीय घाटे का जिक्र आ गया है तो इसे भी समझ लेते हैं. हर बजट सीजन में फिस्कल डेफिसिट या वित्तीय घाटा चर्चा में होता है. और, हर बजट में ये वित्तीय घाटा नई चुनौती लेकर आता रहता है. आखिर होता क्या है वित्तीय घाटा?
सरकार के कुल राजस्व और कुल खर्च का अंतर ही वित्तीय घाटा कहलाता है. स्वाभाविक तौर पर अगर सरकार का खर्च उसके राजस्व की वसूली से ज्यादा है तो सरकार को इसकी भरपाई के लिए कर्ज लेना होगा. इसलिए सरकार की कोशिश होती है कि वो वित्तीय घाटे को कम से कम रखे, ताकि उसे कम से कम कर्ज लेने की जरूरत पड़े. यही कर्ज कहलाता है सरकारी उधारी.
सरकारी उधारी
केंद्र सरकार के खर्च जब उसके राजस्व से ज्यादा होते हैं तो उसकी भरपाई के लिए सरकार को उधार लेने की जरूरत होती है. सरकार ये उधारी तीन स्रोतों से हासिल करती है- नई मुद्रा छापकर, घरेलू स्रोतों से और विदेशी स्रोतों से. नई मुद्रा छापकर उधार लेने का तरीका सबसे कम इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इससे देश में महंगाई दर बढ़ जाती है और चीजों और सेवाओं की कीमत ज्यादा हो जाती है. घरेलू स्रोतों से उधार का मतलब है रिजर्व बैंक से या कमर्शियल बैंकों से कर्ज लेना. इसके लिए सरकार कई तरह के बॉन्ड जारी करती है, जिन्हें आम जनता, बैंक या दूसरे वित्तीय संस्थान खरीद सकते हैं. विदेशी स्रोतों से अगर सरकार को उधार लेना होता है तो वो विश्व बैंक, आईएमएफ, एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसे संस्थानों का रुख करती है.
बजट भाषण का पार्ट बी
वैसे, सरकार की कमाई का सबसे बड़ा स्रोत हैं टैक्स, जिनके बारे में हम बाद में चर्चा करेंगे. फिलहाल चलते हैं बजट भाषण के पार्ट बी की तरफ. बजट भाषण के पार्ट बी में अगले वित्त वर्ष के लिए सरकार के टैक्स प्रस्तावों का खुलासा किया जाता है. इसी से पता चलता है कि आम जनता के लिए अगले साल टैक्स की देनदारी घटेगी या बढ़ेगी.
इसमें सरकार के अलग-अलग विकास कार्यों की प्रगति और आने वाली नीतियों के बारे में भी जानकारी दी जाती है. पार्ट बी के भाषण के अंत में वित्त मंत्री एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट या वार्षिक वित्तीय विवरण पेश करते हैं.
एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट
ये तीन हिस्सों में बंटा होता है- कंसोलिडेटेड फंड, कंटिन्जेंसी फंड और पब्लिक एकाउंट. इन तीनों फंड्स के लिए सरकार रिसीट और एक्सपेंडिचर स्टेटमेंट जारी करती है.
कंसोलिडेटेड फंड-
इसे समेकित निधि कहा जाता है और ये सबसे महत्वपूर्ण सरकारी फंड है. सरकार को मिलने वाला सारा राजस्व, उधार की राशि या सरकारी कर्जों पर मिला ब्याज, सब कुछ इसी फंड में जाता है. और, आमतौर पर सरकार के सभी खर्चे इसी फंड से किए जाते हैं.
खास हालातों में कंटिन्जेंसी फंड या पब्लिक एकाउंट में से सरकार खर्च करती है. कंसोलिडेटेड फंड में से कोई भी रकम बिना संसद की मंजूरी के नहीं निकाला जा सकता.
कंटिन्जेंसी फंड-
इसे आकस्मिकता निधि कहा जाता है और इस फंड का इस्तेमाल अचानक या इमरजेंसी के खर्चों के लिए होता है. हालांकि इस खर्च के लिए भी बाद में संसद से मंजूरी लेनी होती है और साथ ही जितनी रकम निकाली जाती है, उसे कंसोलिडेटेड फंड में से लौटाना भी होता है.
पब्लिक एकाउंट-
इस फंड में वो सारे पैसे आते हैं, जो सरकार को एक बैंकर के तौर पर मिलते हैं. जैसे प्रोविडेंट फंड, छोटी बचत योजनाओं से मिली रकम. सरकार इसमें से भी अपने खर्चों के लिए पैसे निकाल सकती है और इसके लिए संसद की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होती. लेकिन ये याद रखें कि ये पैसा सरकार का नहीं होता क्योंकि इसे उसके इन्वेस्टर को लौटाना होता है. इसलिए सरकार इस फंड यानी पब्लिक एकाउंट में से एक सीमा तक ही पैसे निकालती है.
(लेखक धीरज कुमार अग्रवाल एक मीडिया प्रोफेशनल हैं और वेल्दी एंडवाइज (Wealthy & Wise) के नाम सेफाइनेंशियल एजुकेशन पॉडकास्ट चलाते हैं.)
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