क्विंट हिंदी आपके लिए लाया है स्पेशल सीरीज बजट की ABCD, जिसमें हम आपको बजट से जुड़े कठिन शब्दों को आसान भाषा में समझा रहे हैं... इस सीरीज में आज हम आपको ‘फिस्कल डेफिसिट’ यानी वित्तीय घाटे का मतलब समझा रहे हैं.
क्या होता है वित्तीय घाटा?
हर बजट की आहट के साथ दो शब्दों का ये मेल हर आर्थिक अखबार की सुर्खियों में जगह पाने लगता है- फिस्कल डेफिसिट या वित्तीय घाटा. हर बार ये चर्चा होती है कि केंद्र सरकार अपने वित्तीय घाटे को काबू में रखने की कोशिश करेगी, वित्तीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने की कोशिश करेगी और हर बजट में बार-बार ये वित्तीय घाटा नई चुनौती लेकर आता रहता है.
स्वाभाविक तौर पर अगर सरकार का खर्च उसके राजस्व की वसूली से ज्यादा है तो सरकार को इसकी भरपाई के लिए कर्ज लेना होगा. इसलिए सरकार की कोशिश होती है कि वो वित्तीय घाटे को कम से कम रखे, ताकि उसे कम से कम कर्ज लेने की जरूरत पड़े.
सरकार वित्तीय घाटे की भरपाई के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से कर्ज लेती है या फिर ट्रेजरी बिल्स और बॉन्ड्स जारी कर कैपिटल मार्केट से पैसे उठाती है.
कितना नुकसानदेह है वित्तीय घाटा?
भारत जैसे विकासशील देशों में सरकारों को अक्सर विकास कार्यों के लिए बड़े खर्च करने की जरूरत होती है और कई बार इस खर्च की पूर्ति राजस्व से नहीं हो पाती. इसलिए सरकार को वित्तीय घाटा झेलना पड़ता है. लेकिन कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि एक सीमा तक वित्तीय घाटा अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता बल्कि फायदा ही देता है. शर्त ये है कि सरकार का ज्यादा खर्च इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट और एसेट क्रिएशन के लिए हो.
माना जाता है कि सरकार का वित्तीय घाटा जीडीपी के 4 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ना चाहिए. वित्तीय घाटा ज्यादा होने से कई तरह की दिक्कतें अर्थव्यवस्था के सामने आ जाती हैं, जिनमें नेशनल सेविंग्स रेट का कम होना, टैक्स का बोझ बढ़ना, व्यापार घाटे में बढ़ोतरी और ब्याज दरों में बढ़ोतरी होना शामिल हैं.
क्या है भारत सरकार का फिस्कल डेफिसिट टार्गेट
फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट की सिफारिशों के मुताबिक केंद्र सरकार को 31 मार्च 2020 तक वित्तीय घाटे को कम करके जीडीपी के 3 फीसदी तक लाना है, वहीं 2020-21 तक इसे 2.8 फीसदी और 2022-23 तक 2.5 फीसदी तक करने का लक्ष्य है. लेकिन सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए वित्तीय घाटे का लक्ष्य 3.4 फीसदी रखा था.
ये लक्ष्य हासिल हुआ या नहीं, इसका खुलासा बजट में हो जाएगा, लेकिन पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार ने अपना वित्तीय घाटा आमतौर पर तय किए गए लक्ष्य के आसपास रखने में कामयाबी हासिल की है.
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