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सरकार लेती है ज्यादा उधार तो आपका भी होता है बंटाधार

सरकारी उधारी में बढ़ोतरी आमतौर पर कैपिटल मार्केट के लिए नकारात्मक होती है

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क्विंट हिंदी आपके लिए लाया है स्पेशल सीरीज बजट की ABCD, जिसमें हम आपको बजट से जुड़े कठिन शब्दों को आसान भाषा में समझा रहे हैं... इस सीरीज में आज हम आपको ‘सरकारी उधार’ यानी ‘गवर्मेंट बौरोइंग’ का मतलब समझा रहे हैं.

केंद्र सरकार के खर्च जब उसके राजस्व से ज्यादा होते हैं तो उसकी भरपाई के लिए सरकार को उधार लेने की जरूरत होती है. सरकार ये उधारी तीन स्रोतों से हासिल करती है- नई मुद्रा छापकर, घरेलू स्रोतों से और विदेशी स्रोतों से.

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नई मुद्रा छापकर उधार लेने का तरीका सबसे कम इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इससे देश में महंगाई दर बढ़ जाती है और चीजों और सेवाओं की कीमत ज्यादा हो जाती है. घरेलू स्रोतों से उधार का मतलब है रिजर्व बैंक से या कमर्शियल बैंकों से कर्ज लेना. इसके लिए सरकार कई तरह के बॉन्ड जारी करती है, जिन्हें आम जनता, बैंक या दूसरे वित्तीय संस्थान खरीद सकते हैं. विदेशी स्रोतों से अगर सरकार को उधार लेना होता है तो वो विश्व बैंक, आईएमएफ, एशियन डेवलपमेंट बैंक जैसे संस्थानों का रुख करती है. 

सरकार को कई बार विकास कार्यों के लिए या सामाजिक योजनाओं के लिए उधार लेने की आवश्यकता पड़ती है. लेकिन स्वाभाविक तौर पर इस उधार का असर ब्याज भुगतान के दबाव के रूप में सरकारी खजाने पर पड़ता है, इसलिए सरकारी उधारी में बढ़ोतरी आमतौर पर कैपिटल मार्केट के लिए नकारात्मक होती है.

वित्त वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में केंद्र सरकार ने 4.42 लाख करोड़ रुपए की उधारी लेने की योजना बनाई थी. अंतरिम बजट में सरकार ने 2019-20 के लिए 7.1 लाख करोड़ की ग्रॉस मार्केट बॉरोइंग और 4.73 लाख करोड़ रुपए की नेट मार्केट बॉरोइंग का अनुमान जताया था. वित्त वर्ष 2019-20 के लिए ग्रॉस बॉरोइंग का स्तर पिछले 9 साल का सबसे ऊंचा स्तर है. पिछले कारोबारी साल यानी 2018-19 में भारत की ग्रॉस बॉरोइंग 5.71 लाख करोड़ रुपए थी. 

गौरतलब है कि भारत सरकार अपनी कुल आय का 18 से 19% हिस्सा केवल ऋण भुगतान के रूप में खर्च करती है. अर्थशास्त्री विकास दर को बढ़ाने के लिए भी एक सीमा से ज्यादा सरकारी खर्च की सलाह नहीं देते, क्योंकि अगर सरकार बाजार से उधार लेकर खर्च करती है तो भले ही अर्थव्यवस्था में सरकारी निवेश बढ़ रहा हो, निजी निवेश पर बुरा असर पड़ने लगता है.

सरकार की कोशिश अपनी उधारी पर नियंत्रण रखना होना चाहिए, ताकि निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए बाजार में पूंजी की उपलब्धता बनी रहे, और ब्याज दरों में नरमी रहे.

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