ADVERTISEMENTREMOVE AD

बजट 2023: "पैदा हो सकती हैं लाखों नौकरियां लेकिन एक शर्त है..."- राघव बहल

द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल ने समझाया है कि कैसे सरकारी पूंजीगत खर्च से कम वेतन वाली नौकरियां पैदा होती हैं

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी को संसद में केंद्रीय बजट (Budget 2023) पेश किया और इसे आम जनता का बजट बताया, जिसमें इनकम टैक्स स्लैब में महत्वपूर्ण बदलाव के साथ-साथ महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए रियायतों की बात की गईं. हालांकि विपक्ष ने यह आरोप लगाया कि वित्त मंत्री के बजट भाषण ने एक बार भी 'बेरोजगारी' शब्द का जिक्र नहीं था और सरकार ने बजट में स्पष्ट तौर पर रोजगार सृजन के लिए कोई नई योजना या प्रावधान नहीं किया है. ऐसे में द क्विंट के 'डिकोडिंग बजट विद राघव बहल' के सेशन में द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल ने समझाया कि कैसे भारत सरकारी पूंजीगत खर्च के माध्यम से कम वेतन वाली नौकरियां पैदा कर सकता है?

"पूंजीगत खर्च से कम वेतन वाली नौकरियां पैदा होती हैं"

एडिटर इन चीफ राघव बहल के अनुसार सरकार आमतौर पर हाई टेक्नोलॉजी या नवाचार से जुड़े सेक्टर में खर्च नहीं करती है बल्कि वो सार्वजनिक संपत्ति तैयार करने में बड़े स्तर पर खर्च करती है. जैसे रोड या एयरपोर्ट.

द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल ने समझाया है कि कैसे सरकारी पूंजीगत खर्च से कम वेतन वाली नौकरियां पैदा होती हैं
"ऐसे सार्वजनिक संपत्ति को तैयार करने में बड़े स्तर पर निर्माण का काम होता है. सार्वजनिक संपत्तियों के निर्माण के लिए लेबर चाहिए. देश के अंदर निर्माण श्रम गहन क्षेत्र है. निर्माण जैसे सेक्टर को बूस्ट मिलता है तो बड़ी संख्या में कम आय वाली नौकरियां पैदा होती हैं"
राघव बहल, द क्विंट के एडिटर इन चीफ
द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल ने समझाया है कि कैसे सरकारी पूंजीगत खर्च से कम वेतन वाली नौकरियां पैदा होती हैं

राघव बहल के अनुसार सार्वजनिक संपत्ति को तैयार करने के लिए होने वाला निर्माण कार्य दूसरे सेक्टर में भी रोजगार पैदा करता है. उन्होंने कहा कि "निर्माण होता है तो संबंधित सेक्टरों जैसे सीमेंट, स्टील, कोल सेक्टर में भी नौकरियां पैदा होती हैं''

द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल ने समझाया है कि कैसे सरकारी पूंजीगत खर्च से कम वेतन वाली नौकरियां पैदा होती हैं

उन्होंने यह भी बताया कि "इस प्रक्रिया में नए रोजगार पाने वाले लोग आमदनी होने पर खर्च करते हैं और वापस इससे अर्थव्यवस्था को बल मिलता है. मतलब सार्वजनिक संपत्तियों के निर्माण से बाकी सेक्टरों को भी फायदा होता है.''

राघव बहल के अनुसार निजी निवेश और कम निजी खपत हमारी अर्थव्यवस्था के कमजोर पहलू हैं और इन्हीं दोनों की वजह से पिछले 4-5 साल में हमारी अर्थव्यवस्था में विकास दर तुलनात्मक रूप से धीमी रही है.

द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल ने समझाया है कि कैसे सरकारी पूंजीगत खर्च से कम वेतन वाली नौकरियां पैदा होती हैं
"सरकारी पूंजीगत खर्च सकारात्मक कदम है. याद रहे कि वित्तीय घाटा 5.9% है और जीडीपी का 4.5% प्रभावी पूंजी निर्माण (effective capital formation) है. यानी भले ही सरकार कमाई से 5.9% ज्यादा उधार लेकर खर्च कर रही है लेकिन उसमें से 4.5% पूंजी निर्माण में खर्च हो रहा. यानी सरकार के पूंजीगत खर्च की क्वॉलिटी में भी सुधार हुआ है.
राघव बहल, द क्विंट के एडिटर इन चीफ

हालांकि सरकार द्वारा बड़े स्तर पर पूंजीगत खर्च के दूसरे पहलू के बारे में बात करते हुए राघव बहल ने बताया कि सरकार के सामने भ्रष्टाचार रहित और पारदर्शी व्यवस्था के निर्माण की चुनौती है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

0
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×