फ्लिपकार्ट के ढेरों कर्मचारी भी करोड़पति बनेंगे क्योंकि वॉलमार्ट से मिली रकम उनमें भी बंटेगी. इससे ये तो साफ है कि बिजनेस करके करोड़पति बनने की भले ही गारंटी न हो, लेकिन नए जमाने की कई कंपनियां ऐसी भी हैं जिसमें नौकरी करने वालों की ये गारंटी तो जरूर है. अब बताइए रिस्कफ्री करोड़पति बनने का इससे बेहतर शॉर्टकट कहां मिलेगा.
ऑनलाइन कंपनी फ्लिपकार्ट में नौकरी करने वाले बहुत से लोग किस्मत को धन्यवाद दे रहे हैं कि उन्हें कंपनी में नौकरी मिली. क्योंकि इनमें से अब कई लोग कम उम्र में ही करोड़पति भी बन बैठे.
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हालांकि, कर्मचारियों को करोड़पति बनाने वालों में फ्लिपकार्ट अकेली या अनोखी नहीं है. इससे पहले इंफोसिस ने शुरुआत की और पेटीएम जैसी कंपनी ने आगे बढ़ाया.
नए जमाने के कारोबारी
खुद कमाएंगे और साथी कर्मचारियों को भी इसका मौका देंगे. इंटरनेट, सॉफ्टवेयर से जुड़ी बिजनेस की नई दुनिया की अब तो यही फिलॉसफी है. ध्यान रखिए, ट्रेडिशनल भारतीय उद्योग घरानों से इसकी उम्मीद मत रखिएगा, नए जमाने के नए बिजनेसमैन और स्टार्टअप ही ऐसी दिलेरी से कमाई का बंटवारा कर सकते हैं.
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कर्मचारियों को मिलेंगे करोड़ों
वॉलमार्ट से फ्लिपकार्ट को जो रकम मिलेगी उसमें मालिक तो मालिक कर्मचारियों का भी हिस्सा होगा, मतलब उनके अकाउंट में भी भर-भर कर रकम आएगी.
30 साल से कम वाले भी बनेंगे करोड़पति
फ्लिपकार्ट को वॉलमार्ट ने 16 अरब डॉलर में खरीदा है. इसमें उन शेयरों को भी खरीदा जाएगा जो फ्लिपकार्ट के कर्मचारियों के पास हैं. इसे खरीदने के लिए बड़ी रकम एक तरफ रख दी गई है.
फॉर्मूले के हिसाब से कर्मचारियों से 10,000 रुपए प्रति शेयर के हिसाब से हिस्सा खरीदा जाएगा. करोड़पति बनने वाले बहुत से पूर्व कर्मचारी भी होंगे.
3000 कर्मचारियों पर बरसेगा रुपया
फ्लिपकार्ट के 100 मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों के पास ही करीब 65 करोड़ रुपए के शेयर हैं. कंपनी के 7000 कर्मचारियों में एक चौथाई से ज्यादा के पास कंपनी के शेयर हैं. सीनियर वाइस प्रेसिडेंट या उससे ऊपर के करीब 20 कर्मचारी तो सिर्फ शेयर बेचकर ही करोड़पति हो जाएंगे.
फ्लिपकार्टके फाउंडर सचिन बंसल को उनके 5.5 परसेंट हिस्से की कीमत के बदले में 1 अरब डॉलर यानी करीब 6700 करोड़ रुपए मिलेंगे. दूसरे फाउंडर बिन्नी बंसल अपनी करीब 1% हिस्सेदारी बेचेंगे जिससे उन्हें 10.4 करोड़ डॉलर (करीब 700 करोड़ रुपए) मिलेंगे. फिर भी उनके पास 4.24 परसेंट हिस्सेदारी रह जाएगी जो करीब 5900 करोड़ रुपए की होगी.
धन की बारिश करने वाली दूसरी कंपनियां
कर्मचारियों को दिल खोलकर पैसा देने के मामले में नए जमाने की ही कंपनियां हैं. सीमेंट, टेक्सटाइल, पेट्रोकैमिकल या दवा बनाने वाली कंपनियां कमाई का हिस्सा कर्मचारियों में नहीं बांटती वो सिर्फ सैलरी देती हैं.
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कर्मचारियों को करोड़पति बनाने वाली दूसरी कंपनियां
इंफोसिस
इंफोसिस ने ही कर्मचारियों को अपनी ग्रोथ में हिस्सेदार बनाने की शुरुआत की थी. अनुमान के मुताबिक, कंपनी अब तक 50,000 करोड़ रुपए कर्मचारियों को बांट चुकी है. इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक साल 2000 में इंफोसिस ने 2000 से ज्यादा कर्मचारियों को शेयर दिए जिनमें ज्यादातर करोड़पति बन गए. साल 2016 में तो कंपनी ने जूनियर और मिडल लेवल के कर्मचारियों को भी शेयर दिए.
पेटीएम
पेमेंट एप कंपनी पेटीएम ने पिछले साल 47 कर्मचारियों में, इसी तरह से 100 करोड़ रुपए बांटकर करोड़पति बनाया. यहां तक कि ऑफिस बॉय तक को 20 लाख मिल गए. अभी भी पेटीएम के 500 से ज्यादा कर्मचारियों के पास कंपनी के 4% शेयर हैं.
20 साल में 20 हजार कर्मचारी करोड़पति
टैलेंट फर्म करियरनेट का अनुमान है कि भारत की टेक और इंटरनेट कंपनियों ने ,करीब 20 हजार कर्मचारियों को पिछले कुछ सालों में करोड़ों के शेयर दिए हैं. बड़ी और छोटी एप बेस्ड या सॉफ्टवेयर कंपनियां कर्मचारियों को भी अपनी संपत्ति बढ़ाने का मौका देती हैं. जैसे फूड डिलिवरी छोटी फर्म स्विगी तक अपने कर्मचारियों से करीब 26 करोड़ रुपए के शेयर खरीदने जा रही है.
कैब कंपनी ओला, मोबाइल एडवरटाइजमेंट कंपनी इनमोबी, मेक-माई-ट्रिप और इंफो एज तक ने अपने कर्मचारियों को रकम देने में कंजूसी नहीं दिखाई है.
पेमेंट कंपनी सिट्रस पे को Pay U ने 2016 में 860 करोड़ रुपए में खरीदा था और इसके बाद कंपनी के 50 कर्मचारियों को शेयर बेचकर 43 करोड़ रुपए की कमाई हुई थी.
इन कंजूसों का क्या किया जाए?
जैसे दिलेर कंपनियां हैं उसी तरह कंजूस प्रमोटर भी कम नहीं हैं. खासतौर पर सीमेंट, कमोडिटी, दवा, डेवलपर जैसे धंधे में लगी कंपनियों के कर्मचारियों को इसकी उम्मीद नहीं करनी चाहिए.
मिसाल के तौर पर मलविंदर और शिविंदर भाइयों ने जब जापान की दवा कंपनी डाइची को रैनबैक्सी बेची थी तो सौदा 20 हजार करोड़ के ऊपर हुआ था पर कर्मचारियों के हिस्से में कुछ खास नहीं आया.
इसी तरह से अजय पीरामल ने पीरामल हेल्थकेयर का कारोबार अबॉट को करीब 20,000 करोड़ में बेचा था, इस सौदे में भी कर्मचारी ठनठन गोपाल रहे.
ऐसी दिलेरी की उम्मीद आप परंपरागत भारतीय अमीरों से नहीं कर सकते, क्योंकि वो पैसा बांटने में नहीं अपने पास सहेजने में यकीन रखते हैं.
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