दुनियाभर में बैंकिंग संकट (Global Banking) की आशंका जताई जा रही है, अमेरिका (US) और यूरोप ने इस संकट को झेला, काफी नजदीक से भी देखा, लेकिन रिजर्व बैंक (RBI) की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत के बैंकों (Indian Banks) की स्थिति मजबूत है, रिजर्व बैंक ने किस आधार पर ये बाते कहीं इस वीडियो में आपको बताएंगे. साथ ही हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ (Hindu Rate of Growth) क्या है जिसका जिक्र पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन (Raghuram rajan) ने किया है.
क्या भारतीय बैंकों की स्थिति वाकई ठीक है?
पहले आरबीआई की रिपोर्ट की बात करते हैं. आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि ग्लोबल बैंकिंग क्राइसिस के बीच भारत का बैंकिंग सिस्टम स्थिर है, मजबूत है. लेकिन कैसे पता करें कि बैंकों की स्थिति वाकई में ठीक है.
एक तो विदेशी क्लेम को देखा जाता है. यानी भारत में विदेशी डिपॉजिटर का कुल कितना पैसा है. एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक भारत की बैंकों में विदेशी डिपॉजिटर का कुल 104 बिलियन डॉलर पैसा जमा है. यह दिसंबर 2022 का आंकड़ा है. अब ये कैसे पता करें कि 104 बिलियन डॉलर पैसा ज्यादा है या कम है. तो इसकी तुलना बाकी देशों से की जाती है. इन 19 देशों की सूची (फोटो) जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान हैं इन सभी 19 देशों की तुलना में भारत में सबसे कम विदेशी क्लेम है. यानी ग्लोबल संकट होने पर भी भारतीय बैंकों से बहुत ज्यादा विड्रॉल नहीं होगा और ना ही भारत से कभी ग्लोबल बैंकिंग संकट शुरू होने की आशंका है.
अगला है कैपिटल यानी पूंजी. वो पैसा जिससे बैंक को चलाया जाता है. RBI बैंकों का एक स्ट्रेस टेस्ट करवा चुका है. 2022 की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में इसका जिक्र है, रिपोर्ट में बताया गया कि बैंकों के पास पर्याप्त कैपिटल है.
फिर बैड लोन की स्थिति यानी वो लोन जो लोग, बैंक को लौटाते ही नहीं है. आरबीआई के मुताबिक बैड लोन के ग्राफ में गिरावट आई है. 2019 में बैड लोन 10% से ज्यादा था, फिर 2020 में 9% हुआ, 2021 में 7.5% और 2023 में यह घट कर 5% पर आ गया है. रिपोर्ट के मुताबिक यह आगे घटेगा. अब इन आंकड़ों के आधार आप अपना ओपिनियन बना सकते हैं.
हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ क्या है?
अब बात करते हैं...‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ की. मार्च में RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि भारत ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ की तरफ बढ़ रहा है. उन्होंने इसे ‘देश के लिए खतरनाक’ बताया. रघुराम राजन ने देश के धीमे आर्थिक विकास, प्राइवेट सेक्टर में निवेश, बढ़ते इंटरेस्ट रेट्स और वैश्विक मंदी की तरफ इशारा करते हुए ये बात कही है.
ये पहले ही साफ कर दूं कि इसका हिंदुओं या हिंदू की आबादी से कोई लेना देना नहीं है. दरअसल जीडीपी जैसे आंकड़े जारी करने वाली संस्था national statistical office की हालिया रिपोर्ट में मंदी का जिक्र था और जीडीपी में गिरावट के आंकड़े. बस इसी पर रघुराम राजन बोले: "देश के हालिया जीडीपी नंबरों से हमें साफ-साफ धीमी वृद्धि दिखाई पड़ रही है. RBI ने इस वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में 4.2% की ग्रोथ रेट का अनुमान लगाया है. ये हमारे पुराने हिंदू ग्रोथ रेट से बहुत करीब है! हमें और बेहतर करना चाहिए."
1987 में अर्थशास्त्री राज कृष्ण ने इसका जिक्र पहली बार किया था. दरअसल 1940 से 1980 के बीच देश की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और जीडीपी ग्रोथ रेट 4% के आस-पास ही रहता था और इसी को राज कृष्ण, 'हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ' कहते थे.
अब आजादी के बाद से लेकर 1980 तक भारत की अर्थव्यवस्था ठीक नहीं थी. तो राज कृष्ण ने इसे भारतीय सभ्यता से जोड़ दिया, उनका मानना था कि भारत पर कई आक्रमणों, युद्धों, लूटपाट के बावजूद हिंदू सभ्यता बची रही. तब इसे पॉजिटिव अप्रोच के साथ कहा गया था यानी हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ बोलना मतलब तारीफ की बात होती थी लेकिन अब 4% जीडीपी ग्रोथ कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि भारत इससे ज्यादा वृद्धि दर दर्ज कर रहा है चूंकि जीडीपी गिरने लगी है और 4% के आसपास है तो इसे हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ से जोड़ कर बताया गया.
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