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भारत से अमेरिका तक महंगाई की मार, कितना कोरोना और कितना सरकारें जिम्मेदार

Petrol-Diesel की ज्यादा कीमत, लेबर की कमी, शिपिंग में दिक्कत और चिप की किल्लत ने खेल बिगाड़ दिया

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दुनिया ग्लोबलाइज होने के बाद एक दूसरे पर इतनी निर्भर हो गई है कि अगर आप अपने घर के पड़ोस की दुकान से कोई इलेक्ट्रिक सामान खरीद रहे हैं तो आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि उसमें जिन चीजों का इस्तेमाल हुआ होगा वो किन देशों से बन कर आई है जैसे... 'माइक्रोचिप'.

एक लंबे अरसे से आप जो चारों तरफ मंहगाई (Inflation) को महसूस कर रहे हैं वो भी अब ग्लोबल हो गई है. महंगाई केवल भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका से लेकर यूरोप और जापान से लेकर चीन तक देखी जा रही है. इसके पीछे की क्या वजह है ये समझते हैं.

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एक लंबे अरसे से भारत पेट्रोल-डीजल ही नहीं बल्कि कभी सरसों का तेल, कभी सब्जियां तो कभी गैस तो कभी किसी और बुनियादी जरूरत की चीजों के दाम आसमान छूते दिख रहे हैं. यहीं नहीं दूसरे देशों में भी महंगाई की मार है.

जापान, चीन, अमेरिका कई देश महंगाई की चपेट में हैं. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, अमेरिका में महंगाई दर बढ़कर 6.2 फीसदी हो गई है. यह साल 1990 के बाद की सबसे बड़ी तेजी है. जापान की थोक महंगाई अक्टूबर में चार दशक की ऊंचाई पर पहुंच गयी है. इससे पहले चीन में भी थोक कीमतों में इजाफा देखा गया था.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में अक्टूबर 2021 में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 4.48% हो गई. जो पिछले महीने सितंबर में 4.35% थी. अमेरिका का कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स एक साल पहले अक्टूबर में 6.2% पर पहुंच गया. चीनी उत्पादक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति अक्टूबर में सालाना 13.5% बढ़ी.

सप्लाई चेन बाधित- महंगाई का सबसे बड़ा कारण 

प्रख्यात राइटर थॉमस फ्रीडमैन की डेल थ्योरी कहती है कि कोई भी दो देश जो एक प्रमुख वैश्विक सप्लाई चेन का हिस्सा हैं, जैसे डेल (लैपटॉप कंपनी), कभी भी एक-दूसरे के खिलाफ युद्ध नहीं लड़ेंगे, जब तक कि वे दोनों एक ही वैश्विक सप्लाई चेन का हिस्सा हैं.

दुनिया की अर्थव्यवस्था को चलाने का काम करने वाली सप्लाई चेन में स्पीड ब्रेकर लग गया है. कोरोना महामारी की वजह से दुनियाभर के देशों में लगा लॉकडाउन और इसके असर ने सप्लाई चेन को बाधित किया है. इससे हुआ ये कि कई सामानों की बाजार में कमी होने लग गई.

अमेरिका में थैक्सगिविंग डे से पहले कई रिटेलर्स जल्द से जल्द सामान खरीदने के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रहे हैं क्योंकि आने वाले समय में सामान की कमी की वजह से वो आपूर्ति नहीं कर पाएंगे. यहां तक की ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन ने भी अभी से ही ऑफर्स देना शुरू कर दिया है.

यानी कोरोना महामारी की वजह से सप्लाई चेन इतने बड़े स्तर पर बाधित हुई कि उसने सामान के अभाव और महंगाई को जन्म दिया. लेकिन महामारी ने ऐसा क्या कर दिया जिसकी वजह से स्पलाय चेन बाधित हुई? क्या कोरोना के पहले से भी ऐसा कोई संकट आ खड़ा हुआ था जिसकी वजह से ये दिन देखना पड़ रहा है?

रेटिंग एजेंसी CRISIL के चीफ इकोनॉमिस्ट डीके जोशी ने क्विंट को बताया, "मुद्रास्फीति ने विभिन्न कारणों से आश्चर्यचकित किया है. अमेरिका में मांग बहुत तेज है और आपूर्ति नहीं हो पा रही है. इसके अलावा सप्लाय बाधित है और कच्चे माल की कीमत बढ़ गई है, शिपिंग का भाड़ा बढ़ गया है और कच्चे तेल की बढ़ती कीमत ने महंगाई के दबाव को और बढ़ा दिया है. अमेरिका का फेडरल रिजर्व बोर्ड मुद्रास्फीति को अस्थायी मानता है.

भारत में भी ईंधन की ऊंची कीमतों और कच्चे माल की बढ़ी हुई कीमत महांगाई का दबाव बढ़ा रही है. आपूर्ति की बाधाओं ने उस दबाव को और भी बढ़ा दिया है, भारत में खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट के कारण अगस्त के बाद से मुद्रास्फीति में कमी आई है.
CRISIL के चीफ इकोनॉमिस्ट डीके जोशी
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ईंधन, लेबर, शिपिंग, चिप ने मिलकर खेल बिगाड़ दिया

लॉकडाउन खुलने के बाद दुनिया की पांच बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, रूस और ऑस्ट्रेलिया बुरी तरह लड़खड़ा गई जिसका असर पूरी दुनिया पर भी पड़ा. क्योंकि लॉकडाउन के दौरान दुनिया की कई फैक्ट्रियां बंद हो गई.

अब समझते हैं उन चार बिंदुओं को जो दुनिया में शॉर्टेज की वजह बन रहे हैं-

  • ईंधन/एनर्जी

महामारी की वजह से यूरोप में एनर्जी का संकट शुरु हुआ, वहां अब ईंधन की कीमत रिकॉर्ड उच्च स्तर पर है, यहां तक कि सरकार को लोगों को बिजली खरीदने के लिए सब्सिडी देनी पड़ रही है. अंतराष्ट्रीय बाजार में नेचुरल गैस की कीमत बढ़ी जिसका असर भारत पर भी पड़ा. इसके अलावा कोविड के दौरान चीन में कोयले की कमी हुई जिसकी वजह बिजली उत्पादन में भी कमी हुई...जब चीन खुलने लगा तो बिजली की खपत बढ़ने लगी लेकिन उत्पादन ठप था और चीन में बत्ती गुल की खबरें देखने को मिली.

इसी बत्ती गुल ने चीन की फैक्ट्रियों में ताले लगाए, उत्पादन ठप किया और अब चीन से भारी मात्रा में दुनिया में होने वाला निर्यात नहीं हो पाया.

  • शिपिंग/लॉजिस्टिक्स संकट

इन सब के बीच एक और संकट पैदा हुआ शिपिंग का. दुनिया में कोविड के दौरान कई देशों ने बाहर से आ रहे शिप को रोकने के लिए अपने बंदरगाह बंद कर दिए थे जिससे शिपिंग का मूवमेंट थम गया था. अब इससे कंटेनर बनाने वाली कंपनियों ने अपना उत्पादन रोक दिया और दुनिया की कंटेनर बनाने वाली तीन सबसे बड़ी कंपनियां चीन की हैं, जहां पहले से ही बिजली का संकट चल रहा था. शिप का किराया चार साल की ऊंचाई पर चल रहा है और कई कंसल्टेंसी कंपनियों का मानना है कि ये और बढ़ेगा. इसलिए कई कंपनियां शिप से माल भेजने का खर्च नहीं उठा पा रहीं.

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  • लेबर शॉर्टेज

यूरोप इस वक्त लेबर शॉर्टेज से ग्रस्त है. सीएनबीसी में छपी रिपोर्ट के अनुसार यूरोप और अमेरिका में लॉकडाउन में बैठे लोगों को भी पैसा दिया गया जिससे उनकी सेविंग्ज बढ़ गई है और अब सब कुछ खुलने के बाद वे तुरंत काम पर न जाकर घूमना चाहते हैं. जो ब्रिटेन समेत पूरे यूरोप में प्रोडक्शन में बाधा की वजह बन रहा है.

  • सेमिकंडक्टर चिप/माइक्रोचिप

ऑटोमोबील और इलेक्ट्रिक सामानों में लगने वाली सेमिकंडक्टर चिप की किल्लत से भी दुनियाभर के उत्पादन में कमी आई है. हाल ही में आई खबरों के मुताबिक कई ऑटोमोबिल कंपनी और एप्पल समेत कई मोबाइल कंपनियों ने अपने उत्पादन में गिरावट की सूचना दी है और सबसे बड़ी वजह चिप की कमी और महामारी को बताया है.

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अब आगे क्या?

मंदी से निपटने का एक मात्र उपाय सस्ते कर्ज बांटना बताया जाता है, लेकिन ये महंगाई केवल सब्जियों के बढ़ते दाम के कारण नहीं जो एक समय में खत्म हो जाएगी. यह महंगाई उपजी है बढ़ती ईंधन और शिपिंग की कीमतों से, चिप की किल्लत और लेबर की शॉर्टेज से. ऐसे में सरकार टैक्स में कटौती कर नागरिकों को राहत दे सकती है.

अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर क्विंट हिंदी से बातचीत में बताते हैं कि यह स्टेगफ्लेशन है. यानी इंफ्लेशन की स्थिति में ग्रोथ ना होना है. इस दौरान महंगाई के साथ बेरोजगारी भी बढ़ जाती है. इसका सबसे बड़ा कारण सप्लाई में अचानक कमी आना रहा है. ऐसा होने पर जरूरी सामान की कीमतों में तेज उछाल आता है.

उनका मानना है कि भारत में स्टेगफ्लेशन की वजह डीमॉनेटाइजेशन, जीएटी और गलत तरीके के लॉकडाउन का लागू होना है. इसकी वजह से बढ़ती हुई इकोनॉमी पंक्चर हो गई.

गलत नीतियों के कारण होने वाले नुकसान को कवर करने के लिए सरकार पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि करके उपभोक्ता से एक-एक पैसा निकाल रही है, जिसका वृद्धि पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. सब्सिडी वापस लेना एक अन्य कारक है. जाहिर है कि वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन बहुत कम हो गया है. टैक्स कलेक्शन में भी कमी आई है. सरकार एक के बाद एक सार्वजनिक संपत्ति को अलग-अलग नामों से बेच रही है, चाहे वह विनिवेश हो या निजीकरण.
डीएम दिवाकर, अर्थशास्त्री
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रेटिंग एजेंसी CRISIL के चीफ इकोनॉमिस्ट डीके जोशी कहते हैं "भारत में रिटेल इंफ्लेशन अगले कुछ महीनों के लिए 5% से नीचे बनी हुई है. पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क में कमी से भी मदद मिलेगी. बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि खाद्य मुद्रास्फीति का क्या होता है."

एक्सपर्ट्स मानते हैं कि दुनियाभर में ये समस्या अगले कुछ महीने तक बनी रहेगी. फिलहाल जरूरत है तो ईंधन की कीमतों से राहत, लेबर शॉर्टेज की समस्या का हल, सेमिकंडक्टर की किल्लत का दूर होना और शिपिंग कॉस्ट में राहत मिलना.

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