पिछली कुछ तिमाहियों से ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद लगाई जा रही थी. लेकिन अब महंगाई में बढ़ोतरी और कच्चे तेल के दाम में इजाफे ने आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी का काम मुश्किल कर दिया है.
कमेटी की बैठक सोमवार को शुरू होगी जिसमें पॉलिसी रेट तय करने के लिए इन दो मुद्दों पर गौर किया जा सकता है. वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही में सात तिमाही में सर्वाधिक 7.7 फीसदी की वृद्धि दर और सामान्य मानसून की भविष्यवाणी से नीतिगत दर (रेपो) में कटौती की मांग कमजोर हुई है.
महंगाई है बड़ा रोड़ा
रिजर्व बैंक के लिए महत्वपूर्ण आंकड़ा रिटेल महंगाई दर नवंबर 2017 से 4 फीसदी से ऊपर बनी हुई है. सरकार ने रिजर्व बैंक को रिटेल महंगाई को दो फीसदी घट- बढ़ के साथ 4 फीसदी पर सीमित रखने की जिम्मेदारी दी है. केंद्रीय बैंक ने महंगाई संबंधी चिंता का हवाला देते हुए अगस्त 2017 से रेपो देर में कोई बदलाव नहीं किया है. ब्याज दर परिदृश्य में तेजी का रुख देखते हुए एसबीआई,पीएनबी और आईसीआईसीआई बैंक समेत कई बैंकों ने ब्याज दर बढ़ा दी है. कुछ बैंकों ने जमा दरों में भी बढ़ोतरी की है.
देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने एक रिपोर्ट में कहा है
बाजार में नीतिगत दर में वृद्धि की जोरदार संभावना जताई जा रही है लेकिन इसके बावजूद हमारा मानना है कि जमीनी हकीकत सतर्कता बरतने और नीतिगत दरों में किसी प्रकार का कोई कदम नहीं उठाने का आह्वान करती है.
जीडीपी मजबूत लेकिन खपत दर में कमी आ रही है
नीतिगत दरों में बदलाव लाने की कोई जरूरत न होने का कारण बताते हुए इसमें कहा गया है कि जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) आंकड़ा मजबूत है लेकिन निजी खपत की दर कम हो रही है. यह 2017-18 में घटकर 6.6 फीसदी पर आ गई, जो पिछले साल 7.3 फीसदी थी. रेपो रेट (जिस दर पर केंद्रीय बैंक बैंकों को कर्ज देता है) फिलहाल 6 फीसदी है. वहीं रिवर्स रेपो 5.75 फीसदी और बैंक दर 6.25 फीसदी है. रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली मॉनेटरी पॉलिसी की बैठक पहली बार तीन दिनों के लिए हो रही है. आमतौर पर यह बैठक दो दिन के लिए होती है.
चालू वित्त वर्ष की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा की घोषणा छह जून को की जाएगी. रेटिंग एजेंसी इक्रा लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और समूह के मुख्य कार्यपालक अधिकारी नरेश टक्कर ने कहा कि इस साल मानसून और न्यूनतम समर्थन मूल्य के अलावा राजकोषीय जोखिम को लेकर स्पष्टता की कमी को देखते हुए तत्काल नीतिगत दर में वृद्धि की बात कहना जल्दबाजी होगी.
इनपुट - भाषा
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