देश में चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है. अनुमान से 50 लाख टन ज्यादा. मगर, यही उत्पादन गन्ना किसानों और चीनी मिल मालिकों के लिए सिरदर्द भी बन चुका है. अधिक उत्पादन ने चीनी की कीमत गिरा दी है. चीनी मिल मालिकों की मानें तो उन्हें प्रति किलो 8 रुपये का नुकसान झेलना पड़ रहा है. मजदूरी देना भी मुश्किल है. ऐसे में किसानों के बकाए का भुगतान कैसे करें जो बढ़ते-बढ़ते 200 अरब रुपये के शिखर पर पहुंच चुका है.
महाराष्ट्र, यूपी, कर्नाटक में रिकॉर्ड उत्पादन
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू सीज़न में चीनी का रिकॉर्ड 3 करोड़ टन से ज्यादा उत्पादन हुआ है. 15 अप्रैल तक 2.998 करोड़ टन चीनी उत्पादन का वास्तविक आंकड़ा है. अगर अलग-अलग राज्यों में चीनी उत्पादन की स्थिति पर नज़र डालें तो वह कुछ इस तरह है-
गन्ने की पेराई पर लगा विराम
रिकॉर्ड उत्पादन के बाद चीनी मिलें क्रशिंग ऑपरेशन यानी पेराई तेजी से बंद कर रही हैं. देश भर में 15 अप्रैल की स्थिति के अनुसार अब बस 227 मिलों में गन्ने की पेराई चल रही है. विभिन्न राज्यों में गन्ने की पेराई पर नज़र डालें तो 15 अप्रैल तक स्थिति कुछ ऐसी दिख रही थी.
- महाराष्ट्र के 287 चीनी मिलों में केवल आधे में काम चल रहा है. महाराष्ट्र में 104.98 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है.
- यूपी में अब भी 105 चीनी मिलों में गन्ने की पेराई चल रही है. यूपी की चीनी मिलों में 104.8 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है.
- कर्नाटक में गन्ने की पेराई बंद की जा चुकी है. केवल एक मिल में यह काम जारी है. यहां अब तक 36.3 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है.
अधिक चीनी ने पैदा की कड़वाहट
चीनी की गिरती कीमत को रोक पाना मुश्किल हो रहा है. 5 महीनों से चीनी के दाम गिर रहे हैं. चीनी मिल मालिकों का कहना है कि इस सीज़न में अब तक देश में 9 रुपये प्रति किलो चीनी सस्ती हुई है. मिलों को लागत और बिक्रय मूल्य में फर्क के हिसाब से प्रति किलो 8 रुपये का नुकसान हो रहा है. निर्यात से भी बात बनती नहीं दिख रही है.
संकट की घड़ी में निर्यात बड़ा हथियार होता है. मगर चीनी मिल मालिकों के लिए यहां भी प्रतिकूल स्थिति है. सरकार ने 20 लाख टन निर्यात की अनुमति दी है लेकिन विश्व बाज़ार में भी चीनी की कीमत कम है इसलिए इससे गिरती कीमतों को रोकने में कोई सहूलियत मिलती नहीं दिख रही. इस्मा का कहना है कि चीनी आयात पर सौ फीसदी का प्रतिबंध होना चाहिए. पाकिस्तान का चीनी भारत से भी सस्ता है.
मिल मालिकों को भुगतान की चिंता नहीं
अफसोस कि गन्ना किसानों की स्थिति रिकॉर्ड उत्पादन ने ही बिगाड़ी है. देश में किसानों का इतना बकाया पहले कभी नहीं हुआ था. 15 अप्रैल तक गन्ने की बकाया राशि बढ़कर 180 अरब रुपये से ज्यादा पहुंची है. माना जा रहा है कि गन्ने का बकाया 200 अरब रुपये से अधिक होने जा रहा है. कारण ये है कि मिल मालिकों को बकाए का भुगतान करने की कोई जल्दी नहीं दिख रही. वे अपने नुकसान को लेकर अपना माथा पीट रहे हैं. बकाए के भुगतान की मांगों से उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है.
मिल मालिक कह रहे हैं कि चीनी मिलों की भुगतान क्षमता प्रति क्विंटल तकरीबन 230 रुपये मात्र है. सरकार जो दाम सुझा रही है उसके अनुसार भुगतान करने की स्थिति में मिल मालिक नहीं हैं.
2015-16 के चीनी सीजन की ही तरह, जब मोदी सरकार ने चीनी मिलों और गन्ना किसानों की एफआरपी के रूप में प्रति टन गन्ना 4.50 रुपये की मदद की थी. इस बार भी मिल मालिक यही उम्मीद कर रहे हैं. मगर, इस बार रकम बड़ी है और केंद्र सरकार के लिए भी फैसला लेना उतना आसान नहीं है.
यूपी में गन्ना किसानों का बकाया 10.83 करोड़
2017-18 में 4 अप्रैल तक कुल गन्ने की खरीद 29,101 करोड़ की हुई थी. किसानों को 18,272 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ. किसानों की जो रकम बकाया है वह है 10,829 करोड़ रुपये यानी जितने गन्ने की खरीद हुई उसका 37.2 फीसदी गन्ने की कीमत बकाया है. ये आंकड़े उन दावों से कहीं अधिक हैं जिसके अनुसार कहा जा रहा है कि 8108 करोड़ रुपये किसानों का बकाया है. यूपी में 29 से 39 रुपये प्रति क्विन्टल गन्ना किसानों को नुकसान हो रहा है
उत्तर प्रदेश काउंसिल ऑफ सुगर केन रिसर्च के अनुसार एक क्विन्टल गन्ने के उत्पादन पर खर्च आता है 354 रुपये. समझते हैं कैसे और कितना यूपी के किसानों को हो रहा है नुकसान.
चीनी मिलें नुकसान में रह ही नहीं सकतीं
ताज्जुब होता है ये सुनकर कि चीनी मिलें नुकसान में हैं। चीनी मिलों के पास सिर्फ गुड़ और चीनी बनाने के विकल्प नहीं होते. उसके पास उप-उत्पाद के रूप में इतना उत्पादन करने का अवसर होता है जिससे वह भी मालो माल हो जाए और किसान भी.
चीनी मिलें चाहें तो गन्ना से 24 बाय कॉमर्शियल प्रॉडक्ट बना सकते हैं। इनमें इथेनॉल और मिथेनॉल शामिल हैं. 2013 में हुए यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज़ बैंगलोर के रिसर्च के मुताबिक एक टन गन्ने से 100 किलो चीनी के अलावा 150 यूनिट बिजली और 35 लीटर शराब भी पैदा की जा सकती है. सवाल ये है कि चीनी मिल मालिक ये बाय प्रॉडक्ट क्यों नहीं पैदा करते? अगर करते हैं तो नुकसान होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. हकीकत ये है कि किसानों को कम से कम दस गुणा कम दाम दिया जा रहा है.
गन्ना किसानों को 14 दिन के भीतर भुगतान का वादा करने वाली बीजेपी सरकार न यूपी और न ही महाराष्ट्र में अपने वादे को पूरा कर पाई. वहीं, कर्नाटक में भी कांग्रेस की सरकार बकाये का भुगतान करा पाने में सफल नहीं रही. जाहिर है सवाल ये है कि सरकारें होतीं किसलिए हैं?
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