दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा समूह के संस्थापक जैक मा ने 10 सितंबर को कंपनी चेयरमैन का पद छोड़ दिया है. वह ऐसे समय में इस पद से हटे हैं, जब अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध के चलते तेजी से बदलते उद्योग क्षेत्र में अनिश्चितता का दौर चल रहा है.
उनका चेयरमैन पद से हटने का कार्यक्रम एक साल पहले तय कर लिया गया था. हालांकि, वह अलीबाबा पार्टनरशिप के सदस्य बने रहेंगे. यह 36 लोगों का समूह है, जिन्हें कंपनी के निदेशक मंडल में बहुमत सदस्यों को नामांकित करने का अधिकार है. जैक मां की संपत्ति 41 अरब डॉलर है. वो अपनी बेशुमार दौलत शिक्षा पर खर्च करना चाहते हैं.
जैक मा (55) ने 1999 में अलीबाबा की स्थापना की थी. उन्होंने चीन के निर्यातकों को सीधे अमेरिकी खुदरा विक्रेताओं से जोड़ने के लिए अलीबाबा ई-कॉर्मस कंपनी को खड़ा किया. इसके बाद कंपनी ने अपना कार्य क्षेत्र बदलते हुए चीन के बढ़ते उपभोक्ता बाजार में आपूर्ति बढ़ाने का काम शुरू किया. जून में खत्म हुई तिमाही के दौरान कंपनी के 16.7 अरब डॉलर के कुल कारोबार में उसके घरेलू व्यवसाय का हिस्सा 66 फीसदी रहा है.
ऐसे आगे बढ़ा जैक मा का सफर
यह 1970 का दशक था. चीन माओ के कल्चरल रेवोल्यूशन के भयानक दौर की यादें भुलाने की कोशिश कर रहा था. देंग ज्याओपिंग के नेतृत्व में आर्थिक सुधारों का दौर शुरू हो रहा था. देश के दरवाजे खुल रहे थे. चीन को देखने-समझने के लिए बड़ी तादाद में विदेशी पर्यटक आ रहे थे. ठीक इसी दौर में 12 साल के एक लड़के पर एक जिद्दी धुन सवार हो गई.
आंधी आए, बारिश हो या बर्फ गिरे, रोज सुबह 12 साल का एक लड़का अपने बिस्तर से उठता और 40 मिनट साइकिल चला कर हांगझाऊ लेक सिटी डिस्ट्रिक्ट सिटी के नजदीक एक होटल में पहुंच जाता. उसकी यह दीवानगी उसके नए-नए प्यार के लिए थी. और उसकी माशूका थी एक विदेशी भाषा- अंग्रेजी.
जैक मा नाम का यह लड़का अपनी अंग्रेजी अच्छी करने के लिए लगातार 8 साल यहां आता रहा. इस दौरान वह पर्यटकों को घुमाने ले जाता. उनसे उनके तौर-तरीके सीखता. अपनी अंग्रेजी मांझता. इस अंग्रेजी की बदौलत वह कॉलेज में इस सब्जेक्ट का टीचर बन गया.
पहले प्यार यानी अंग्रेजी ने जैक मा को दुनिया को समझने में मदद की. उन्होंने विदेशियों के तौर-तरीके सीखे और अपने सोचने का तरीका सुधारा. उनका दूसरा प्यार था इंटरनेट. 1995 में जैक मा एक दुभाषिये के तौर पर अमेरिकी शहर सिएटल गए और वहां पहली बार इंटरनेट देखा. जैक मा ने मशहूर पत्रिका एंटरप्रेन्योर को एक बार अपनी कहानी सुनाते हुए बताया था.
सिएटेल में पहली बार मुझे एक दोस्त ने इंटरनेट दिखाया. मैंने पहली बार याहू के सर्च इंजन पर बीयर शब्द खोजा. लेकिन चीन का कोई डाटा नहीं मिला. तभी हमने एक वेबसाइट शुरू करने का फैसला किया. हमने इसका नाम चाइना पेज रजिस्टर्ड कराया.जैक मा
जैक मा कहते हैं, '' मैंने दो हजार डॉलर कर्ज लेकर कंपनी बनाई. लेकिन पर्सनल कंप्यूटर या ई-मेल के बारे में कुछ नहीं जानता था और न ही कभी की-बोर्ड छुआ था. इसलिए मैं कहता हूं कि मैं एक अंधे आदमी की तरह था जो एक अंधे बाघ की पीठ पर सवार था.''
जैक मा ने चाइना टेलीकॉम के साथ ज्वाइंट वेंचर शुरू किया लेकिन यह चला नहीं. जैक मा अब अपनी ई-कॉमर्स बनाने का सपना देखने लगे.1999 में उन्होंने अपने अपार्टमेंट्स के 18 लोगों को जमा किया और उनसे अपने सपने के बारे में बात की. 80,000 डॉलर जमा हुए. इरादा ग्लोबल कंपनी बनाने का था. इसलिए नाम भी ग्लोबल रखा गया- अलीबाबा.
छा गया अलीबाबा का जादू
इसके बाद जैक मा ने मुड़ कर नहीं देखा. अलीबाबा का जादू जल्द ही पूरी दुनिया में छा गया. अलीबाबा दुनिया की दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी बन कर उभरी.
अलीबाबा ने 1999 में एक डिजिटल मार्केटप्लेस से शुरुआत की थी लेकिन आज इसने अपने साम्राज्य को ई-कॉमर्स, ऑनलाइन बैंकिंग, क्लाउड कंप्यूटिंग, डिजिटल मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में फैला लिया है. चीन में ट्वीटर जैसे ही लोकप्रिय वीबो में अलीबाबा की हिस्सेदारी है. हॉन्गकॉन्ग से निकलने वाले साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की भी यह हिस्सेदार है.
एक साधारण अंग्रेजी टीचर से दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों में से एक का मालिक बनने तक का जैक मा का सफर अद्भुत है. न अनुभव, न पूंजी और न ही कोई कारोबारी विजन. उन्हें दो चीजों ने ई-कॉमर्स का बेताज बादशाह बनाया. दुनिया को समझने का उनका जुनून. और एक जिद्दी धुन. इस एक जिद्दी धुन ने ही उन्हें शून्य से शिखर पर पहुंचा दिया.
चीन के घरों में आज जैक मा की तस्वीरें टंगी होती है. उन्हें धन का देवता समझा जाता है. जैक मा जीते-जी लीजेंड बन चुके हैं. उनकी दास्तान एशियाई देशों के उन नौजवानों के लिए नजीर बन गई है, जो अपने सपने को किसी भी तरह सच करना चाहते हैं.
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