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हालात सुधारने के लिए PM EAC काउंसिल में मार्केट एक्सपर्ट्स को जगह

जानिए, प्रधानमंत्री की इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल में नई नियुक्तियों के मायने

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केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री की इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल (EAC) में 3 नई नियुक्तियां की हैं. नीलेश शाह, नीलकंठ मिश्रा और वी अनंत नागेश्वरन को काउंसिल में शामिल किया गया है. माना जा रहा है कि देश में चल रही आर्थिक मंदी के बीच ये नियुक्तियां पीएम की EAC को जमीनी हकीकत और मार्केट की वास्तविकता के करीब लाने की दिशा में की गई हैं. हालांकि सवाल ये है कि क्या सरकार वाकई बाजार की हालत को लेकर चिंता में है. क्या वाकई इन सलाहाकारों की सलाह पर एक्शन होगा..या फिर ये सिर्फ कॉस्मेटिक कदम है.

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एक ऐसे समय में जब बैंक क्रेडिट ग्रोथ, यात्री वाहनों की बिक्री, रिटेल कन्जम्प्शन सहित कई इंडीकेटर और जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े आर्थिक मंदी को बयां कर रहे हैं, सरकार की कोशिश मार्केट के विश्वसनीय नामों की मदद लेकर संकट से बाहर निकलने की हो सकती है.

चलिए, जानते हैं कि सरकार ने जिन नए नामों को पीएम की EAC में शामिल किया है, उन्हें किन चीजों के लिए प्रमुखता से जाना जाता है:

नीलेश शाह

जानिए, प्रधानमंत्री की इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल में नई नियुक्तियों के मायने

नीलेश शाह कोटक AMC लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. शाह लंबे समय से स्टार फंड मैनेजर रहे हैं. कैपिटल मार्केट और मार्केट संबंधित निवेश में उनके पास 25 साल से ज्यादा का अनुभव है.

शाह ICICI प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड में मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ इंवेस्टमेंट ऑफिसर जैसे पद की अहम जिम्मेदारी उठा चुके हैं. इसके अलावा वह एक्सिस बैंक की इन्वेस्टमेंट बैंकिंग आर्म एक्सिस कैपिटल के CEO भी रहे हैं.

अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, शाह ने अपनी नियुक्ति को लेकर बताया कि वह ''मार्केट के एक स्टूडेंट के तौर पर'' अपने 3 दशकों के अनुभव से काउंसिल की मदद करना चाहते हैं.

नीलकंठ मिश्रा

नीलकंठ मिश्रा इंडिया स्ट्रैटजिक के मैनेजिंग डायरेक्टर और क्रेडिट सुईस के एशिया प्रशांत इक्विटी स्ट्रैटजी के को-हेड हैं. मिश्रा GST पर RNR कमेटी, FRBM रिव्यू कमेटी जैसी सरकार द्वारा बनाई गई कमेटियों में सलाहकार भी रह चुके हैं.

जानिए, प्रधानमंत्री की इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल में नई नियुक्तियों के मायने

नीलकंठ मिश्रा की पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो उन्होंने आईआईटी कानपुर से कम्प्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है. वह नियमित तौर पर आर्थिक मुद्दों को लेकर अखबारों और पत्रिकाओं में लेख लिखते रहते हैं.

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वी अनंत नागेश्वरन

वी अनंत नागेश्वरन IFMR ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस के डीन हैं. नागेश्वरन ने आईआईएम अहमदाबाद से मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा किया था. साल 1994 में उन्होंने फाइनेंस में डॉक्टरेट की डिग्री भी हासिल की.

जानिए, प्रधानमंत्री की इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल में नई नियुक्तियों के मायने
1994 से 2004 तक नागेश्वरन ने यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड में काम किया था.

जुलाई 2006 में वह सिंगापुर स्थित जूलियस बायर एंड कंपनी लिमिडेट बैंक में एशिया रिसर्च हेड के तौर पर शामिल हुए. मार्च 2009 में उन्हें बैंक का चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर नियुक्त किया गया. साल 2011 से उन्होंने लेखक, सलाहकार और टीचर की भूमिकाएं भी निभाई हैं.

साजिद जेड चिनॉय

नीलेश शाह, नीलकंठ मिश्रा, वी अनंत नागेश्वरन से पहले साजिद जेड चिनॉय भी पीएम की EAC का हिस्सा बने.

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साजिद चिनॉय जेपी मॉर्गन में अर्थशास्त्री हैं. साजिद चिनॉय पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में एक अर्थशास्त्री के रूप में काम करते थे. इसके अलावा न्यूयॉर्क में McKinsey & Company के साथ एक सीनियर एसोसिएट के रूप में काम कर चुके हैं. साजिद चिनॉय ने साल 2001 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की है

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सवाल उठता है  कि काउंसिल में शामिल किए गए नए एक्सपर्ट्स की सरकार कितनी सुनेगी? या फिर ये सिर्फ मार्केट सेंटिमेंट को ठीक करने का प्रयास भर है. ये सवाल इसलिए उठते हैं क्योंकि अर्थशास्त्रियों और इस सरकार के बीच अनबन की लंबी कहानी है. चाहे वो आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम जान हों या फिर उर्जित पटेल या फिर नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया.

करीब 3 हफ्ते पहले EAC से बाहर हुए ये 2 मेंबर

बता दें कि पीएम की EAC से 2 पार्ट मेंबर्स (रतिन रॉय और शमिका रवि) के बाहर होने के करीब 3 हफ्ते बाद तीन नई (नीलेश शाह, नीलकंठ मिश्रा, वी अनंत नागेश्वरन) नियुक्तियां हुई हैं. रवि और रॉय दोनों को आर्थिक मंदी से निपटने में सरकार के रुख का आलोचक माना जा रहा था.

ब्रूकिंग्स इंडिया की रिसर्च डायरेक्टर रवि ने 22 अगस्त को ट्वीट कर कहा था, ''अर्थव्यवस्था को वित्त मंत्रालय के ऊपर छोड़ना उसी तरह से है, जैसे किसी फर्म की ग्रोथ को अकाउंट्स डिपार्टमेंट के पास छोड़ना होता है.'' वहीं नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के डायरेक्टर रॉय ने राजकोषीय प्रोत्साहन के बजाए ढांचागत सुधारों पर जोर देने की वकालत की थी.

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