देश के कई राज्यों में पेट्रोल की कीमत 100 रुपए के पार पहुंच चुकी है. चौकाने वाली बात नहीं है. कीमत में तेजी का सबसे बड़ा कारण है कि इस पर वसूले जाना वाला टैक्स बहुत ज्यादा है. लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में पेट्रोल-डीजल पर केंद्र सरकार की तरफ से वसूले जाने वाले टैक्स में 88% का उछाल आया है और यह राशि 3.35 लाख करोड़ रही है.
पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 19.98 रुपए से बढ़कर 32.90 रुपए पर पहुंच गई है. वहीं डीजल पर 15.83 से बढ़कर 31.80 रुपए पर पहुंच गई. यह जानकारी पेट्रोलियम स्टेट मिनिस्टर रामेश्वर तेली ने लिखित में लोकसभा में दी थी.
यही कारण है कि पेट्रोल और डीजल को काफी समय से जीएसटी यानी गुड्ज एंड सर्विसेस टैक्स (GST) के दायरे में लाने की मांग भी की जा रही है. जीएसटी लागू होने से टैक्स की दर में कमी आएगी. लेकिन फिलहाल पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया. लेकिन मान लीजिए कि अगर यह जीएसटी के दायरे में आ जाए तो कितना सस्ता हो जाएगा पेट्रोल-डीजल?
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि अगर केंद्र जीएसटी पर आम सहमति बना लेती है तो पेट्रोल-डीजल के दामों में काफी कमी आ सकती है.
यहां तक कि पूर्व पेट्रोलियम मिनिस्टर धर्मेंद्र प्रधान (अब शिक्षा मंत्री है) भी यह बात कह चुके हैं.
तो पेट्रोल 75 और डीजल 68 रुपए पर कैसे आ सकता है?
एसबीआई की इकनॉमिक रिसर्च डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को जीएसटी के दायरे में लाया जाए तो देश भर में पेट्रोल की कीमत 75 रुपए और डीजल की कीमत 68 रुपए प्रति लीटर तक हो जाएंगी. इस रिपोर्ट को एसबीआई की ग्रुप चीफ इकनॉमिक एडवाइजर डॉ सौम्या कांति घोष ने तैयार किया है. जिसमें यह भी बताया गया कि केंद्र और राज्यों को राजस्व में जीडीपी के महज 0.4% के बराबर करीब 1 लाख करोड़ की कमी आएगी.
रिपोर्ट में सबसे पहले पेट्रोल-डीजल की कुल कीमत को इस तरह से लिया गया है-
अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल (1 बैरल=159 लीटर) मान ली जाए और रुपये-डॉलर का एक्सचेंज रेट- 73 रुपए माना जाए, वहीं ट्रांसपोर्टेशन चार्ज डीजल के लिए 7.25 रुपए और पेट्रोल के लिए 3.82 रुपए, इसमें डीलर के कमीशन 2.53 रुपए डीजल का और 3.67 रुपए
पेट्रोल का सेस, डीजल का 20 रुपए और पेट्रोल के लिए 30 रुपए (केंद्र और राज्य की बराबर हिस्सेदारी) और जीएटी का अधिकतम रेट भी लगाया जाए जो कि 28% है (केंद्र को 14% और राज्य को 14%).
इन सब को कैलकुलेट कर एसबीआई की रिसर्च टीम ने अपने एनालिसिस में पाया कि अगर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है तो देश भर में इसकी कीमत में कमी की आ जाएगी. पेट्रोल 75 रुपए प्रति लीटर और डीजल 68 रुपए प्रति लीटर हो जाएगा.
लेकिन केंद्र और राज्यों को राजस्व में बजट एस्टीमेट्स से 1 लाख करोड़ रुपए की कमी आएगी जो जीडीपी के 0.4% के बराबर है. राजस्व में कमी के एनालिसिस में रिसर्च टीम ने कीमतों में कटौती के बाद बढ़ी खपत को भी गणना में लिया है यानी अगर कीमतों में गिरावट आती है तो जितनी खपत बढ़ेगी, उससे जीएसटी कटौती से राजस्व में गिरावट की भरपाई होगी.
फिर पेंच कहां फंस रहा है?
पेंच ये है कि जैसे ही पेट्रोल-डीजल की कीमतों को जीएसटी के दायरे में लाने की बात होती है, राजनीति शुरू हो जाती है. जीएसटी ऐक्ट के तहत पेट्रोलियम को जीएसटी दायरे में लाने का फैसला जीएसटी काउंसिल ही कर सकती है. इस जीएसटी काउंसिल में कई राज्यों के प्रतिनिधि हैं. अब पेट्रोल-डीजल से जिन राज्यों को ज्यादा राजस्व मिलता है वो आखिर क्यों चाहेंगे कि पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे में आए.
कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसे जीएसटी के दायरे में लाने के लिए केंद्र और सभी राज्यों को एक मत होना पड़ेगा, वहीं केंद्र और राज्य दोनों को ही इसमें नुकसान होगा. ऐसे में क्या केंद्र और राज्य जनता का फायदा देखेंगे या खुद के राजस्व की तिजोरी को देखेंगे, यही सबसे बड़ा सवाल है.
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