2021 के पहले 9 दिनों में ही बहुत खेल हो गया है. कुछ उदाहरण:
- क्रिप्टोकरेंसी बिटक्वाइन की कीमत में इस साल 40 परसेंट का इजाफा हो चुका है. वो भी तब जब पिछले साल इसकी कीमत में 300 परसेंट की रिकॉर्ड तेजी रही थी.
- दक्षिण कोरिया के शेयर इंडेक्स कॉस्पी में पिछले हफ्ते 10 परसेंट का इजाफा हुआ. 2020 में इसमें 31 परसेंट की बढ़ोतरी हुई थी. किसी शेयर की कीमत में एक हफ्ते में 10 परसेंट की तेजी तो सुना था, किसी इंडेक्स में 10 परसेंट की तेजी नॉर्मल तो नहीं ही है.
- पिछले हफ्ते पता चला कि टेस्ला के प्रोमोटर एलन मस्क अब दुनिया के सबसे अमीर आदमी हो गए है. 2020 की शुरूआत में उनका नेटवर्थ 27 अरब डॉलर का था जो अब बढ़कर 185 अरब डॉलर हो गया है. मतलब एक साल में 158 डॉलर का इजाफा. ये कितनी बड़ी रकम है इसका अंदाजा इसी बात से लगाइए कि कभी दुनिया के सबसे अमीर रहे बिल गेट्स की कुल नेटवर्थ 132 अरब डॉलर है. मतलब यह कि इससे काफी ज्यादा मस्क की नेटवर्थ एक साल में ही बढ़ गई. यह अजूबा नहीं है तो और क्या है.
- भारत का निफ्टी पिछले एक महीने में 7 परसेंट, तीन महीने में 21 परसेंट और 6 महीने में 34 परसेंट बढ़ चुका है.
- रिवाइवल की बात से ही जेट एयरवेज के शेयर में सितंबर से अब तक 500 परसेंट का इजाफा हो चुका है. रिवाइवल होगा कि नहीं, पता नहीं. ऑपरेशन शुरू होगा कि नहीं, कंपनी पर जो 25,000 करोड़ रुपए का कर्ज है वो कैसे चुकाया जाएगा पता नहीं, कंपनी के कर्मचारियों को कब सैलरी मिलेगी, पता नहीं. इस सबसे बावजूद शेयर की कीमत में पिछले एक हफ्ते में ही 38 परसेंट का इजाफा हो चुका है.
नकदी बाबा की मेहरबानी सारे एसेट्स पर हो रही
इस सबको देखकर मन में एक ही बात आती है. वो यह कि दुनिया को कुबेर का एक खजाना मिल गया है और उस खजाने से डॉलर बरस रहे हैं, और जिसकी उस खजाने तक पहुंच है वो हर दिन मालामाल हो रहा है.
आधुनिक कुबेर का खजाना है अमेरिका का फेडरल रिजर्व जो बाजार में हर महीने 120 अरब डॉलर डाल रहा है.
डॉलर की बारिश हो रही है, फाइनेंशियल एसेट्स की कीमत तेजी से बढ़ रही है और लोग अमीर हो रहे हैं- यह स्क्रिप्ट जानी-पहचानी लग रही है?
डॉलर बारिश की मेहरबानी चौतरफा हो रही है. कमोडिटी की कीमत को ही ले लीजिए.
- 2020 जैसी वैश्विक मंदी पहले कभी नहीं हुई. इतना डिमांड डिस्ट्रक्शन पहले कभी नहीं हुआ, लेकिन कच्चे तेल की कीमत अब 9 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर है.
- भारत में स्टील की कीमत 12 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है और इसमें और इजाफे का अनुमान है. वजह है कि कच्चे लोहे की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी से बढ़ रही है.
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉपर की कीमत में पिछले एक साल में 30 परसेंट की बढ़ोतरी हुई है.
कच्चा तेल, स्टील और कॉपर जैसी कमोडिटी अर्थव्यवस्था के जरूरी रॉ मेटेरियल हैं. इनकी कीमतों में बेतहाशा तेजी का मतलब है महंगाई का बेकाबू होना. और फिर अर्थव्यवस्था में मुश्किलें बढ़ना, लेकिन डॉलर की बारिश के बीच किसे सोचने का समय है.
ऐसी चौतरफा तेजी आपको 2008 की याद दिला रहा है क्या? उस साल लीमन ब्रदर्स के कोलेप्स होने से पहले का कुछ नमूमा भी देख लीजिए:
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में फिलहाल जो स्टील की कीमत है 2008 में वो इससे करीब 40 परसेंट ज्यादा थी. और 2008 के पहले कुछ महीने में ही कीमत में 100 परसेंट का इजाफा हो गया था.
- 2008 के पहले 6 महीने में कच्चे तेल की कीमत में करीब 60 परसेंट की बढ़ोतरी हुई थी.
- 2008 के पहले 6 महीने में कॉपर की कीमत में करीब 30 परसेंट की बढ़ोतरी हुई थी
चौतरफा तेजी का 2008 में अंत काफी त्रासदी वाला था.
इस बार चौतरफा तेजी पहले की सारी तेजी से किस तरह से अलग भी है, इसे जानने के लिए फोर्ब्स के एक आलेख में छपे कुछ आंकड़ों पर गौर कीजिए. उसमें कहा गया है कि अमेरिका में आए पिछले 6 आर्थिक मंदी के दौरान शेयर बाजार में 20 से 48 परसेंट तक की गिरावट देखी गई. 1930 के दशक के ग्रेट डिप्रेशन में और 2008 की मंदी इनमें सबसे बुरा था.
1930 के दशक में आई मंदी की भरपाई में तो शेयर बाजार को 25 साल लग गए. 2020 की मंदी अमेरिका में 1930 से भी ज्यादा भयावह थी, लेकिन शेयर बाजार रोज नई ऊंचाई बना रहा है. है ना अजूबा.
अब 2021 के पहले करोबारी हफ्ते का ही जायजा ले लीजिए. इसमें 5 में से 4 दिन अमेरिका के शेयर बाजार ने नया रिकॉर्ड बनाया. वो भी तब,
- जब पता चला कि जनवरी के पहले हफ्ते में अमेरिका में कोरोना का कहर ऐसा रहा जैसा पहले कभी नहीं रहा. रोज औसतन 2,700 मौंते हुईं और हर दिन कोरोना के 2.75 लाख मरीज सामने आए.
- जब आंकड़ा आया कि अप्रैल के बाद पहली बार अमेरिका में 1.4 लाख लोगों की नौकरी गई. जॉब मार्केट में रिकवरी के बावजूद अब तक उतने लोगों को नौकरी नहीं मिली है जितने लोगों को मार्च 2020 से पहले मिलती थी.
- और जब पता चला कि अमेरिका के 200 साल पुराने लोकतंत्र में इस हफ्ते से पहले इतनी बड़ी त्रासदी पहले कभी नहीं दिखी, जब वहां के संसद को ही उग्र भीड़ ने निशाना बनाया. और भीड़ में वो शामिल थे जो वहां के राष्ट्रपति के समर्थक हैं.
इन तीनों घटनाओं से कभी शेयर बाजार हिल जाया करता था. अब नहीं, क्योंकि डॉलर की बारिश में सब चंगा सी.
अभी की तेजी देखकर मन में एक ही खयाल आ रहा है- इस नकदी की बारिश में हर एसेट्स को जैसी वैल्यू दी जा रही है, उससे हमारा भला होगा या फिर इससे नुकसान ज्यादा होगा?
फाइनेंशियल एसेट्स में कारोबार करने वाले कम लोगों को तो इस बला की तेजी से खूब फायदा हो रहा है. लेकिन उनका क्या जो मंदी के मारे हैं और जिन्हें अब हर सामान पहले से ज्यादा कीमत पर खरीदना होगा? डॉलर के नशा से नींद खुलने में कहीं देर ना हो जाए.
(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो इकनॉमी और पॉलिटिक्स पर लिखते हैं. उनसे @Mayankprem पर ट्वीट किया जा सकता है. इस आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं और क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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