टाटा समूह (Tata Group) ने अपनी एजीएम की बैठक में आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन (AoA) में अहम बदलाव किया है. टाटा समूह ने इसमें संशोधन कर तय किया है कि टाटा संस (Tata Sons) और टाटा ट्रट्स (Tata Trusts) के चेयरमैन अलग अलग होंगे. टाटा संस और टाटा ट्रस्ट के पास टाटा समूह की 66 फीसदी हिस्सेदारी है.
ये बदलाव इसलिए किया गया कि आगे कभी साइरस मिस्त्री जैसा विवाद पैदा ना हो.
बता दें कि साल 2012 तक रतन टाटा टाटा संस और टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रहे हैं. इसके बाद टाटा संस के चेयरमैन साइरस मिस्त्री और फिर एन चंद्रशेखरन रहे. ये दोनों जब टाटा संस के चेयरमैन बने उसी समय पर इन्हें टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन नहीं बनाया गया था. हालांकि तब ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं था. लेकिन अब संशोधन के बाद कानूनी रूप से टाटा संस और टाटा ट्र्स्ट का चेयरमैन अलग होगा.
बिजनेस स्टैंडर्ड ने बताया कि टाटा समूह के सूत्रों ने कहा कि, एओए में बदलाव ने अब टाटा ट्रस्ट और टाटा संस के चेयरमैन के पदों को अलग करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी बना दिया है और यह कदम मैनेजमेंट को ओनरशिप से अलग करने के लिए है. नए एओए के अनुसार, एक व्यक्ति जो सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट या सर रतन टाटा ट्रस्ट या दोनों में से किसी का भी चेयरमैन है वह टाटा संस का चेयरमैन नहीं बन सकेगा.
बता दें कि टाटा संस के एओए में किसी भी बदलाव के लिए बैठक में उपस्थित 75 प्रतिशत शेयरधारकों की मंजूरी और एक विशेष प्रस्ताव पारित करने की आवश्यकता होती है. वैसे प्रस्ताव के पक्ष में टाटा का पर्याप्त समर्थन था.
टाटा के चेयरमैन को बनाने और हटाने के लिए बनेगी कमेटी
टाटा संस में चेयरमैन की नियुक्ति के लिए एक कमेटी का गठन किया जाएगा. ये कमेटी तय करेगी कि कौन चेयरमैन होगा. अगर चेयरमैन को हटाना हो तो भी यही कमेटी फैसला लेगी.
इस सिलेक्शन कमेटी का चेयरमैन सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट या सर रतन टाटा ट्रस्ट द्वारा नियुक्त किया जाएगा.
इस सेलेक्शन कमिटी में तीन लोगों को नॉमिनेट किया जाएगा. यह नॉमिनेशन सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट के द्वारा किया जाएगा, नॉमिनी टाटा संस से हो भी सकते है और नहीं भी. इसके अलावा एक अन्य सदस्य को टाटा संस के बोर्ड के द्वारा नॉमिनेट किया जाएगा जो टाटा संस के बोर्ड का सदस्य होना चाहिए और इसके अलावा एक अन्य सदस्य इंडिपेंडेंट डायरेक्टर होगा.
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