ADVERTISEMENTREMOVE AD

NSE पर जुर्माना: क्या है CO-LOCATION ‘घोटाला’,सेबी ने कैसे पकड़ा?

NSE के को-लोकेशन फैसिलिटी का फायदा उठा कर कुछ ब्रोकर कंपनियों ने बड़ा घोटाला कर दिया

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

सेबी ने मंगलवार को NSE पर एक खास जगह लगे एक्सचेंज के कुछ सर्वर को कारोबार में तवज्जो देने यानी को-लोकेशन के मामले में लगभग 625 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. NSE को 12 फीसदी की सालाना ब्याज दर सहित पूरी रकम सेबी के निवेशक सुरक्षा और शिक्षा कोष (IPEF ) को देनी होगी. आइए जानते हैं क्या है को-लोकेशन मामला और कैसे सेबी ने इस घोटाले का पता लगाया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

को-लोकेशन क्या है?

को-लोकेशन ब्रोकरों को अतिरिक्त फीस लेकर सर्वरों के नजदीक ऑपरेट करने की इजाजत देता है. एक्सचेंज सर्वरों के पास होने की वजह से ऐसे ब्रोकरों को दूसरों की तुलना में फायदा मिल जाता है क्योंकि डाटा ट्रांसमिशन में कम वक्त लगता है. को-लोकेशन की सुविधा वाले ब्रोकरों के ऑर्डर एक्सचेंज तक उन ब्रोकरों की तुलना में जल्दी पहुंच जाते हैं, जिनके पास यह सुविधा नहीं है.

घोटाला क्या था?

इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक 2014-15 में सेबी को शिकायत मिली थी कि कुछ ब्रोकरों ने NSE के कुछ आला अफसरों के साथ मिलकर को-लोकेशन सुविधा का दुरुपयोग किया. कुछ ब्रोकर NSE अधिकारियों और ऑम्नेसिस टेक्नोलॉजिज (NSE को टेक्नोलॉजी मुहैया कराने वाली कंपनी) की मिलीभगत से NSE सर्वर को सबसे पहले एक्सेस किया करते थे. इससे उन्हें दूसरों के मुकाबले फायदा मिल जाता था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पड़ताल में सेबी ने क्या पाया?

सेबी ने ओपीजी सिक्योरिटीज, जीकेएन सिक्योरिटीज और वेकटुवेल्थ के साथ-साथ इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनी संपर्क इन्फोटेनमेंट को अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस का दोषी पाया. ये ब्रोकरेज कंपनियां लगातार दूसरे से पहले NSE के सर्वर का इस्तेमाल कर रहे थे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कैसे हुआ घोटाला ?

इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक ओपीजी ने NSE के बैकअप सर्वरों तक पहुंच बना ली. एक्सचेंज इसका रखरखाव मेन सर्वर में तकनीकी गड़बड़ियां आने की स्थिति में ट्रेडिंग ऑपरेशन जारी रखने के लिए करता था. बैकअप सर्वर होने की वजह से इन सर्वरों पर ट्रैफिक काफी कम होता है. ओपीजी ने इन्हीं सर्वरों से लॉगइन कर तेजी से डेटा तक एक्सेस बनाने में कामयाब हासिल कर ली. इन कंपनियों ने इसी का फायदा उठाया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या NSE ने की गड़बड़ी

NSE ने ओपीजी और दूसरों को बैक-अप सर्वर का एक्सेस दिया. इस वजह से ये ब्रोकर तेजी से डेटा हासिल करने में कामयाब रहे और उन्हें दूसरों पर बढ़त मिली. यह मार्केट में लेवल प्लेइंग फील्ड के सिद्धांत के खिलाफ था. संपर्क इन्फोटेनमेंट के पास तो टेलीकॉम डिपार्टमेंट का लाइसेंस भी नहीं था.ताकि वह कुछ ब्रोकरों को डार्क फाइबर कनेक्टविटी दे सके. NSE ने इसकी भी अनदेखी की. सेबी ने ब्रोकरों के साथ-साथ NSE के कुछ अफसरों पर जुर्माना भी लगाया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

डार्क फाइबर से क्या फायदा मिलता है?

डार्क फाइबर से लिए गए कनेक्शन में ज्यादा वैंडविड्थ होता है इससे मिलने वाले आंकड़ों में बहुत कम गड़बड़ी होती है. साफ है कि इसके जरिये ब्रोकरों की सर्वरों तक तेज और सटीक पहुंच हो जाती है. इससे पहले सौदा करने का एडवांटेज हासिल हो जाता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सेबी के आदेश पर NSE और इसके कारोबार पर असर

इससे NSE अगले छह महीने तक पूंजी बाजार में नहीं जा सकेगी. यानी वह बाजार से पैसा नहीं जुटा सकेगी. इसके आईपीओ इस साल के आखिर तक के लिए टल जाएंगे. हालांकि लगभग 1000 करोड़ रुपये का जुर्माना चुकाने के लिए NSE के पास काफी पैसा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या NSE के ऑपरेशन पर फर्क पड़ेगा?

NSE के प्रवक्ता ने कहा है कि स्टॉक एक्सचेंज सेबी के आदेश को पढ़ने के बाद कानूनी रास्ता अख्तियार कर सकता है. NSE के कामकाज पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×