नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट कहती है कि केंद्र सरकार के घाटे के आंकड़े, केंद्रीय बजट में बताए गए आंकड़ों से काफी अधिक हो सकते हैं. इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, CAG ने फाइनेशियल ईयर 2018 के लिए वित्तीय घाटे (फिस्कल डेफिसिट) का कैलकुलेशन 5.85% किया है. जबकि, सरकार ने फिस्कल डेफिसिट 3.46% बताया था. यानी कि दोनों आंकड़ों में 69% का अंतर दिख रहा है.
CAG ने फाइनेंशियल ईयर 2017-18 के रेवेन्यू डेफिसिट के आंकड़ों में भी ऐसे ही अंतर की तरफ इशारा किया है.
इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय बजट 2019-20 पेश किए जाने के तीन दिन बाद यानी 8 जुलाई को, CAG ने 15 वें वित्त आयोग से कथित तौर पर पूछताछ की थी कि क्या "एक्स्ट्रा-बजट रिसोर्सेज के हिसाब से बजट सही तस्वीर को दर्शाता है."
एक्स्ट्रा-बजट रिसोर्सेज, वो संसाधन हैं जिन्हें PSUs प्रॉफिट, लोन और इक्विटी के जरिए जुटाता है. अब कैग ने घाटे के आंकड़ों को इसमें दिखाया है. कैग ने ये भी पता लगाया है कि 2017-18 में रेवेन्यू डेफिसिट 3.48% था न की 2.59%, जैसे बताया गया था.
ये आंकड़ों का अंतर क्यों ‘परेशान’ करता है?
दरअसल, फिस्कल डेफिसिट सरकार के कुल राजस्व और कुल खर्च का अतंर होता है, फिस्कल और रेवेन्यू डेफिसिट के आंकड़े इकनॉमी की सेहत के बारे में इशारा करते हैं. ऐसे में अगर आंकड़ों में कुछ गड़बड़ी होती है तो ये चिंता की बात है.
ये भी फैक्ट है कि हाल में सरकार ने डेफिसिट के जो नंबर साझा किए हैं उनकी समीक्षा होने लगी है क्योंकि खर्चों की भरपाई करने के लिए सरकार बजट के बाहर काफी उधारी ले रही है. बजट के बाहर उधारी सरकारी संस्थाओं की वो उधारी होती है जो आधिकारिक बजट का हिस्सा नहीं होती है लेकिन इसका इस्तेमाल सरकारी योजनाओं को फंड करने में किया जाता है. बजट के बाहर उधारी को फिस्कल डेफिसिट की गणना में नहीं लिया जाता लेकिन ये उधारी सरकार के कुल कर्ज में जरूर जुड़ती है.
चिंता की दूसरी वजह ये है कि CAG का ये अनुमान सरकार के दावे को संदेह की नजर में ले आते हैं. बता दें कि आधिकारिक तौर पर सरकार ने फिस्कल डेफिसिट को 2020-21 तक जीडीपी के 3% तक रखने का टारगेट रखा है.
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