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अमीरों की लिस्ट में जुड़ते-घटते नाम, बदलते आर्थिक हालात की कहानी 

यकीन मानिए, दुनिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट आप ही बना रहे हैं.

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क्या आपने कभी सोचा है कि सुबह उठने से लेकर रात में बिस्तर पर जाने तक आप किन कंपनियों के प्रोडक्ट्स या सर्विसेज का इस्तेमाल करते हैं? आप ऑनलाइन शॉपिंग करते हैं, कहीं आने-जाने के लिए ऐप से टैक्सी बुक करते हैं, ऑफिस में पावरप्वॉइंट प्रेजेंटेशन बनाते हैं, या फिर कुछ करने का मन नहीं किया तो फेसबुक या वाॅट्सऐप पर दोस्तों से चैट कर लेते हैं. अगर आप इनमें से कुछ भी करते हैं तो यकीन मानिए कि दुनिया के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट आप ही बना रहे हैं.

हाल ही में खबर आई कि अमेजॉन के फाउंडर जेफ बेजोस थोड़ी देर के लिए ही सही, दुनिया के सबसे अमीर आदमी बन गए. क्योंकि अमेजॉन के शेयरों में गिरावट के बाद माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स ने ये दर्जा फिर से पा लिया.

लेकिन अगर आप दुनिया के टॉप 5 धनकुबरों की लिस्ट देखेंगे तो आप अगर उनके नाम से ना भी पहचानते हों, आप उन्हें उनके काम से जरूर पहचान जाएंगे.

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हमें उम्मीद ही नहीं, यकीन है कि इनमें से कम से कम तीन कंपनियों माइक्रोसॉफ्ट, अमेजॉन और फेसबुक के प्रोडक्ट्स और सर्विसेज का इस्तेमाल आप जरूर कर रहे होंगे. ये तीनों कंपनियां ‘ब्रिक एंड मोर्टार’ इकनॉमी से अलग अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करती हैं और टेक्नोलॉजी की मदद से दुनिया के कोने-कोने में पहुंच चुकी हैं.

यही इन कंपनियों की कामयाबी और शोहरत का राज है. आने वाले दिनों में ये ‘न्यू इकनॉमी’ कंपनियां अब तक की दिग्गज कंपनियों को पीछे छोड़ दें तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए.

इसे आप इस तरह समझें कि ऐप बेस्ड टैक्सी एग्रीगेटर उबर का वैल्युएशन आज करीब 70 अरब डॉलर है जबकि दुनिया की बड़ी कार कंपनियों में एक जनरल मोटर्स का वैल्युएशन है करीब 60 अरब डॉलर. यानी जिस चीज को हासिल करने में जनरल मोटर्स को 100 साल से ज्यादा लग गए, उबर ने उसे 8 साल में ही हासिल कर लिया. ये है टेक्नोलॉजी की ताकत और न्यू इकनॉमी का कमाल.

भारत नहीं है पीछे

ऐसा नहीं है कि ऐसी मिसाल सिर्फ विदेशी कंपनियों में हैं. भारत में भी ऐसे दर्जनों उदाहरण मिल जाएंगे, जहां नई-नवेली कंपनियों ने 5 साल या 10 साल की अवधि में वैसी कामयाबी हासिल कर ली, जैसी पुरानी कंपनियों को हासिल करने में दशकों लग गए.

इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी आईटी कंपनियां इसकी जीती-जागती मिसाल हैं. अमेजॉन,उबर या फेसबुक जैसी ऊंचाई तो किसी भारतीय कंपनी ने नहीं छुई है, लेकिन फ्लिपकार्ट और ओला जैसी कंपनियां भारत में उसी सक्सेस स्टोरी को दोहरा रही हैं, जिसे अमेजॉन और उबर ने ग्लोबल लेवल पर लिखा है.

ये बात अलग है कि भारत में अमेजॉन का मुख्य मुकाबला फ्लिपकार्ट और उबर का ओला से ही है. 2007 में शुरू हुई फ्लिपकार्ट का मौजूदा वैल्युएशन मई 2017 में था 11.6 अरब डॉलर, यानी बमुश्किल 10 साल. इसके मुकाबले 110 साल पुरानी कंपनी टाटा स्टील का वैल्युएशन आज 7 अरब डॉलर है.

हालांकि अगर देश के टॉप 5 धनकुबेरों की लिस्ट देखें तो अभी इसमें परंपरागत उद्योग-धंधे के मालिकों का वर्चस्व कायम है.

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इसके साथ ही, इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पिछले एक दशक में दुनिया की इकनॉमी काफी बदली है, टेक्नोलॉजी का प्रभुत्व कायम हो गया है और बिजनेस करने के तौर-तरीके बदल चुके हैं. इसका असर हमारी जीवन शैली और हमारे कामकाज पर भी पड़ा है.

हमारे लिए खाना मंगाने से लेकर ट्रैवल पैकेज बुक करने तक, या डिमांड ड्राफ्ट बनाने से लेकर फर्निचर खरीदने तक का काम घर बैठे करने का विकल्प मौजूद है. ये विकल्प हम तक पहुंचाने का काम ई-कॉमर्स कंपनियों और स्टार्टअप्स ने किया है, यही वजह है कि पिछले कुछ सालों में रोजगार के नए और बेहतर अवसर भी इन कंपनियों में मिले.

आने वाले वक्त में भी रोजगार के ज्यादातर मौके ‘न्यू इकोनॉमी’ कंपनियों में ही ज्यादा बनेंगे, चाहे फिर वो आईटी कंपनियां हों या ई-कॉमर्स स्टार्टअप. लेकिन इन मौकों का फायदा उठाने के लिए जरूरी है कि वो कौशल और योग्यता आपके पास हो, जिसकी मांग ये कंपनियां अब कर रही हैं.

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