फ़ूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो का चाइनीज निवेश अटक गया है. बड़ी चाइनीज पेमेंट कंपनी एंट फाइनेंशियल ने जनवरी में जोमैटो में 15 करोड़ डॉलर का नया निवेश करने का ऐलान किया था. इस कंपनी के पास पहले से मेट्रो के 25 पर्सेंट शेयर हैं जो उसने 56 करोड़ डॉलर में खरीदे थे.
जोमैटो ने जनवरी में ऐलान किया था कि उसे एंट फाइनेंशियल से 15 करोड़ डॉलर मिलने वाले हैं. उसमें से 10 करोड़ डॉलर की किस्त अभी जोमैटो के खाते में नहीं पहुंच पाई है, क्योंकि भारत सरकार ने विदेशी निवेश के कायदे अप्रैल महीने में बदल दिए थे जिसके मुताबिक पड़ोसी देशों से आने वाले निवेश को अब सरकार की मंजूरी की जरूरत होगी. पहले ये निवेश ऑटोमैटिक रूट से आता था.
10 करोड़ की ताजा किस्त अटकने की खबर रविवार को फाइनेंशियल टाइम्स ने एक रिपोर्ट में दी है. खबर के मुताबिक जोमैटो कंपनी के भारतीय प्रोमोटरों को उम्मीद है कि सरकार से मंजूरी मिल जाएगी.
भारत में चीनी निवेश का भविष्य क्या होगा?
भारत के कई बड़े स्टार्टअप्स में चीनी कंपनियों का निवेश है, लेकिन भारत और चीन के बीच सीमा पर जो तनाव शुरू हुआ है उसके बाद जोमैटो के मामले पर कारोबारियों की नजर है कि भारत में चीनी निवेश और आपसी कारोबार का क्या भविष्य होने वाला है. देखना होगा कि भारत सरकार इसे “अवसरवादी निवेश” मानती है या 'अच्छा निवेश' मानते हुए इजाजत दे देती है. 20 हजार करोड़ रुपए की कंपनी जोमैटो फिलहाल घाटे में चल रही है और जल्द ही कमाई के कोई आसार भी नजर नहीं आ रहे.
भारत में तीस यूनिकॉर्न (जिनका वैल्युएशन एक अरब डॉलर से ज्यादा हो) स्टार्टअप ऐसे हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा में बड़ा चीनी निवेश आ चुका है. चीनी निवेश वाली कुल भारतीय कंपनियों की तादाद करीब सौ के आसपास है. जोमैटो समेत कई और कंपनियां इस समय अनिश्चितता के माहौल में काम कर रही हैं.
FDI के नियमों में हुआ था बदलाव
कोरोना वायरस महामारी के दौर में ‘आर्थिक इमरजेंसी’ का फायदा उठाकर कर विदेशी निवेशक भारतीय कंपनियों पर कब्जा न जमा लें, इसके लिए सरकार ने अप्रैल में फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट (FDI) पॉलिसी में बड़ा बदलाव किया. सरकार ने तय किया है कि अब जिन देशों की सीमा भारत से लगती है कि उन्हें सरकार से मंजूरी के बाद ही निवेश की अनुमति मिलेगी.
भारत के इस फैसले पर चीन के दूतावास के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, ‘‘भारतीय पक्ष द्वारा विशिष्ट देशों से निवेश के लिए लगाई गई अतिरिक्त बाधाएं डब्ल्यूटीओ के गैर-भेदभाव वाले सिद्धांन्त का उल्लंघन करती हैं, और उदारीकरण तथा व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने की सामान्य प्रवृत्ति के खिलाफ हैं.’’
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