जब इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतें घट रही थीं तो सरकार ने ड्यूटी बढ़ाकर इस गिरावट का फायदा आम आदमी तक नहीं पहुंचने दिया. अब जब बाहर तेल की कीमत बढ़ रही है और कई शहरों में पेट्रोल 100 के पार पहुंच चुका है तो केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान कह रहे हैं कि क्रूड ऑयल की इंटरनेशनल कीमतों के चलते देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छू रही हैं. लेकिन क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों का देश के आम आदमी और सरकार पर क्या असर पड़ेगा ये समझने की जरूरत है
71 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंचीं कीमतें
ग्लोबल क्रूड ऑयल की कीमतों में मई 2019 के बाद से सबसे बड़ा उछाल देखने को मिला है. क्रूड ऑयल की कीमत 71 डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर पहुंच चुकी है. भारत के लिए सबसे बड़ी समस्या है कि उसे अपनी खपत का आधे से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से इंपोर्ट करना होता है.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा क्रूड ऑयल इंपोर्ट करने वाला देश है. करीब 84 फीसदी तेल बाहर से ही इंपोर्ट किया जाता है. हर साल तेल का लोकल प्रोडक्शन बढ़ाने की बात होती है, लेकिन टारगेट पूरा नहीं हो पाता है. अब बताया गया है कि 2022 तक क्रूड ऑयल इंपोर्ट को 84 से 67 फीसदी तक लाने का टारगेट है.
महंगाई पर पड़ेगा तेल की कीमतों का असर
क्रूड ऑयल और भारतीय इकॉनमी पर इसके असर को लेकर हमने ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा से बात की. उन्होंने बताया कि, अब जैसे-जैसे दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्थाएं खुल रही हैं, वैसे ही तेल की डिमांड भी बढ़ रही है. जिसके चलते क्रूड ऑयल आज रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया है. उन्होंने कहा,
“जैसे डीजल की कीमत बढ़ती है तो रोजाना की जरूरतों पर असर पड़ता है. तेल की कीमतों का असर सर्विस सेक्टर पर ज्यादा नहीं पड़ा है, लेकिन जो सब्जियां और जरूरी चीजे हैं, उनकी कीमतों पर असर पड़ेगा. क्योंकि फिलहाल लोग ज्यादातर घरों से ही सभी चीजें कर रहे हैं, पिछले महीने पेट्रोल-डीजल की औसत मांग 17 फीसदी कम हो गई थी. इसीलिए अभी ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. लेकिन जैसे-जैसे बाजार खुलेगा, वैसे लोगों पर इसका सीधा असर पड़ेगा.”नरेंद्र तनेजा, एनर्जी एक्सपर्ट
भारत पर क्रूड ऑयल की कीमतों का असर
पिछले 6 महीने में तेल की कीमतें 90 रुपये से 100 रुपये या किन्हीं शहरों में 105 रुपये तक पहुंच चुकी है. यानी करीब 10 रुपये से ज्यादा का इजाफा हुआ है. पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमतों में बराबर का इजाफा हुआ है. जिसका सीधा असर महामारी में पहले ही कंगाल और बेरोजगार हो चुके आम लोगों पर पड़ा है.
हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि, मौजूदा रिकॉर्ड कीमतें अंतरराष्ट्रीय कीमतों के मुकाबले फिर भी कम हैं. इसका कारण है कि भारत भले ही अपने ऑयल प्रोडक्शन को उस स्तर तक नहीं बढ़ा पाया है, लेकिन कच्चे तेल को रिफाइन करने की क्षमता काफी ज्यादा बढ़ी है. जिससे भारत में रिफाइनिंग में लगने वाली कीमत कम हो जाती है.
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से सरकार को बड़ा फायदा
एक्सपर्ट्स के मुताबिक कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से भारत को मदद मिलती है. क्रूड ऑयल के दाम में हर 10 डॉलर की गिरावट भारत को करीब 15 बिलियन डॉलर की मदद करता है. जो भारत की जीडीपी का 0.5% है. इसीलिए क्रूड ऑयल की कीमतों में भारी गिरावट से भारत को फिस्कल डेफेसिट (राजकोषीय घाटा) और इंफ्लेशन में फायदा मिलता है.
क्योंकि काफी कम बार देखा गया है कि कच्चे तेल की कीमतें कम होने पर सरकार टैक्स में कटौती करती हो या फिर तेल के दाम भी उसी तरह सस्ते होते हों. जब कच्चे तेल की कीमतें गिर गई थीं, तब भी भारत में तेल की कीमतों पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा था. जिससे इसका सीधा फायदा सरकार को ही पहुंचता है.
सरकारों के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा तेल से ही आता है. इसीलिए पिछले साल जब देश में कोरोना महामारी आई तो केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर 13 रुपये प्रति लीडर और डीजल पर 16 रुपये प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी थी. क्योंकि कोरोना महामारी के चलते तमाम आर्थिक गतिविधियां बंद करनी पड़ी थीं और सरकार के राजस्व पर इसका बड़ा असर पड़ा था.
तेल की कीमतों में फिलहाल राहत की उम्मीद नहीं- तनेजा
एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा ने क्रूड ऑयल की कीमतों पर कहा कि, फिलहाल क्रूड ऑयल की कीमतों पर बहुत ज्यादा राहत मिलना संभव नहीं है. पिछले साल जहां मांग काफी कम थी और कीमतें शून्य तक पहुंच गई थीं, वहीं अब दुनिया में वैक्सीनेशन के बाद कई देश खुल रहे हैं तो क्रूड ऑयल की डिमांड बढ़ी है. पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था अब भी तेल पर चलती है. हो सकता है कि अगले 6 महीने बाद क्रूड ऑयल की कीमतें कुछ कम हों, लेकिन तब तक कोई राहत की उम्मीद नहीं है.
भारत के लोगों को तेल की कीमतों पर राहत कब तक मिलेगी? इस सवाल के जवाब में तनेजा ने कहा कि,
“फिलहाल राहत मिलना मुमकिन नहीं है. क्योंकि सरकारों के पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है. केंद्र और राज्य तेल पर ही आय के लिए निर्भर हैं. तो मुझे नहीं लगता है कि इस वक्त केंद्र या राज्य सरकार टैक्स में कटौती करने की स्थिति में हैं. पहले ही खर्चे बढ़े हुए हैं, आय घट रही है. तो अब कुल मिलाकर ये कोरोना की तीसरी लहर पर निर्भर करता है, अगर तीसरी लहर आती है तो तेल की कीमतों में राहत मिलने की कोई उम्मीद ही नहीं है, लेकिन अगर सब कुछ ठीक रहा तो मुमकिन है कि राज्य और केंद्र सरकार तेल की कीमतों में लोगों को राहत दे.”नरेंद्र तनेजा, एनर्जी एक्सपर्ट
2021 में क्यों बढ़ने लगी क्रूड ऑयल की कीमत?
क्रूड ऑयल की कीमतों में उछाल की बात करें तो इस साल की शुरुआत से ही लगातार इसकी कीमतों में इजाफा हो रहा है. 2021 की शुरुआत में क्रूड ऑयल की कीमत करीब 52 डॉलर प्रति बैरल थी, लेकिन 6 महीने में ही ये 70 डॉलर के पार पहुंच गई. पिछले साल जब दुनियाभर में लॉकडाउन लगाया जा रहा था तो क्रूड ऑयल की कीमतें 10 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ चुकी थी. जिसकी वजह से ऑयल प्रोड्यूस करने वाले देशों ने इसमें कटौती करनी शुरू कर दी. सऊदी अरब ने रोजाना 1 मिलियन बैरल की कटौती कर दी थी.
लेकिन इसके बाद जब इकनॉमिक एक्टिविटी शुरू हुईं और मांग बढ़ने लगी तो अब क्रू़ड ऑयल के दाम बढ़ने शुरू हो चुके हैं. क्रूड ऑयल प्रोड्यूस करने वाले देशों का समूह अब जून में प्रति दिन 350,000 बैरल और जुलाई में 441,000 बैरल का प्रोडक्शन करने के लिए तैयार है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि क्रूड ऑयल के प्रोडक्शन में की गई कटौती को वापस लेने से कीमतों पर ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला है.
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