देश में जहां नकदी पर निर्भरता बनी हुई है, वहीं एटीएम मशीनों को ढूंढ़ना मुश्किल होता जा रहा है. सख्त नियमों के कारण ATMs को चलाना ज्यादा महंगा पड़ रहा है. यही वजह है कि सैकड़ों ATMs के बंद होने पर खतरा मंडरा रहा है.
आरबीआई की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में ATMs से ट्रांजेक्शन में वृद्धि के बावजूद पिछले दो सालों में मशीनों की संख्या घटी है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक, ब्रिक्स देशों में भारत ऐसा देश है जहां प्रति 100,000 लोगों पर कुछ ही एटीएम हैं.
पहले ही भारत में कम हैं ATM
यह गिरावट जारी रह सकती है क्योंकि पिछले साल केंद्रीय बैंक द्वारा अनिवार्य किए गए सॉफ्टवेयर और उपकरणों के अपग्रेडेशन की लागत को सिक्योर करने के लिए बैंक और एटीएम ऑपरेटर संघर्ष कर रहे हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी लागू किये जाने के बाद डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने की बात कही गई लेकिन नोटबंदी के तीन साल बाद भी कैश का सर्कुलेशन पहले से ज्यादा बढ़ चुका है.
एटीएम मशीनों के प्रोवाइडर हिताची पेमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक रुस्तम ईरानी ने कहा, "एटीएम की घटती संख्या आबादी के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करेगी."
बढ़ गई ATM मेंटिनेंस की लागत
जैसे-जैसे सिक्योरिटी कॉस्ट बढ़ती जा रही है, एटीएम ऑपरेटरों को घाटा उठाना पड़ रहा है. क्योंकि राजस्व के लिए वे जिस शुल्क पर भरोसा करते हैं वह कम रहता है और उद्योग समिति की मंजूरी के बिना यह नहीं बढ़ सकता. यही कारण है कि पिछले दो वित्तीय वर्षों में भारत में एटीएम मशीनों की संख्या में गिरावट आई है.
आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर. गांधी ने कहा, “एटीएम की इस धीमी गति के पीछे इंटरचेंज फीस सबसे बड़ा कारक है. उन्हें जमीनी हकीकत का ध्यान रखना होगा." उन्होंने कहा, "बैंकों को अपने एटीएम संचालित करने के बजाय अन्य बैंकों को इंटरचेंज शुल्क का भुगतान करना सस्ता लग रहा है."
फिर भी हर कोई इस बात से सहमत नहीं है कि बढ़ती फीस इसका समाधान है. इंडियन ओवरसीज बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आर. सुब्रमण्यकुमार के अनुसार, अगर वह फीस बढ़ाते हैं, तो बैंक ग्राहकों पर ज्यादा शुल्क लगा सकते हैं.
2014 में पदभार ग्रहण करने के बाद से मोदी ने 355 मिलियन लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने के बाद एटीएम सहित बुनियादी वित्तीय सेवाओं तक पहुंच को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है. कई भारतीयों ने खाते तब खोले, जब प्रधानमंत्री ने नवंबर 2016 में 86% बैंक नोटों को अवैध बना दिया. इसने लोगों के खातों में कल्याणकारी लाभों के डायरेक्ट ट्रांसफर को बढ़ावा दिया, जिससे ATMs पर निर्भरता बढ़ गई.
बैंक ब्रांचेज का घटना है बड़ी वजह
एटीएम की घटती संख्या के पीछे सरकारी बैंकों द्वारा ब्रांचों को कम करना भी बड़ी वजह है. 2018 के शुरुआती 6 महीनों में पांच असोसिएट बैंकों और एक लोकल बैंक को खरीदने के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी 1000 ब्रांच बंद कर दीं. बैंक के हर दो एटीएम में से एक बैंक ब्रांच में इंस्टॉल होते हैं. SBI के मैनेजिंग डायरेक्टर दिनेश कुमार के मुताबिक, डिजिटाइजेशन के चलते बैंकों को ज्यादा ब्रांचेज से ऑपरेट करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद
एटीएम की संख्या घटने से मोबाइल बैंकिंग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. पिछले पांच सालों में ही मोबाइल बैंकिंग ट्रांजैक्शन 65 फीसदी बढ़ा है. देश की युवा आबादी ऑनलाइन बैंकिंग और मोबाइल ऐप की तरफ शिफ्ट हो रही है.
फेडरल बैंक लिमिटेड के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर आशुतोष खजूरिया के मुताबिक, एटीएम निश्चित रूप से घट रहे हैं. कोई भी व्यक्ति घाटे में जा रहे व्यापार में इन्वेस्ट नहीं करेगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)