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लॉकडाउन में सर्वाइवल भी मुश्किल!अब रियल एस्टेट सेक्टर ने मांगी मदद

रिटेल इंडस्ट्री को सरकारी मदद की दरकार

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कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से रियल एस्टेट सेक्टर का भी बुरा हाल है. कंस्ट्रक्शन का काम रुक गया है, मजदूर अपने घरों की ओर लौट रहे हैं और बिल्डर्स का कहना है कि मार्केट में बिजनेस चलाने के लिए लिक्विडिटी नहीं है.

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रियल एस्टेट सेक्टर किस परेशानी का सामना कर रहा है, इसके बारे में एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM) के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी ने बताया, "भारत की जीडीपी का 7.5 से 8 फीसदी हिस्सा रियल एस्टेट का है. देश में 15% लेबर फोर्स कंस्ट्रक्शन और रियल एस्टेट सेक्टर में है. बैंकों का 6.9 लाख करोड़ रूपया RBI के पास पड़ा है. ये पैसा हमारे और आपके पास, कंपनियों, रियल एस्टेट सेक्टर, बिल्डर, प्रमोटर और दुकानदारों के पास आने की बजाय RBI में वापस चला गया है. इस पैसे को लाने की जरूरत है और हमें रिवर्स रेपो रेट कम करके 1% पर लाना होगा."

हीरानंदानी ने कहा, "इस समय मार्केट में लिक्विडिटी लाने की जरूरत है, जिससे बिजनेस दोबारा शुरू हो पाएं और अगले छह महीनों के लिए GST में 50 प्रतिशत की कटौती होनी चाहिए." हीरानंदानी ने कहा कि रियल एस्टेट समेत सभी इंडस्ट्री में डिमांड दोबारा पैदा करने के लिए ऐसा करना पड़ेगा.

सरकार को अपने भुगतान करने चाहिए. वो बिल्डरों से कह रही है कि वर्कर्स का भुगतान करें, लेकिन खुद पेमेंट नहीं दे रहे हैं. सरकार आईटी रिफंड, GST रिफंड नहीं दे रही है, NHAI को पेमेंट नहीं दिया है, DISCOM का भुगतान नहीं किया, फर्टिलाइजर सब्सिडी नहीं दी है. केंद्र सरकार GST पर राज्य सरकारों को बकाया नहीं दे रही है. उनके PSU पेमेंट नहीं दे रहे हैं. ये सब मिलाकर 2.2 लाख करोड़ होता है.  
निरंजन हीरानंदानी, ASSOCHAM के अध्यक्ष

हीरानंदानी ने कहा, "जो पैसा RBI के पास पड़ा है, उसको इंडस्ट्री और बिजनेस तक लाने के लिए बैंकों को लेंडिंग के लिए किसी तरह की क्रेडिट गारंटी देनी होगी. हमने इंक्रीमेंटल लेंडिंग के लिए 40 प्रतिशत क्रेडिट गारंटी का सुझाव दिया है."

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'14 लाख करोड़ का प्रोत्साहन पैकेज चाहिए'

निरंजन हीरानंदानी का कहना है कि इकनॉमिक ग्रोथ को दोबारा ठीक करने के लिए 14 लाख करोड़ का प्रोत्साहन पैकेज चाहिए. NITI आयोग 10 लाख करोड़ का सुझाव दे चुका है और FICCI ने 16 लाख करोड़ कहा है.

एक बार इंडस्ट्री खुल जाएंगी तो प्रवासी मजदूरों को वापस बुलाने की समस्या से निपटना होगा. उन्हें फोन करके या जिस भी तरह से बताना होगा कि मुंबई, हाईवे, पोर्ट पर काम है और हमें मजदूर चाहिए. तभी वो आएंगे. इस बीच अगर वो गांव जा रहे हैं, उन्हें MNREGA के जरिए पैसा मिल रहा है और पार्ट टाइम काम भी मिल रहा है, तो वो वापस क्यों आएंगे?
निरंजन हीरानंदानी, अध्यक्ष, ASSOCHAM 
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जिंदा रहने के लिए रिटेल इंडस्ट्री को सरकारी मदद की दरकार

एक और सेक्टर जिसने सरकार से मदद की गुहार लगाई है, वो है रिटेल सेक्टर. रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (RAI) ने सरकार से अपील की है कि वो एक मजबूत पॉलिसी लेकर आए. साथ ही एसोसिएशन ने मजदूरी में मदद, प्रिंसिपल और ब्याज और वर्किंग कैपिटल के पेमेंट पर मोरेटोरियम जैसे कदम उठाने की अपील भी की.

RAI ने कहा कि इंडस्ट्री 4.5 करोड़ लोगों को नौकरी देती है. इनमें से खाने और जरूरी सामान में 50 फीसदी और गैर-जरूरी सामान में बाकी 50 फीसदी लोग काम करते हैं. कम से कम 2-2.5 करोड़ लोग गैर-जरूरी इंडस्ट्री में काम करते हैं. अगर 10 लाख लोग नौकरी खोते हैं, तो इसका प्रभाव कम से कम 50-60 लाख परिवारों पर होगा.

इकनॉमी ठीक करने के लिए कैश जनरेशन चालू करना जरूरी है. भारत के लिए एक्सपोर्ट्स तुरंत फायदा नहीं पहुचाएंगे. घरेलू कंजम्प्शन बढ़ाना जरूरी है. रिटेल का बड़ा हिस्सा गैर-जरूरी सामान पर आधारित है. इसे ठीक करना होगा. क्राइसिस से निपटने के लिए करीब 6-9 महीने तक इंडस्ट्री को वित्तीय मदद चाहिए होगी. 
कुलीन लालभाई, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, अरविंद लिमिटेड

बाटा सीईओ संदीप कटारिया का मानना है कि जब कंजम्प्शन बढ़ेगा, तभी प्रोडक्शन फुल स्पीड पर शुरू हो पाएगा. RAI ने कर्मचारियों की सैलरी देने के लिए कम से कम 2-3 महीने का रेवेन्यू और लोन की पेमेंट के लिए 9 महीने तक के मोरेटोरियम मांगा है.

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