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आमदनी अठन्नी-खर्चा रुपइया, कोर सेक्टर ग्रोथ अब भी नेगेटिव

लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद इकनॉमी में रिकवरी के संकेत तो दिख रहे हैं लेकिन सुधार काफी धीमा है

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लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद इकनॉमी में रिकवरी के संकेत तो दिख रहे हैं लेकिन सुधार काफी धीमा है और ग्रोथ रेट अभी भी नेगेटिव में बनी हुई है. हाल में ही आए जून के कोर सेक्टर ग्रोथ के आंकड़े ये भी इस बात की तस्दीक करते हैं. मई में कोर सेक्टर ग्रोथ -22% थी तो इस महीने में भी ये -15% रही है. अगर फर्टिलाइजर को छोड़ दें तो बाकी के सभी सेक्टर्स में ग्रोथ नेगेटिव ही बनी हुई है. मतलब ज्यादातर सेक्टर में उत्पादन, सप्लाई और कारोबार गिरा है.

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एक तरफ तो इन कोर सेक्टर्स की ग्रोथ को झटका लगा है तो दूसरी तरफ सरकार को मिलने वाले रेवेन्यू में भारी कमी हुई. हालत अब आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया वाली हो गई है. इस साल पहली तिमाही में सरकार की टैक्स से कमाई 32.6% घटी है. ये पिछले साल की पहली तिमाही के मुकाबले है. राजस्व घाटे की बात करें तो पूरे साल में जितने घाटे का अनुमान था उसका 83% पहली तिमाही में ही हो चुका है.

पहले बात, कोर सेक्टर ग्रोथ में भारी गिरावट की

कोरोना वायरस संकट के बाद लंबा लॉकडाउन रहा और ज्यादातर सेक्टर को मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इंडस्ट्री के लिए अप्रैल सबसे मुश्किल भरा महीना रहा. मई और जून में लॉकडाउन में थोड़ी राहत मिलने से रिकवरी हुई है, लेकिन रिकवरी भी बहुत सुस्त रफ्तार में है. मई में कोर सेक्टर ग्रोथ -22% थी तो जून महीने में भी ये -15% ही है. मतलब अभी भी कोर सेक्टर ग्रोथ गिर ही रही है. हां, गिरने की स्पीड जरूर कम हुई है. फर्टिलाइजर को छोड़कर बाकी सारे के साथ 7 सेक्टर कोल, क्रूड, नेचुरल गैस, रिफाइनरी प्रोडक्ट्स, स्टील, सीमेंट, इलेक्ट्रिसिटी सभी में ग्रोथ लाल निशान में है. मतलब ज्यादातर सेक्टर अभी भी सिकुड़ रहे हैं.

कोर सेक्टर्स की अहमियत आप ऐसे समझ सकते हैं कि इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) में भी इन आठ कोर सेक्टर्स का कुल मिलाकर करीब 40% का हिस्सा होता है.जून के आंकड़ों में राहत की बात ये है कि सीमेंट और स्टील में ग्रोथ रेट में सुधार हुआ है.

रेवेन्यू पर मार, कमाई बेहाल

सरकार को मिलने वाले टैक्स में भारी गिरावट देखने को मिली है. पिछले साल की पहली तिमाही के मुकाबले इस साल पहली तिमाही के टैक्स कलेक्शन में करीब 32.6% की कटौती देखने को मिली है. ये गंभीर इसलिए भी है क्यों कि सरकार ने इस साल के बजट में फिस्कल डेफिसिट का जो लक्ष्य रखा था उसका 83.3% शुरुआती 3 महीनों में ही पूरा हो गया है. अभी साल के 9 महीने निकलना बाकी है और सरकार बड़े राजस्व संकट में फंसती दिख रही है.

इस साल के बजट में सरकार का 7.96 लाख करोड़ रुपये का फिस्कल घाटे का लक्ष्य था लेकिन फाइनेंशियल ईयर की पहली तिमाही में ही सरकार को 6.62 लाख करोड़ रुपये का फिस्कल घाटा हो चुका है. 1999 के बाद पहली तिमाही में होने वाला ये सबसे बड़ा फिस्कल डेफिसिट है.

टैक्स में भी अगर बांटकर देखें तो सेंट्रल जीएसटी पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है. वहीं इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स में भी अच्छी खासी गिरावट दर्ज की गई है. कस्टम टैक्स में भी 61% की बड़ी गिरावट हुई है.

बात साफ है कि कोरोना वायरस संकट के बाद लॉकडाउन लगने की वजह से एक झटके में सारा ट्रांसपोर्टेशन बंद हो गया, उद्योग कारखाने बंद हो गए, कई लोगों को नौकरियों से निकाला गया, कारखानों में काम करने वाले मजदूर अपने गांव घरों को लौट गए. लोगों को पैसक

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