कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते जो इकनॉमी पर संकट आया है, सरकार ने इससे उबरने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के इकनॉमिक पैकेज का ऐलान किया है. लेकिन इस 20,97,053 करोड़ रुपये के पूरे पैकेज में सरकार को सिर्फ 1,78,800 करोड़ रुपये ही वास्तविक रूप में खर्च करना पड़ रहा है. कई अर्थशास्त्रियों ने भी कहा है कि इस पूरे पैकेज में सरकार को बहुत कम खर्च करना पड़ रहा है और हो सकता है कि सरकार जितना खर्च कर रही है उतना इकनॉमी में डिमांड लाने के लिए पर्याप्त न हो.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान 5 चरणों में किया. आखिरी चरण का ऐलान बीते रविवार को किया गया. 20 लाख करोड़ के पैकेज में 12 मई को पीएम मोदी के पैकेज ऐलान से पहले के ऐलान भी हैं. पैकेज में आरबीआई के उठाए गए लिक्विडिटी पैकेज, लोन गारंटी और ग्रामीण रोजगार गारंटी प्रोग्राम पर बढ़ाए गए खर्च भी शामिल हैं.
- पहले चरण में सरकार ने MSME सेक्टर के लिए बड़े ऐलान किए. इसके अलावा नौकरीपेशा मिडिल क्लास के लिए भी राहत देने के ऐलान किए. सरकार ने पहले चरण में 5,94,550 रुपये की राहत का ऐलान किया लेकिन इसमें सरकार को सिर्फ 25,800 ही खर्चने पड़ेंगे.
- वहीं दूसरे चरण में सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए राशन, मुद्रा लोन संबंधी ऐलान, हाउसिंग के लिए ऐलान, किसानों को कर्ज संबंधी ऐलान किए. इस चरण में सरकार ने 3,10,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान किया लेकिन इसमें से भी सरकार को 10,000 रुपये ही खर्चने होंगे.
- तीसरे चरण में सरकार ने फूड इंडस्ट्री, फिशरी, एग्री इंफ्रा से जुड़े ऐलान किए. इसमें भी सरकार ने 1,50,000 करोड़ रुपए की राहत देने का ऐलान किया लेकिन सरकार को सिर्फ 6,000 करोड़ रुपये ही खर्चने होंगे.
- चौथे और पांचवे चरण में सरकार ने वायबिलिटी गैप फंडिंग और मनरेगा को अतिरिक्त राशि देने का 48,100 करोड़ रुपये का ऐलान किया. ये खर्च सरकार ही करेगी.
पैकेज का सबसे बड़ा हिस्सा आरबीआई का 8 लाख करोड़ का लिक्विडिटी पैकेज है. साथ ही सरकार ने ये भी ऐलान किया है कि छोटे कारोबारियों को दिए जाने वाले 3 लाख करोड़ रुपये के कर्ज की 100 फीसदी गारंटी देगी लेकिन इस स्कीम में सरकार की सीमित रकम ही खर्च होने वाली है. क्योंकि सारे लोग डिफाल्ट नहीं करेंगे.
नोमुरा ग्लोबर मार्केट की चीफ इंडिया अर्थशास्त्री सोनल वर्मा का कहना है कि ये पैकेज कई कारोबारों के लिए फौरी चुनौतियों से निपटने में कम पड़ सकता है लेकिन इस पैकेज को इस तरह बनाया गया है कि भारत की मीडियम टर्म ग्रोथ में सुधार करेगा.
सरकार का लक्ष्य है कि कम से कम खर्च करके ज्यादा से ज्यादा बड़ा दिखाया जाए. जितने भी राहत के ऐलान हुए हैं ज्यादातर ऐलान रेगुलेटरी किस्म के हैं. इसके अलावा सरकार ने कोविड-19 की समस्या को ढाल बनाते हुए लंबे वक्त से रुके हुए राजनीतिक रूप से संवेदनशील कदम भी उठाए हैं.सोनल वर्मा, चीफ इंडिया इकॉनमिस्ट, नोमुरा ग्लोबल मार्केट रिसर्च
सरकार पर एडिशनल खर्च क्या है?
ज्यादातर अर्थशास्त्रियों का मानना था कि सरकार इस पैकेज के जरिए सरकारी खर्चों में बढ़ोतरी करेगी. लेकिन 5 हिस्सों की जानकारी को देखने के बाद लगता है कि इसमें सरकारी खर्च का हिस्सा कम ही है.
बारक्लेज के चीफ इंडिया इकनॉमिस्ट राहुल बजोरिया का कहना है कि- सरकार ने 5 चरणों में जिस राहत पैकेज का ऐलान किया है इसका बजट पर फिस्कल असर सिर्फ 1.5 लाख करोड़ रुपये होगा जो कि जी़डीपी का 0.75% है.
अगर इस 20 लाख करोड़ के पैकेज में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज और स्वास्थ्य इंफ्रा को मजबूत बनाने के लिए 15000 करोड़ के आवंटन को जोड़ दें तो कुल खर्च बढ़कर 2.7 लाख करोड़ हो जाएगा जो कि जीडीपी का 1.2 फीसदी होगा.
HSBC सिक्योरिटी की चीफ इंडिया इकनॉमिस्ट प्रांजुल भंडारी कहती हैं- सरकार ने जो इकनॉमिक पैकेज का ऐलान किया है वो और सरकार ने जो मार्च में ऐलान किए थे उसकी फिस्कल लागत करीब 2.13 लाख करोड़ रुपये आएगी जो कि जीडीपी का करीब 1 फीसदी हिस्सा है. उनका मानना है कि कुछ योजनाएं अर्थव्यवस्था को शॉर्ट टर्म में मदद करेंगी लेकिन ज्यादातर का असर मिडियम टर्म में देखने को मिलेगा.
मनरेगा में खर्च, जरूरतमंदों को फ्री अनाज, छोटे कारोबारों को लोन गारंटी इन सब फैसलों से शॉर्ट टर्म में अच्छा असर देखने को मिलेगा. वहीं एग्रीकल्चर मार्केटिंग को बढ़ावा देने के लिए कानून, कॉमर्शियल माइनिंग पॉलिसी को लागू करना और PSU का प्राइवेटाइजेशन करना ये सब मीडियम टर्म में इकनॉमी को फायदा पहुंचा सकता है.प्रांजुल भंडारी, HSBC सिक्योरिटी के चीफ इंडिया इकनॉमिस्ट
जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से इस राहत पैकेज के आने वाले बजट पर फिस्कल असर को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने साफ-साफ जवाब नहीं देते हुए कहा सरकार सुनिश्चित कर रही है कि राहत रकम सही जगह पहुंचे.
क्या इससे डिमांड लौटेगी?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस और पॉलिसी में प्रोफेसर एनआर भानूमूर्ति का मानना है कि सरकार ने जो राहत पैकेज जारी किया है उसका फोकस इकनॉमी की मीडियम और लॉन्ग टर्म स्थिति पर है. हांलाकि शॉर्ट टर्म में ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढ़ाने को लेकर सरकार को और कदम उठाने चाहिए थे. स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव ने क्विंट से कहा कि किसानों को फौरी मदद चाहिए थी, जो उन्हें इस पैकेज में नहीं मिली।
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