ADVERTISEMENTREMOVE AD

1 साल में खाने का तेल हुआ 50% महंगा, समझिए क्यों बढ़ रही है कीमत?

गरीब से लेकर मिडिल क्लास और रिटेलर तक, हर कोई महंगे खाने के तेल से परेशान

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

पेट्रोल-डीजल के आसमान छूते भाव ने तो लोगों का ध्यान खूब खींचा है, लेकिन खाने के तेल में पिछले एक साल में करीब 40-60% की बढ़ोतरी हुई है. एक तरफ कोरोना का हाहाकार है, तो दूसरी तरफ महंगाई की मार है. आपको समझाते हैं कि खाने के तेल की कीमतों में उछाल के पीछे क्या वजहें हैं, बढ़े हुए दाम की वजह से लोगों को कितनी दिक्कतें हो रही हैं और आने वाले दिनों में क्या होगा?

ADVERTISEMENTREMOVE AD
मई 2021 में खाने के तेल की कीमतें 10 साल के उच्चतम स्तरों पर हैं. 90-100 रुपये प्रति लीटर बिकने वाला तेल एक साल के अंदर-अंदर 150-160 में बिक रहा है. हालांकि अब सरकार कह रही है कि ग्लोबल बाजारों में खाने के तेल में गिरावट के बाद भारत में दाम गिरेंगे. ये कहने के बाद भी हफ्तों का वक्त बीत गया, तेल में आग जस की तस लगी हुई है.

गरीब से लेकर रिटेलर तक, हर कोई परेशान

मध्य प्रदेश के दमोह में रहने वाली राजरानी बाई प्राइवेट स्कूल में चपरासी की नौकरी करती हैं. उन्हें करीब 7 महीने से स्कूल से तनख्वाह नहीं मिली है. किराने की दुकान पर उधारी बढ़ती जा रही है. ऊपर से तेल की बढ़ती कीमत ने उनका बोझ और बढ़ा दिया है. पहले वो अपने परिवार के लिए 3 लीटर तेल खरीदा करती थीं लेकिन अब वो 2 लीटर तेल से ही चलाने की कोशिश करती हैं. वो बताती हैं कि उनके घर के आस पड़ोस के हर घर में खाने का तेल महंगा होने की वजह से घर का बजट गड़बड़ा गया है.

रिटेल व्यापारी अनुराग खंडेलवाल बताते हैं कि खाने के तेल करीब-करीब दोगुने महंगे हो गए हैं. उनके कई सारे ग्राहकों ने अपने राशन में तेल की मात्रा में कटौती की है. अमीरों को तो खाने के तेल की बढ़ती कीमतों का ज्यादा असर नहीं पड़ता, लेकिन रोज कमाकर रोज खाने वालों को सबसे ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ता है.

सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) नाम की कारोबारी संस्था के डेटा के मुताबिक क्रूड पाम ऑयल का औसत दाम अप्रैल 2021 में $1,173 प्रति टन था जो कि उसके एक साल पहले सिर्फ $599 ही था. विदेश के साथ-साथ घरेलू सोया तेल की कीमतें भी करीब-करीब दोगुनी बढ़ी हैं

सरकारी डेटा के ही मुताबिक जून 2020 से जून 2021 के बीच ग्राउंडनट ऑयल की कीमतें करीब 20%, सरसों के तेल की कीमत करीब 50%, वनस्पति तेल की कीमत 45% और सनफ्लावर, पाम तेल की कीमतें करीब 60% बढ़ी हैं.

एक साल में 40-60% महंगा हुआ खाने का तेल

  • सनफ्लावर तेल- 60%

  • पाम तेल- 60%

  • सरसों का तेल- 50%

  • वनस्पति तेल- 45%

  • मूंगफली तेल- 20%

*(जून 2020 से जून 2021 के बीच)

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेबर, ट्रांसपोर्ट भी हुआ महंगा

एमपी के सागर क्षेत्र में खाने के तेल के थोक व्यापारी अमर आहूजा बताते हैं कि खाने के तेल में बेतहाशा तेजी से बिक्री पर असर पड़ा है. उनका मानना है कि सरकार किसानों को समर्थन मूल्य में फायदा पहुंचाने की कोशिश करती है जिसकी वजह से जिन्सों की कीमतें बढ़ जाती हैं और तेल महंगा हो जाता है. इसके अलावा वो मानते हैं कि मजदूरी बढ़ी है और पेट्रोल-डीजल बढ़ने की वजह से ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी बढ़ा है. इसके अलावा कई सारे विदेशी कारण भी वो गिनाते हैं जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे.

खाने के तेल में लगी आग

  • सोयाबीन- 90-95 140-150

  • पाम ऑयल- 80-85 140-150

  • सनफ्लावर ऑयल- 100 175

  • सरसों तेल- 100-110 160-170

  • मूंगफली तेल- 112 160-170

(*रिटेल भाव)

ADVERTISEMENTREMOVE AD

खाने के तेल में भारत दूसरे देशों पर निर्भर

खाने के तेल के मामले में भारत अपने उत्पादन का दोगुने से ज्यादा हिस्सा बाहर से इंपोर्ट करता है. भारत का कुल एडिबल ऑयल प्रोडक्शन 7.5-8.5 मिलियन टन है, वहीं भारत विदेशों से 15 मिलियन टन इंपोर्ट करता है. मतलब हमें करीब 70% एडिबल ऑयल विदेशों से मंगाना होता है. अगर दूसरे देशों में हलचल पैदा होती है तो खाने के तेल की कीमतों पर असर होता है और भारत के आम-आदमी की थाली का निवाला महंगा हो जाता है.

विदेशी कारण

क्रूड पाम तेल-

भारत में खाने की तेल की खपत का करीब 40% पॉम आयल है. पैकेज्ड फूड, फास्ट फूड, चॉकलेट, लिप्सटिक, शैम्पू वगैरह बनाने में इस तेल का काफी ज्यादा इस्तेमाल होता है. भारत की इंंपोर्ट लिस्ट में क्रूड ऑयल और गोल्ड के बाद सबसे ज्यादा हिस्सा पाम ऑयल का ही होता है. पूरी दुनिया में पाम ऑयल प्रोडक्शन का करीब 85% हिस्सा इंडोनेशिया और मलेशिया से होता है. लेकिन कोरोना वायरस संकट की वजह से इन देशों में लेबर का संकट पैदा हुआ है. कई दूसरे देशों से काम करने आए मजदूर कोरोना संकट में अपने देशों को लौट गए और पाम ऑयल की फसल पर इसका असर हुआ.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सन फ्लावर ऑयल-

सन फ्लावर ऑयल के मामले में दुनिया में सबसे ज्यादा प्रोडक्शन यूक्रेन और रूस करते हैं. सिर्फ इन दो देशों में ग्लोबल सप्लाई का 50% सनफ्लावर ऑयल तैयार होता है. लेकिन हाल में ही दोनों देशों में सूखा जैसे हालात बने और वहां की फसलों बुरी तरह प्रभावित हुई. इसलिए सप्लाई चेन पर असर हुआ और तेल के दाम बढ़े.

सोयाबीन तेल-

भारत में भी काफी तादाद में सोयाबीन तेल का उत्पादन होता है लेकिन दुनिया में ब्राजील सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक देश है. ब्राजील में भी सूखा पड़ने की वजह से फसलों पर असर हुआ है. इसके अलावा बीते दिनों में चीन में भी तेल की खपत बढ़ी है और उसने खाने का तेल स्टॉक करना शुरू किया है.

सरसों तेल-

उत्तर भारत में सरसों का तेल प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है. इसकी कीमत में भी जबरदस्त तेजी देखने को मिली है. लेकिन इसके पीछे विदेशी कारण नहीं है. भारत में सरसों काफी तादाद में उत्पादित होता है. लेकिन कृषि मंत्री का कहना है कि उन्होंने सरसों के तेल में होने वाली ब्लेंडिंग (दूसरे तेलों की मिलावट) पर नकेल कसी है इसकी वजह से सरसों का तेल महंगा हुआ है. हमने सरसों के तेल उत्पादन से जुड़े लोगों से भी बात की उन्होंने कहा कि ये बात सही है.

दुनिया के मुकाबले भारत में ज्यादा बढ़ी कीमतें

चिंता की बात सिर्फ ये नहीं है कि दुनिया के बाजारों में खाने के तेल की कीमतें बढ़ी हैं. ज्यादा चिंता की बात ये है कि दुनिया में हुई कीमतों की बढ़ोतरी की तुलना में भारत में कुछ ज्यादा ही कीमतें बढ़ी हैं. इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं. थोक व्यापारियों से बात करने पर हमें पता चला कि जब भी किसी चीज की कीमतें बढ़ती हैं और पैनिक बाइंग होती है. कई सारे थोक व्यापारी स्टॉक करके रखने लगते हैं और कीमतें अप्रत्याशित रूप से बढ़ने लगती हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कारोबारियों की संस्था सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) खाने के तेल की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए दो सुझाव देती हैं. उनका मानना है कि जैसे ही खरीफ सीजन की बुआई पूरी होती है तब सरकार को इंपोर्ट ड्यूटी घटा देना चाहिए. इससे घरेलू किसानों का भी नुकसान नहीं होगा. इसके अलावा सरकार को राशन की दुकानों पर सब्सिडी देकर खाने का तेल देना चाहिए.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार खाने के तेल पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाने पर विचार कर रही है. सरकार फिलहाल 32.5% ड्यूटी पाम ऑयल पर और सोयाबीन तेल पर 35% ड्यूटी लगाती है. सरकार अगर टैक्स घटाती है तो तेल के दाम तेजी से नीचे लाए जा सकते हैं.

वहीं कई लोगों की दलील है कि इंपोर्ट ड्यूटी घटाना सही कदम नहीं है, इससे विदेशी कंपनियों को फायदा होता है और हमारे अपने किसानों पर इसका विपरीत असर पड़ता है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

CNBC-TV18 की रिपोर्ट के मुताबिक एक आम भारतीय एक साल में औसतन 19 किलोग्राम तेल की खपत करता है. लेकिन तेल खपत सिर्फ घर में नहीं बल्कि कई सारी इंडस्ट्री से जुड़ी है. चिप्स के पैकेट से सर में लगाने वाले शैम्पू कंपनियों पर बढ़े हुए तेल के दामों का असर हुआ है, उनकी लागत बढ़ चुकी है और इसकी वजह से वो अपने प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ा रहे हैं. तो खाने के तेल से महंगाई की चौतरफा मार पड़ रही है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×