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क्या कहता है रिटेल यूनिवर्स के इन दो सितारों का मिलन?

ऐसी खबरें हैं कि फ्लिपकार्ट फ्यूचर लाइफस्टाइल फैशन में 8-10 फीसदी हिस्सेदारी खरीद सकता है.

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रिटेल किंग किशोर बियानी का फ्यूचर ग्रुप ऑनलाइन रिटेल के सबसे बड़े भारतीय खिलाड़ी फ्लिपकार्ट के साथ हाथ मिलाने जा रहा है. पहली नजर में ये खबर चौंकाती जरूर है, क्योंकि किशोर बियानी उसी फ्लिपकार्ट से हाथ मिलाने जा रहे हैं, जो रिटेल स्पेस में उनका एक बड़ा प्रतिद्वंद्वी है.

ऐसी खबरें हैं कि फ्लिपकार्ट फ्यूचर लाइफस्टाइल फैशन में 8-10 फीसदी हिस्सेदारी खरीद सकता है. इस डील का तौर-तरीका अभी तय होना बाकी है, लेकिन माना जा रहा है कि सीधी साझेदारी फ्लिपकार्ट के फैशन पोर्टल मिंत्रा और फ्यूचर लाइफस्टाइल फैशन के बीच होगी. क्योंकि दोनों ही कंपनियों का फोकस फैशन और लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स पर है. फ्यूचर लाइफस्टाइल सेंट्रल और ब्रांड फैक्टरी के नाम से डिपार्टमेंटल स्टोर चलाता है और इसके देश के 90 शहरों में करीब 400 स्टोर्स हैं. इसके पोर्टफोलियो में दो दर्जन से ज्यादा देसी-विदेशी ब्रांड हैं जिनमें मुख्य हैं ली कूपर, इंडिगो नेशन, जॉन मिलर और स्कलर्स.

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रिटेल सेक्टर में दिख रहा है नया रूझान

फ्लिपकार्ट- फ्यूचर ग्रुप की ये साझेदारी रिटेल सेक्टर में एक नए तरह के रूझान को आगे बढ़ा रही है. ये हलचल साफ तौर पर कंसोलिडेशन की आहट है. कुछ पुराने खिलाड़ी जहां अपनी किस्मत आजमाकर मैदान छोड़ चुके हैं, तो वहीं कुछ नई रणनीतियों के सहारे अपने आप को टिकाए रखने की कोशिश में लगे हैं. ई-कॉमर्स दिग्गज ऑफलाइन चैनल का सहारा ले रहे हैं, तो ऑफलाइन रिटेलर्स शॉपिंग वेबसाइटों के साथ हाथ मिला रहे हैं. इसी महीने फ्यूचर ग्रुप ने रिटेल चेन हाइपरसिटी को खरीदने का समझौता किया है. ये सौदा पूरा होने के बाद हाइपरसिटी फ्यूचर रिटेल की सब्सिडियरी बन जाएगी.

इसके पहले फ्यूचर ग्रुप ईजीडे, हेरिटेज और नीलगिरी जैसी रिटेल चेन्स को खरीद चुका है. इसके पहले सितंबर में फ्लिपकार्ट की मुख्य प्रतिद्वंद्वी अमेजॉन ने शॉपर्स स्टॉप में 5 फीसदी हिस्सा खरीदा था. समझौते के तहत शॉपर्स स्टॉप 500 से ज्यादा ब्रांड के अपने पूरे पोर्टफोलियो को अमेजॉन के मार्केटप्लेस पर रखेगा. इससे शॉपर्स स्टॉप को छोटे शहरों के खरीदारों तक पहुंचने का मौका मिलेगा.

मिंत्रा देश भर में अपने फैशन रिटेल स्टोर्स खोलने की योजना पर काफी दिनों से काम कर रही है. कंपनी दो अंतरराष्ट्रीय ब्रांड मैंगो और स्प्रिट के स्टोर्स चलाने का करार भी कर चुकी है. फ्लिपकार्ट ने मिंत्रा के बाद जबॉन्ग और ईबे के इंडिया बिजनेस को भी खरीद लिया था.

डिस्काउंट के सहारे कब तक बनेगा बाजार

देश में ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल्स का बिजनेस फैलने की बड़ी वजह थी भारी डिस्काउंट और आकर्षक ऑफर. इससे लोगों को ऑनलाइन शॉपिंग की आदत जरूर लगी है, लेकिन अभी तक ये बिजनेस फायदे में नहीं आ पाया है. मिंत्रा, जबॉन्ग और ईबे इंडिया के फ्लिपकार्ट के साथ विलय के पीछे यही वजह थी कि इन कंपनियों के प्रोमोटर प्राइस वॉर में टिके रहने के लिए जरूरी फंड नहीं जुटा पाए.

स्नैपडील भी इसी दिक्कत से जूझ रहा है और माना जा रहा है कि इसका विलय भी फ्लिपकार्ट या अमेजॉन के साथ हो जाएगा. कई दूसरे रिटेल प्लेयर्स तो अपने ई-कॉमर्स पोर्टल बंद करने का फैसला भी कर चुके हैं. साल के लिए आदित्य बिड़ला ग्रुप का पोर्टल एबॉफ डॉट कॉम 31 दिसंबर तक बंद हो जाएगा. अक्टूबर 2015 में खुला एबॉफ ने 2 साल तक मुकाबला करने के बाद हार मान ली.

फ्यूचर ग्रुप ने भी अपने ऑनलाइन बिजनेस में करीब 250 करोड़ रुपए का नुकसान झेलने के बाद इसमें और निवेश नहीं करने का फैसला किया है. कंपनी का पहला ऑनलाइन वेंचर बिग बाजार डायरेक्ट और ऑनलाइन फर्निचर स्टोर फैबफर्निश बंद हो चुके हैं. रिलायंस इंडस्ट्रीज का एजियो और टाटा ग्रुप का टाटाक्लिक चल तो रहे हैं, लेकिन इनका बिजनेस अमेजॉन, फ्लिपकार्ट या पेटीएम के मुकाबले ना के बराबर है.

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हजारों करोड़ का घाटा झेल रही हैं ई-कॉमर्स कंपनियां

लेकिन ऐसा नहीं है कि अमेजॉन, फ्लिपकार्ट या पेटीएम जैसी कंपनियां फायदे में हैं. ये कंपनियां भले ही हजारों करोड़ का टर्नओवर दिखाती हैं, लेकिन इनकी बैलेंस शीट में मुनाफा दूर-दूर तक नहीं दिखता. फाइनेंशियल ईयर 2016 में इन तीनों कंपनियों का घाटा कुल मिलाकर करीब 8,000 करोड़ रुपए था. अमेजॉन को इस साल 3,572 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था, जबकि फ्लिपकार्ट को 2,850 करोड़ रुपए का. पेटीएम ने भी 1,549 करोड़ रुपए का घाटा अपनी बैलेंस शीट में दिखाया था.

रेडसीर कंसल्टिंग की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ फेस्टिवल सीजन में देश की ई-कॉमर्स कंपनियों की बिक्री करीब 10,000 करोड़ रुपए की होगी. लेकिन ये बढ़ती बिक्री इन कंपनियों के घाटे में इजाफा ही करेगी. सिर्फ फेस्टिवल सीजन में ई-कॉमर्स कंपनियां करीब 2,600 करोड़ रुपए का घाटा झेल रही होंगी.
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जल्दी खत्म होगा भारी डिस्काउंट का दौर

ये कोई नहीं जानता कि सिर्फ डिस्काउंट के सहारे अब तक शॉपर्स को लुभा रही ई-कॉमर्स कंपनियां कब तक ऐसा कर सकेंगी. लेकिन ये बात साफ है कि इस खेल में वही टिकेगा जिसकी जेब भारी होगी. यही वजह है कि चाहे ऑफलाइन रिटेल हो या ऑनलाइन, दबदबा गिने-चुने नामों का ही दिखता है. ऐसे में ऑफलाइन रिटेल के सबसे बड़े खिलाड़ी फ्यूचर ग्रुप और ऑनलाइन रिटेल के सबसे बड़े नाम फ्लिपकार्ट का हाथ मिलाना अहमियत रखता है.

इसे आप रिटेल यूनिवर्स के दो सितारों का मिलन भी मान सकते हैं. लेकिन ये संकेत है कि अब तक डिस्काउंट के सहारे बाजार बना रही कंपनियां आने वाले दिनों में मुनाफा कमाने पर फोकस करने जा रही हैं. इसका मतलब कंज्यूमर के लिए 50 से 90% तक की छूट जैसे ऑफरों का खत्म होना होगा. लेकिन क्या ऐसा होना तय नहीं था?

(धीरज कुमार जाने-माने जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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