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गिग इकनॉमी: परमानेंट की जगह बढ़ रहा है फ्रीलांस जॉब का चलन

अगर आप मानसिक रूप से घटती बढ़ती इनकम के लिए तैयार हैं, तो गिग इकनॉमी में आपका स्वागत है

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अच्छी नौकरी, बढ़िया पैसे और खूब सारी वीकेंड मस्ती. नई पीढ़ी के नौजवानों के लिए करियर का यही मतलब है. लेकिन जब देश में कई बड़े एंप्लॉयर की तरफ से छंटनी की खबरें आ रही हों, तो स्वाभाविक तौर पर ऐसे करियर के मौके कम ही मिलेंगे.

हालांकि अगर आपमें कोई स्पेशल स्किल है, आप अपने विषय में एक्सपर्ट हैं और आपको अपने टैलेंट पर भरोसा है, तो फिर आपको स्थायी तौर पर कहीं नौकरी ढूंढने की जरूरत नहीं है. नौकरी आपको ढूंढते हुए आपके पास आएगी.

पूरी दुनिया में ये ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है और इसे नाम दिया गया है ‘गिग’ इकनॉमी. ‘गिग’ अंग्रेजी का शब्द है और इसके कई मतलब हैं, जिसमें से एक है किसी म्‍यूजिशियन या म्‍यूजिक बैंड का परफॉर्मेंस.

‘गिग’ इकनॉमी का नाम भी यहीं से आया है, जिसमें एक म्‍यूजिशियन या म्‍यूजिक बैंड की तरह वर्कर किसी कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं और पैसे लेकर चले जाते हैं. आप इन्हें इंडिपेंडेंट वर्कर भी कह सकते हैं और इनमें फ्रीलांसर, कंसल्टेंट, टेंपररी स्टाफ और ऑन-कॉल वर्कर भी शामिल होते हैं.

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एमबीओ पार्टनर्स के स्टेट ऑफ इंडिपेंडेंस इन अमेरिका सर्वे के मुताबिक, अमेरिका में करीब 4 करोड़ लोग फ्रीलांसर हैं और इनमें से करीब अस्सी लाख लोग सालाना एक लाख डॉलर से ज्यादा कमा रहे हैं. अमेरिका में गिग इकोनॉमी वर्कफोर्स की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि कुल प्राइवेट नौकरियों का करीब 31 फीसदी हिस्सा इंडिपेंडेंट वर्कफोर्स का है.

इसी सर्वे में शामिल टेंपररी वर्कफोर्स के 74 फीसदी लोगों ने बताया कि वो अपने काम और लाइफस्टाइल से बेहद संतुष्ट हैं, जबकि 65 फीसदी ने बताया कि वो स्वेच्छा से फ्रीलांसर बने हैं.

हमारे देश में भी गिग इकनॉमी वर्कफोर्स का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है.आपको ये जानकर हैरानी हो सकती है कि इस वक्त देश में करीब डेढ़ करोड़ ऐसे वर्कर हैं, जो स्थायी नौकरी की बजाय अस्थायी नौकरी या टेंपररी जॉब को प्राथमिकता देते हैं.

इनमें से कुछ मौके पहचानकर गिग इकोनॉमी का हिस्सा बने तो कुछ मजबूरी में. लेकिन पिछले पांच सालों में जब से देश में आईटी स्टार्टअप तेजी से बढ़ने शुरू हुए, गिग इकोनॉमी वर्कफोर्स की तादाद भी तेजी से बढ़ी है.

आज तो देश की तमाम आईटी कंपनियां कॉस्ट कटिंग और बेहतर एफिशियंसी के मकसद से बड़ी तादाद में टेंपररी स्टाफ भर्ती कर रही हैं. फिर चाहे वो इंफोसिस और विप्रो जैसी बड़ी कंपनियां हों या फिर माइंडट्री और पर्सिस्टेंट सिस्टम जैसी मिडसाइज कंपनियां.

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अमेरिका में तो आईटी और आईटी इनेबल्ड सर्विसेज कंपनियों में काम कर रहे स्थायी कर्मचारियों से कहीं ज्यादा तादाद अस्थायी कर्मचारियों की है. भारत में अभी वैसी स्थिति नहीं आई है, लेकिन ये ट्रेंड तेजी से जोर पकड़ रहा है. कई ऐसी इंटरनेशनल कंपनियां हैं, जो फ्रीलांस वर्करों के लिए एग्रीगेटर का काम कर रही हैं. इनमें एलांस, अपवर्क, फ्रीलांसर जैसे नाम हैं.

वहीं भारत में टीमलीज, एवेन्यू ग्रोथ और टूगिट जैसे नाम हैं, जो आपको गिग इकनॉमी वर्कफोर्स का हिस्सा बनने में मदद कर सकते हैं. टीमलीज अब तक देश में करीब 16 लाख लोगों को अलग-अलग 1900 कंपनियों में अस्थायी नौकरी दिला चुकी है.

अगर आप भी गिग इकनॉमी वर्कफोर्स का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो आपको अपनी स्किल के हिसाब से शुरुआत करनी होगी. आईटी सर्विसेज के अलावा आर्टिकल राइटिंग, एजुकेशन एंड ट्रेनिंग और कंप्यूटर एनिमेशन जैसे सेक्टरों में आप काम ढूंढ सकते हैं.

आईटी सर्विसेज में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, नेटवर्क डिजाइनिंग और कोडिंग जैसे काम की भारी मांग है. इसके अलावा ग्राफिक डिजाइनिंग, सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन और इंटरनेट मार्केटिंग जैसे काम भी बड़ी तादाद में मौजूद हैं.

गिग वर्कर होने का बड़ा फायदा यही है कि आपको अपनी मर्जी से काम करने की छूट मिलती है. जब तक कोई प्रोजेक्ट या कॉन्ट्रैक्ट हाथ में है, तब तक काम करें, और फिर जब तक मन करें, छुट्टियां ले लें. लेकिन इसका एक नुकसान भी है कि आपकी कमाई तय नहीं होती.

हो सकता है किसी महीने आपकी इनकम बेहद अच्छी हो जाए और अगले महीने आपको खाली हाथ रह जाना पड़े. अगर आप इस तरह के उतार-चढ़ाव को झेलने के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं, तो फिर दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहे गिग इकनॉमी में आपका स्वागत है.

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