कोरोना वायरस महामारी के इस दौर में ‘आर्थिक इमरजेंसी’ का फायदा उठाकर कर विदेशी निवेशक भारतीय कंपनियों पर कब्जा न जमा लें, इसके लिए सरकार ने फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट पॉलिसी में बड़ा बदलाव किया है. सरकार ने तय किया है कि अब जिन देशों की सीमा भारत से लगती है कि उन्हें सरकार से मंजूरी के बाद ही निवेश की अनुमति मिलेगी.
DPIIT की तरफ से जारी प्रेस नोट में लिखा गया है, 'कोरोना वायरस महामारी के दौर में भारत सरकार ने अवसरवादियों को भारतीय कंपनियों के अधिग्रहण से रोकने के लिए मौजूदा एफडीआई नीति की समीक्षा की है.'
भारत के साथ जमीनी सीमाएं साझा करने वाले देशों में चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, म्यांमार और अफगानिस्तान शामिल हैं
डीपीआईआईटी ने बताया, ‘‘भारत के साथ जमीनी सीमा साझा करने वाले देशों के यूनिट अब यहां सिर्फ सरकार की मंजूरी के बाद ही निवेश कर सकते हैं. भारत में होने वाले किसी निवेश के लाभार्थी भी अगर इन देशों से होंगे या इन देशों के नागरिक होंगे, तो ऐसे निवेश के लिये भी सरकारी मंजूरी लेने की आवश्यकता होगी.’’
सरकार के इस फैसले से चीन जैसे देशों से आने वाले विदेशी निवेश पर प्रभाव पड़ सकता है. सरकार ने कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर घरेलू कंपनियों को प्रतिकूल परिस्थितियों का फायदा उठाते हुये बेहतर अवसर देखकर खरीदने की कोशिशों को रोकने के लिये यह कदम उठाया है.
पाकिस्तान पर पहले से ही लागू है ये नियम
पाकिस्तान के निवेशकों पर इस तरह की शर्त पहले से लागू है. पाकिस्तान का कोई नागरिक अथवा पाकिस्तान में बनी कोई भी कंपनी केवल सरकारी मंजूरी के जरिये ही प्रतिबंधित क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं. रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा और कुछ अन्य क्षेत्रों में विदेशी निवेश प्रतिबंधित है.
बयान में कहा गया कि सरकार ने मौजूदा हालात का फायदा उठाकर भारतीय कंपनियों को खरीदने की हो सकने वाली कोशिशों को रोकने के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति की समीक्षा की गई है. विभाग ने बताया कि किसी भारतीय कंपनी में मौजूदा एफडीआई या भविष्य के एफडीआई से मालिकाना हक बदलता है और इस तरह के सौदों में लाभार्थी भारत से सीमा साझा करने वाले देशों में स्थित होता है या वहां का नागरिक है, तो इनके लिये भी सरकार की मंजूरी की जरूरत होगी.’
ये सही वक्त: एक्सपर्ट
नांगिया एंडरसन एलएलपी के निदेशक संदीप झुनझुनवाला ने इस बारे में कहा कि भारत-चीन आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिषद के आकलन के अनुसार, चीन के निवेशकों ने भारतीय स्टार्टअप में करीब चार अरब डॉलर निवेश किये हैं. उन्होंने कहा, ‘‘उनके निवेश की रफ्तार इतनी अधिक है कि भारत के 30 यूनिकॉर्न में से 18 को चीन से वित्तपोषण मिला हुआ है.चीन की प्रौद्योगिकी कंपनियों के कारण उत्पन्न हो रही चुनौतियों को रोकने के लिये कदम उठाने का यही सही समय है.’’
बता दें कि दिसंबर 2019 से अप्रैल 2000 के दौरान भारत में चीन से 2.34 अरब डॉलर यानी 14,846 करोड़ रुपये के एफडीआई मिले हैं.
चीनी बैंक ने बढ़ाई थी HDFC में हिस्सेदारी
हाल ही में चीन के सेंट्रल बैंक ने होम लोन देने वाली HDFC लिमिटेड में मार्च तिमाही में अपनी हिस्सेदारी 0.8% से बढ़ाकर 1.01% कर ली. शेयर बाजार के पास मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, मार्च महीने के आखिरी में पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना के पास एचडीएफसी के करीब 1.75 इक्विटी शेयर थे जो 1.01 फीसदी शेयर कैपिटल के बराबर हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी बैंक भारत में इंवेस्टमेंट के नए अवसर तलाश रहे हैं और HDFC में हिस्सेदारी इसी के तहत की गई है.
HDFC में हिस्सेदारी बढ़ाने की इस खबर के बाद से ही प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गईं थीं.कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा था कि आर्थिक मंदी ने कई इंडियन कॉरपोरेट्स को कमजोर कर दिया, ऐसे में सरकार को खयाल रखना चाहिए कि भारतीय कंपनियों पर विदेशी कंपनियां नियंत्रण न कर सकें.
हालांकि, उन्होंने अपने ट्वीट में HDFC का जिक्र नहीं किया था. अब सरकार ने बड़े बदलाव का ऐलान कर दिया है. ऐसे में राहुल गांधी ने ट्वीट कर सरकार को शुक्रिया कहा है.
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