‘पारदर्शी कराधान – ईमानदार का सम्मान’ यानी ‘Transparent Taxation – Honoring the Honest’ प्लेटफॉर्म के एलान के वक्त प्रधानमंत्री ने मायूसी जतायी कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने वाले आयकरदाताओं की संख्या महज 1.5 करोड़ है. भारत में प्रत्यक्ष करदाताओं के बेहद मामूली अनुपात को लेकर पिछली सरकारें भी चिन्तित रही हैं.
इसके लिए हमेशा टैक्स चोरी को ही जिम्मेदार बताया जाता रहा है. तो क्या अब 21 वीं सदी के टैक्स सिस्टम के आने से पूरी तस्वीर बदल जाएगी? नये सिस्टम में जिस Faceless Assessment, Faceless Appeal और Taxpayers Charter की बातें की गयी हैं, इसमें नया क्या और कैसे है तथा इससे किसे फायदा होगा?
इन जिज्ञासाओं का सबसे आसान और प्रमाणिक जवाब हमें 2019 के सबसे बड़े सरकारी और वित्तीय दस्तावेज ‘आर्थिक सर्वे’ में मिलता है. देश के आयकर ढांचे को देखें तो पाएंगे कि अभी देश में कुल 5.78 करोड़ आयकर रिटर्न सालाना दाखिल होते हैं. इनमें 1.46 करोड़ लोग वास्तव में टैक्स देते हैं. जबकि बाकी 4.32 करोड़ लोग जीरो आयकर वाले रिटर्न दाखिल करते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो करीब डेढ़ करोड़ लोग ऐसे वेतनभोगी या व्यावसायी हैं जो 5000 रुपये से लेकर करोड़ों रुपये तक का आयकर चुकाते हैं. इनमें से 46 लाख ऐसे करदाता हैं, जिनकी सालाना आमदनी 10 लाख से ज्यादा है. जबकि 3.16 लाख ऐसे करदाता हैं जिनकी सालाना आमदनी 50 लाख से ज़्यादा है.
नए सिस्टम से किसे फायदा
2019 के आर्थिक सर्वे के अनुसार, उस वर्ष दाखिल हुए इनकम टैक्स रिटर्न्स में देश में कुल 34.01 लाख करोड़ रुपये की आमदनी की घोषणाए हुई थीं. इसमें से करीब 20 लाख करोड़ रुपये की आमदनी उन वेतनभोगियों की थी, जिनका इनकम टैक्स आमतौर पर टीडीएस के प्रावधानों के तहत कट जाता है. इसमें बैंकों में जमा रुपयों पर मिलने वाले ब्याज और उस पर देय टीडीएस भी शामिल है. बाकी जो लेन-देन पैन कार्ड के जरिए होता है, वहां भी टीडीएस का हिसाब लगाकर अग्रिम टैक्स लिया जाता है. आमतौर पर वेतनभोगी समुदाय का आयकर विभाग से कोई विवाद नहीं होता. लिहाजा, 13 अगस्त को घोषित नयी पारदर्शी व्यवस्था का वेतनभोगियों वाले देश के सबसे बड़े आयकरदाता समुदाय पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
वेतनभोगियों के बाद आयकर भरने वाले दूसरा सबसे बड़ा समुदाय व्यावसायियों और कारोबारियों का है. आर्थिक सर्वे के अनुसार, 2019 में व्यावयासी समुदाय ने अपनी कुल आमदनी 9.3 लाख करोड़ रुपये घोषित की. सीधे तौर पर देखें तो इसी आमदनी का वास्ता आयकर विभाग के एसेसमेंट, स्क्रूटनी, अपील और छापों से पड़ता है. इस समुदाय में महज 3 से लेकर 4 लाख लोग ही आते हैं.
जाहिर है कि 130 करोड़ के देश में ज्यादा से ज्यादा यही तीन लाख लोग नये प्लेटफॉर्म के लक्ष्य के मुताबिक, ‘ईमानदार का सम्मान’ पाने वाले बन सकते हैं. अब चूंकि बीते 6 सालों में सरकार ने रिटर्न की स्क्रूटनी के मामलों को चार गुना घटा दिया है. इसका मतलब हुआ कि आयकर रिटर्न दाखिल करने वाले कुल 5.78 करोड़ लोगों में से सिर्फ 1.5 लाख लोगों के मामले ही स्क्रूटनी में जाएंगे.
खुद प्रधानमंत्री ने बताया है कि ‘वर्ष 2012-13 में जहां 0.94 फीसदी टैक्स रिटर्न्स की स्क्रूटनी होती थी, वो वर्ष 2018-19 में घटकर 0.26 फीसदी पर आ चुकी है.’ अब यदि आयकर विभाग को ये लगा कि इन डेढ़ लाख लोगों में से सारे के सारे टैक्स चोरी करने वाले हैं तो नये फेसलेस सिस्टम के लाभार्थी यही डेढ़ लाख लोग बनेंगे और इन्हें ही फेसलेस सिस्टम से अपनी ईमानदारी के लिए सम्मानित होने के मौके का फायदा उठाना होगा. व्यावहारिक तौर पर देखें तो 130 करोड़ लोगों में से 1.5 लाख का अनुपात 0.086 फीसदी बैठेगा. साफ है कि Faceless Assessment, Faceless Appeal और Taxpayers Charter की बातों के ज्यादा से ज्यादा सालाना डेढ़ लाख लाभार्थी ही हो सकते हैं.
मामला फंसता कहां है?
बेशक, नये सिस्टम में फेसलेस वाले तत्व प्रगतिशील और सुधार का ही प्रतीक हैं. जबकि ‘टेक्सपेयर्स चार्टर’ वाले प्रावधान पुरानी व्यवस्था वाले ही हैं. टैक्स पेयर्स चार्टर के विस्तृत प्रावधानों में आयकर विभाग के छापों या सर्वे के वक्त भी करदाता के अधिकार बाकायदा निर्धारित और निश्चित हैं. वही बातें अब भी कायम रहेंगी. नया कुछ नहीं है. दरअसल, आयकर विभाग पहली नजर में सभी करदाताओं को ईमानदार मानकर ही चलता है. इसीलिए सबको सेल्फ एसेसमेंट की सुविधा मिलती है.
सेल्फ एसेसमेंट का मतलब ये है कि जब हम आयकर रिटर्न भरते हैं तब हम अपनी जो आमदनी घोषित करके जितना टैक्स भरते हैं, उसे देखकर यदि आयकर विभाग को लगता है कि हमने अपनी कुछ आमदनी छिपायी है तो वो हमारे टैक्स का एसेसमेंट (आंकलन) करता है. ऐसे एसेसमेंट या स्क्रूटनी के मामलों को कम्प्यूटर के जरिए छांटा जाता है
यदि हम आयकर विभाग के एसेसमेंट के मुताबिक अतिरिक्त टैक्स भरने के लिए राजी हो जाते हैं तो बात वहीं खत्म हो जाती है और यदि हमें लगता है कि आयकर विभाग हमारा सही आंकलन नहीं कर रहा तो हम विभाग के एसेसमेंट को आयकर ट्राइबुनल में चुनौती देते हैं और यदि यहां पर भी हमारे विवाद या अपील का निपटारा नहीं हो पाता तो मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है.
अभी तक एसेसमेंट और अपील का काम आयकर अधिकारी या आयकर ट्राइबुनल के सामने प्रत्यक्ष तौर पर करदाता से रूबरू होकर किया जाता था, लेकिन नयी फेसलेस व्यवस्था में ये दोनों काम पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत और अप्रत्यक्ष बना दिये गये हैं. यानी अब करदाता या उसके चार्टर्ड एकाउटेंट को आयकर अधिकारियों से सेटिंग करके मामले को रफा-दफा करने का मौका नहीं मिलेगा. क्योंकि पहले होता ये था आयकर अधिकारी उस रकम की चोरी में हिस्सेदार बनकर करदाता से रुपये ऐंठते थे जिसे वास्तव में सरकारी खजाने में जमा होना चाहिए था. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि ‘तू डाल-डाल तो मैं पात-पात’ वाला सरकारी रिश्वतखोर सिस्टम नये प्लेटफॉर्म की आंख में धूल झोंकने की क्या-क्या तरकीबें निकालेगा? सारी योजना की सफलता इसी यक्ष-प्रश्न के उत्तर में निहित रहेगी.
2019 के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, 34.01 लाख करोड़ रुपये वाली देश की कुल घोषित आमदनी में से 1.9 लाख करोड़ रुपये की हिस्सेदारी बैंकों के ब्याज से होने वाली कमाई की है. इस कमाई को पाने वालों में वेतनभोगी और व्यावसायी दोनों समुदाय के लोग शामिल हैं. हालांकि, ब्याज की कमाई करने वालों में वेतनभोगियों की हिस्सेदारी कहीं ज्यादा है. चूंकि ब्याज भी टीडीएस के दायरे में है, इसीलिए वेतनभोगियों को ईमानदार टैक्स-पेयर्स माना जाता है. ये तबका टैक्स बचाने के लिए जो उपाय अपनाता है, वो कानूनी होते हैं और टैक्स चोरी नहीं माने जाते.
बाकी टैक्स का क्या?
एक बात और ध्यान रखने वाली है कि नया फ्लेटफॉर्म सिर्फ इनकम टैक्स से सम्बन्धित है. इसका अप्रत्यक्ष कर या जीएसटी या सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क जैसे टैक्स के प्रशासन-तंत्र पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जबकि व्यावसायी समुदाय का वास्ता इन विभागों के अफसरों से कहीं ज्यादा पड़ता है. यानी, जिन्हें सहूलियत देने की बातें हुई हैं, उन्हें भी राहत तो आंशिक ही मिलने वाली है. देश में आयकरदाताओं की संख्या कम है, क्योंकि अभी तक हमारी राजनीतिक इच्छा-शक्ति कृषि-आय को परिभाषित नहीं कर पायी है.
कृषि-आय पर टैक्स नहीं लगता. इसीलिए देश की बहुत बड़ी आबादी आयकर के दायरे से बाहर है. कृषि-आय की आड़ में अच्छी खासी टैक्स चोरी को नकारा नहीं जा सकता. टैक्स चोरी का दूसरा ज्ञात क्षेत्र है हाउसिंग प्रापर्टी से होने वाली आमदनी. 2019 के आर्थिक सर्वे ने बताया था कि देश में सिर्फ 37,448 करोड़ रुपये की आमदनी ही हाउसिंग प्रापर्टी से प्राप्त होती है. विशेषज्ञों की नजर में ये आमदनी बहुत कम है.
तीसरी गड़बड़ी उन टैक्स माफी योजनाओं की वजह से है जिन्हें सरकारें हरेक दो-तीन साल पर लेकर आती रही हैं. इसी तरह, देश को अभी तक नहीं मालूम कि 2016 की नोटबंदी के बाद जो काला धन बैंकों में पहुंचकर सफेद बन गया, उसके आंकड़ों से आयकर विभाग ने कितने नये टैक्स पेयर्स का इजाफा किया और कितना टैक्स वसूला गया? यहां तक कि संसद भी इसकी सच्चाई से अंजान है.
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