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क्या मोदी सरकार की GDP ग्रोथ UPA से बेहतर? इन 6 पैमानों पर परखें 

मोदी सरकार की जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) बेहतर है या मनमोहन सरकार की

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मोदी सरकार की जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) बेहतर है या मनमोहन सरकार की. 2018 में बैठकर 2005 की जीडीपी कैलकुलेट करने का अनोखा काम चल रहा है जो कॉमेडी शो जैसा लग रहा है क्योंकि इसकी थीम है ‘मेरी कमीज तेरी कमीज से अधिक सफेद है’.

2015 में सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑर्गनाइजेशन (सीएसओ) ने नई जीडीपी सीरीज के लिए 2011-12 को बेस ईयर बनाया था. इसके मुताबिकवित्त साल 2006-07 से 2011-12 (मनमोहन सरकार) के दौरान औसत जीडीपी ग्रोथ 6.7 परसेंट ही रही. जबकि पुरानी सीरीज में यह 8 परसेंट थी. नई सीरीज में 2012-13 से 2017-18 के बीच औसत जीडीपी ग्रोथ 6.9 परसेंट बताई गई है.

ज्यादातर इकनॉमिस्ट इस तरीके पर सवाल उठा रहे हैं कि एनडीए ये दिखाना चाहता है कि उसके विकास की कमीज यूपीए के मुकाबले ज्यादा सफेद है.

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आइए मोदी सरकार के दावे को परखते हैं

इस दावे को टैक्स कलेक्शन, लोन, और इनवेस्टमेंट के पैमाने पर रखें तो पता चलता है कि एनडीए सरकार के जीडीपी दावे में कई झोल हैं.

1. लोन ग्रोथ

साल 2006-07 से 2011-12 के बीच बैंकों की लोन ग्रोथ 20.3 परसेंट थी. लेकिन मोदी सरकार के चार साल के दौरान ये 12.3 परसेंट ही रही. लोन ग्रोथ का मतलब यही है कि उद्योग धंधे लगाने की रफ्तार बढ़ रही है. इकनॉमी की रफ्तार बढ़ती है तो लोन में भी तेजी आती है. मोदी सरकार के वक्त लोन ग्रोथ आधी है, यानी इस पैमाने पर जीडीपी के बैक सीरीज के डेटा सही नहीं लगते.

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2. कंपनियों के मुनाफे में बढ़ोतरी

विकास का एक और पैमाना है कंपनियों के मुनाफे की ग्रोथ. यूपीए राज में 2006 से 2014 के बीच बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के बीएसई-500 इंडेक्स में शामिल कंपनियों के मुनाफे की ग्रोथ 11 परसेंट ही रही. मोदी सरकार के चार साल के राज में ग्रोथ रेट बहुत ही मामूली सिंगल डिजिट में रही. अगर तेज ग्रोथ रेट होती तो डिमांड अधिक होती है, तो कंपनियों का मुनाफा बढ़ता है.

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3. टैक्स कलेक्शन क्या कहता है...

जीडीपी का सबसे ठोस पैमाना है टैक्स वसूली. साल 2006-07 से 2011-12 के बीच टैक्स कलेक्शन में सालाना 16.5 परसेंट बढ़ोतरी हुई. लेकिन 2012-13 से 2017-18 के बीच ये घटकर सिर्फ 13.8 परसेंट ही रह गई.

अगर यह मान लें कि एनडीए सरकार में जीडीपी ग्रोथ यूपीए सरकार के मुकाबले ज्यादा तेज रही तो उसका असर टैक्स कलेक्शन पर क्यों नहीं दिखा? यह बात खासतौर पर इसलिए भी हैरान करने वाली है क्योंकि सरकार लगातार कह रही है कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे सुधारों से टैक्स का दायरा बढ़ा है.

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4. इनवेस्टमेंट का हाल

टैक्स कलेक्शन की तरह इनवेस्टमेंट को भी जीडीपी का एक अहम पैमाना माना जाता है. जब मांग अधिक होती है, तब कंपनियां सप्लाई बढ़ाने के लिए प्रोडक्शन क्षमता बढ़ाती हैं. इसके लिए उन्हें अधिक निवेश करना पड़ता है. अर्थशास्त्र में इसे ग्रॉस कैपिटल फॉर्मेशन से मापा जाता है. 2006-07 से 2011-12 के बीच ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन में औसतन 10.7 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई, जो अगले 6 साल में घटकर 5.3 पर्सेंट रह गई.

5. महंगाई दर के सिग्नल

मोदी सरकार के दौरान रिटेल महंगाई दर से कमजोर डिमांड का संकेत मिलता है. जब डिमांड में तेज बढ़ोतरी होती है तो महंगाई दर भी तेजी से बढ़ती है. हालांकि साल 2012-13 से 2017-18 के बीच रिटेल महंगाई दर में 6.47 परसेंट की बढ़ोतरी हुई. जबकि 2006-07 से 2011-12 तक यह 9.6 परसेंट थी.

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6. लंबी अवधि में ग्रोथ की क्षमता क्या है?

पुरानी सीरीज के हिसाब से सबसे ज्यादा ग्रोथ 2010-11 में 10.26 परसेंट थी. जो नई सीरीज में घटकर 8.5 परसेंट ही रह गई है. इसका मतलब यह है कि देश की लॉन्ग टर्म ग्रोथ की क्षमता पहले के अनुमान से कम है. इसका असर देश में होने वाले निवेश पर पड़ सकता है क्योंकि विदेशी निवेशक पैसा लगाते वक्त इस बात का जरूर ध्यान रखते हैं.

सरकारें अक्सर अपने प्रदर्शन को दूसरी सरकारों के मुकाबले अच्छा बताती हैं, लेकिन युद्ध का ये नियम भी है कि ऐसा करते वक्त यह ख्याल रखना चाहिए कि देश की विश्वसनीयता पर आंच नहीं आना चाहिए.

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