हर महीने की एक तारीख को आपके बैंक अकाउंट में अगर सैलरी के तौर पर 50,000 रुपये जमा होते हों और फिर किसी महीने वो घटकर 48,000 रह जाएं, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? आपको ऐसा महसूस होगा कि जैसे आपकी सैलरी में कटौती कर दी गई है.
कुछ ऐसा ही होता है उन लोगों के साथ जिनकी नियमित आय का स्रोत होती हैं छोटी बचत योजनाएं और इन योजनाओं पर मिलने वाला ब्याज सरकार कम कर देती है.
पीपीएफ, किसान विकास पत्र, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट और सीनियर सिटिजन सेविंग्स स्कीम जैसी बचत योजनाओं पर मिलने वाले ब्याज में 1 जुलाई से 10 बेसिस प्वॉइंट यानी 0.10% की कमी कर दी गई है.
अब सरकार इन बचत योजनाओं के ब्याज दर की समीक्षा हर तिमाही करती है. जिस तरह से बैंकों की ब्याज दरें लगातार कम हो रही हैं, इन योजनाओं पर मिलने वाला ब्याज आगे भी कम ही होता जाएगा.
सिर्फ पिछले एक साल में इन योजनाओं पर मिलने वाला ब्याज 0.30% कम हो चुका है. (देखें ग्राफिक्स) ऐसे में निवेशकों को इस बात पर सोचना जरूर चाहिए कि क्या वो कम होते रिटर्न के साथ इन्हीं बचत योजनाओं में बने रहेंगे या दूसरे विकल्पों की तलाश करेंगे.
अगर ये छोटी बचत योजनाएं आपके निवेश पोर्टफोलियो का हिस्सा हैं, जिनमें इक्विटी, गोल्ड या दूसरे एसेट्स भी हैं, तो शायद आपकी प्लानिंग पर इनमें कटौती का ज्यादा असर न पड़े. लेकिन उन लोगों के लिए, जिनकी इन्वेस्टमेंट प्लानिंग में सिर्फ यही बचत योजनाएं शामिल हैं, उन्हें दूसरे बेहतर विकल्प जरूर देखने चाहिए.
इसकी दो वजहें हैं. पहली तो ये कि इन बचत योजनाओं में से कई स्कीमों, मसलन पोस्ट ऑफिस मंथली इनकम स्कीम और किसान विकास पत्र पर आपको किसी तरह की टैक्स छूट नहीं मिलती, न तो निवेश पर और न उनके ब्याज पर.
दूसरी वजह ये कि इन बचत योजनाओं पर आगे भी ब्याज दर घटते जाने की संभावना है, ऐसे में आपके वित्तीय लक्ष्य पूरे होने मुश्किल हो जाएंगे.
इसे आप एक उदाहरण से समझें.अगर आपने पीपीएफ में सालाना डेढ़ लाख रुपए का निवेश आज शुरू किया और ब्याज दर 7.80% है तो 15 साल बाद आपको मिलेंगे 43.23 लाख रुपए.
लेकिन यदि दो साल बाद ब्याज दर घटकर 7.30% हो जाती है तो 15 सालों के निवेश के बाद आपके हाथ आएंगे 41.45 लाख रुपए, यानी पौने दो लाख रुपए कम मिलेंगे. और अगर ब्याज दर में कटौती इसके बाद भी जारी रही तो ये रकम घटती जाएगी और आपके लक्ष्य के मुताबिक निवेश का फायदा नहीं मिलेगा.
इसलिए अगर आप थोड़ा जोखिम ले सकते हों तो अपने पोर्टफोलियो में इक्विटी को शामिल जरूर कीजिए. इसके लिए आप ब्लू चिप इक्विटी म्युचुअल फंड या इंडेक्स फंड चुन सकते हैं. यहां आपको सालाना 12-15% रिटर्न मिलने की संभावना रहेगी, जो लंबी अवधि के आपके लक्ष्य को हासिल करने में मददगार होगी. वैसे पिछले पांच सालों के औसत रिटर्न की बात करें तो कई म्युचुअल फंड ने 20 प्रतिशत या उससे ज्यादा रिटर्न भी दिए हैं.
लेकिन अगर आप रिटायर्ड हैं या निवेश में जोखिम लेने से बचना चाहते हैं तो फिर आप डेट फंड या हाइब्रिड म्युचुअल फंड के विकल्प पर विचार करें. डेट फंड आपको 9-11% तक सालाना रिटर्न दे सकते हैं. वहीं हाइब्रिड म्युचुअल फंड भी आपको 12% तक रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं. लेकिन इन फंड के पिछले कुछ सालों के परफॉर्मेंस देखेंगे, तो साफ होगा कि यहां भी औसत रिटर्न शानदार रहे हैं.
अब इन फंड में से आप जोखिम उठाने की अपनी क्षमता और वित्तीय लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त फंड चुन सकते हैं. एक बात और याद दिला दें कि अगर आप इक्विटी फंड में लंबी अवधि का निवेश करते हैं, तो उस पर मिलने वाला रिटर्न टैक्स फ्री होता है. ये आपके लिए एक्स्ट्रा बेनेफिट होगा.
हमारा तो यही मानना है कि घटती ब्याज दरों के इस दौर में छोटी बचत योजनाओं का हिस्सा आपके पोर्टफोलियो में छोटा ही होना चाहिए.
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