नोटबंदी के 50 दिनों में जब पूरे देश में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दिए जाने की कोशिशें चल रही थीं, तो इसका सबसे ज्यादा फायदा उठाया था ई-वॉलेट कंपनियों यानी पेटीएम, मोबिक्विक और फ्रीचार्ज ने. ऐसा लगने लगा था कि ई-वॉलेट कारोबार न सिर्फ नई बुलंदियां छुएगा, बल्कि डिजिटल पेमेंट इकोसिस्टम में ये एक गेमचेंजर साबित होगा.
लेकिन जनवरी की शुरुआत से ई-वॉलेट कारोबार के इर्द-गिर्द बना आभामंडल गायब होने लगा था. अब तो बैंकिंग और इंटरनेट बिजनेस के जानकार ई-वॉलेट के भविष्य पर ही सवाल उठाने लगे हैं.
एचडीएफसी बैंक के चीफ आदित्य पुरी का साफ तौर पर मानना है कि देश में पेटीएम जैसी ई-वॉलेट कंपनियों का कोई भविष्य नहीं है, क्योंकि इन कंपनियों का बिजनेस मॉडल लंबी अवधि तक टिक नहीं सकता. आदित्य पुरी के मुताबिक, कैशबैक आधारित बिजनेस स्ट्रैटेजी से कस्टमर बेस तो बढ़ाया जा सकता है, लेकिन मुनाफा कमाया नहीं जा सकता.
आदित्य पुरी ने जो तर्क ई-वॉलेट कंपनियों के भविष्य को लेकर दिए हैं, उनमें दम भी दिखता है.
आज की तारीख में देश की कोई भी ई-वॉलेट कंपनी मुनाफे में नहीं है, जबकि उनका कारोबार कई गुना बढ़ गया है.
दरअसल, सच तो ये है कि इन कंपनियों का कारोबार बढ़ने के साथ-साथ इनका घाटा भी कई गुना बढ़ता जा रहा है. (देखें ग्राफिक्स)
पेटीएम
सबसे बड़ी ई-वॉलेट कंपनी पेटीएम के फाइनेंशियल्स पर नजर डालें तो वित्त वर्ष 2015-16 में इसका घाटा 1549 करोड़ रुपये का रहा, जो पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 4 गुना था. इस साल कंपनी की कमाई रही 830 करोड़. वित्त वर्ष 2014-15 में पेटीएम को 372 करोड़ का घाटा हुआ था. कंपनी का खुद का दावा है कि वो मुनाफे में 2019 तक आ पाएगी.
फ्रीचार्ज
दूसरी ई-वॉलेट कंपनी फ्रीचार्ज को कारोबारी साल 2015-16 में 235 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था, जबकि उसकी कमाई सिर्फ 36 करोड़ रुपये रही.
मोबिक्विक
मोबिक्विक के 2015-16 के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन कंपनी को वित्त वर्ष 2014-15 में 41.5 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था.
इन सभी ई-वॉलेट कंपनियों की दुकान इसलिए चल रही है, क्योंकि इनमें प्राइवेट इक्विटी फंड पैसा लगाते रहे हैं. लेकिन अगर इनका बिजनेस साल-दर-साल घाटा दिखाता रहा, तो कब तक फंड आएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है.
वैसे तो देश में डिजिटल पेमेंट का भविष्य बेहतर दिख रहा है, लेकिन सवाल ई-वॉलेट कंपनियों के बिजनेस मॉडल पर है, क्योंकि कस्टमर जुटाना भर इनके लिए काफी नहीं होगा. डिजिटल पेमेंट के जितने नए तौर-तरीके और इंस्ट्रूमेंट रोजाना आ रहे हैं, उन्हें देखते हुए ई-वॉलेट कंपनियों के लिए चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं.
चुनौती नंबर 1: भारत QR
हाल ही में लॉन्च किया गया भारत क्यूआर ई-वॉलेट के लिए एक नई चुनौती है, क्योंकि इसे न सिर्फ देश में काम कर रही सभी कार्ड कंपनियों वीजा, मास्टरकार्ड और अमेरिकन एक्सप्रेस का सपोर्ट है, बल्कि इसके साथ देश के बैंक एक-एक कर जुड़ने लगे हैं.
भारत क्यूआर के साथ इंटर-ऑपरेबिलिटी की कोई समस्या भी नहीं है, जो ई-वॉलेट कंपनियों के साथ अभी भी है. आप पेटीएम वॉलेट के साथ मोबिक्विक वॉलेट वाले को भुगतान नहीं कर सकते, लेकिन भारत क्यूआर ऐप आपके पास किसी भी बैंक का हो, भुगतान में दिक्कत नहीं आएगी.
चुनौती नंबर 2: भीम
सरकार समर्थित भारत इंटरफेस फॉर मनी यानी भीम ऐप डिजिटल पेमेंट के लिए तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. 30 दिसंबर को लॉन्च हुए इस ऐप ने सिर्फ 10 दिनों में एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अपना प्रशंसक बना लिया था, यानी एक करोड़ से ज्यादा डाउनलोड इसके हो चुके थे. यूपीआई और यूएसएसडी- दोनों पेमेंट सिस्टम पर काम करने वाली भीम ऐप देश के 35 बैंकों से जुड़ा है, और इसके जरिए भुगतान भी बेहद आसान है.
ई-वॉलेट में एक तय रकम रखी जा सकती है, जबकि भीम में ऐसी कोई बंदिश नहीं है.आपके बैंक अकाउंट में जितना पैसा है, वो आप इसके जरिए इस्तेमाल कर सकते हैं.
चुनौती नंबर 3: बैंक
तीसरी चुनौती ई-वॉलेट को मिलने वाली है बैंकों के अपने ई-वॉलेट से. देश के कमोबेश हर बैंक ने अपना ई-वॉलेट लॉन्च कर दिया है, फिर चाहे वो एचडीएफसी बैंक का चिल्लर हो, आईसीआईसीआई बैंक का पॉकेट या एसबीआई का बडी. ऐसे में बैंकों के समर्थन के बिना ई-वॉलेट कंपनियों का बिजनेस नहीं चल सकता.
लेकिन हमें पिछले कुछ समय में बैंकों और ई-वॉलेट कंपनियों की खींचातानी दिखी है. एसबीआई ने अपने डेबिट कार्ड से पेटीएम पर ट्रांजेक्शन रोक दिया, तो आईसीआईसीआई ने फ्लिपकार्ट के फोनपे ई-वॉलेट को ब्लॉक कर दिया.और अब एचडीएफसी बैंक के आदित्य पुरी का बयान साफ करता है कि देश के बैंक अब ई-वॉलेट बिजनेस में ज्यादा दिमाग नहीं लगा रहे.
फिलहाल देश में पेटीएम के 12.2 करोड़ यूजर्स हैं, वहीं मोबिक्विक के 3.5 करोड़ और फ्रीचार्ज के 3 करोड़.
गूगल और बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक ताजा स्टडी के मुताबिक, साल 2020 तक भारत की डिजिटल पेमेंट इंडस्ट्री 10 गुना बढ़कर 500 अरब डॉलर की हो जाएगी.
इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय तक देश के 50 प्रतिशत से ज्यादा इंटरनेट यूजर्स डिजिटल पेमेंट का इस्तेमाल कर रहे होंगे. जाहिर है, ई-वॉलेट कंपनियों के लिए बाजार ढूंढना कोई चुनौती नहीं है, चुनौती है तो बस यही कि इस बाजार में मौजूद दूसरे खिलाड़ियों के मुकाबले खुद को बेहतर कैसे साबित करें.
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