पीएम मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान भारत और अमेरिका के बीच एनर्जी सेक्टर में बड़ी डील की बड़ी चर्चा हुई. अब पता लग रहा है कि कोई डील हुई ही नहीं, बल्कि नॉन बाइडिंग सेकंड MoU पर साइन हुए. डील को मार्च 2020 तक फाइनल किया जाना है. MoU के मुताबिक भारत की सरकारी कंपनी पेट्रोनेट ने अमेरिकी LNG कंपनी तेल्लुरियन में करीब 18 हजार करोड़ के निवेश का फैसला किया है.अब इस MoU पर भी सवाल उठ रहे हैं. आलम ये है कि शनिवार 21 सितंबर को इस MoU पर हस्ताक्षर हुए और अगले कारोबारी दिन यानी सोमवार 23 सितंबर को पेट्रोनेट के शेयर 7% गिर गए. इसपर कई ब्रोकरेज रिपोर्ट आई हैं. सिटी ने भी अपनी रिपोर्ट में इस करार को खतरों से भरा बताया है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश भी इस पर सवाल उठा रहे हैं.
शेयर की कीमत गिरने के बाद पेट्रोनेट ने बकायदा निवेशकों के साथ कॉन्फ्रेंस की और भरोसा दिलाया कि इस करार के कारण उनके हितों का नुकसान नहीं होगा.
इस MoU का ये कतई मतलब नहीं कि पेट्रोनेट LNG तेल्लुरियन में निवेश करेगी ही, लेकिन इसका असर इसके शेयरों पर दिख सकता है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कंपनी को डायवर्सिफिकेशन करना होगा. 18 हजार करोड़ के निवेश का मतलब है कि इसमें कंपनी का पांच साल का फ्री कैश फ्लो खप सकता है. हम इसे डाउनग्रेड कर रहे हैंसिटी की ब्रोकरेज रिपोर्ट
जोखिम भरा फैसला
ऑइल और गैस सेक्टर के जानकारों ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि कागज पर लग सकता है कि तेल्लुरियन से हमें मौजूदा सप्लायरों से कम कीमत पर गैस मिल सकती है, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं कि भविष्य में भी ऐसा ही होगा. इसलिए पेट्रोनेट ने एक जोखिम भरा निवेश का फैसला किया है. कंपनी नए क्षेत्र में कदम रख रही है, ये खतरे को और बढ़ाता है. इस तरह की डील कर चुकी GAIL जैसी कंपनियां इसके लिए ज्यादा माकूल रहतीं.
MoU के बारे में ब्रोकरेज फर्म की राय साल 2023-24 से पहले नहीं बदलने वाली, जब इसपर असल में अमल होगा.
डील के खिलाफ था कंपनी का बोर्ड
द हिंदू ने भी इस MoU पर एक रिपोर्ट की है. खबर के मुताबिक सरकारी कंपनी पेट्रोनेट के लिए ये निवेश खतरों से भरा हो सकता है. अखबार के मुताबिक पेट्रोनेट का बोर्ड मई 2019 में हुई एक बैठक में इस डील के खिलाफ था. बोर्ड के विरोध की ये वजह ये थीं-
- LNG की गिरती कीमत
- भारत में LNG की गिरती मांग
- घरेलू सप्लाई बढ़ने की उम्मीद
- लंबी अवधि वाले करारों का बुरा अनुभव
रिपोर्ट के मुताबिक इसे डील कहना भी सही नहीं है कि क्योंकि 21 सितंबर को पीएम मोदी की मौजूदगी में जिस चीज पर हस्ताक्षर हुए वो डील नहीं बल्कि दूसरा MoU था. 14 फरवरी, 2019 को पहले MoU पर हस्ताक्षर हो चुके थे. तेल्लुरियन चाहता था कि मोदी की यात्रा तक करार पर सहमति बन जाए.
ये डील कब होती है इसपर काफी कुछ निर्भर करेगा. अगले दो तीन सालों में भारत में LNG की जरूरत से ज्यादा सप्लाई रहेगी. लिहाजा मौजूदा कीमतों पर लंबे वक्त का करार आसान नहीं होगा.अनिश डे, नेशनल हेड ऑफ एनर्जी एंड नेचुरल रिसोर्सेज, KPMG इंडिया
2011 में भारत सरकार की एक और कंपनी GAIL ने अमेरिकी कंपनियों शेनेर एनर्जी और डोमिनियन एनर्जी से सालाना तय कीमत पर हर साल 58 लाख टन LNG खरीदने का करार किया था. अब नौबत ये है कि मार्केट में डिमांड नहीं होने के कारण GAIL इसे खरीदकर दूसरों को बेच रही है.
दोनों 'डील' में एक ही किरदार
इस कथित डील के बारे में एक और खास बात ये है कि जिन लोगों की भूमिका पेट्रोनेट-तेल्लुरियन करार में है, वही लोग GAIL वाली डील में भी थे. जब GAIL और शेनेर में समझौता हुआ तो शेरिफ सउकी उसके CEO और चेयरमैन थे. शेनेर ने शेरिफ को बर्खास्त किया था क्योंकि शेनेर को शेरिफ का ड्रिफ्टवुड प्रोजेक्ट कुछ ज्यादा ही महत्वाकांक्षी लगा था. दोनों में इस वक्त कानूनी लड़ाई भी चल रही है.
इन्हीं शेरिफ ने तेल्लुरियन कंपनी को बनाया और अब उसी ड्रिफ्टवुड प्रोजेक्ट के लिए शेरिफ निवेशक ढूंढ रहे हैं. इन्हीं में से एक पेट्रोनेट है. एक और बात ये है कि शेनेर और GAIL की डील में अहम भूमिका निभाने वाले GAIL के तब के मार्केटिंग डायरेक्टर प्रभात सिंह अब पेट्रोनेट एलएनजी इंडिया के CMD हैं.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस खबर पर एक ट्वीट भी किया है. उन्होंने लिखा है कि - ‘हाउडी मोदी तमाशे के बीच संदेह से भरी इस डील की खबर पढ़कर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ है.’
प्रतिष्ठा का प्रोजेक्ट
भारत और अमेरिका में कारोबारी रिश्ते कुछ अच्छे नहीं चल रहे. ऐसे में पेट्रोनेट-तेल्लुरियन करार अब प्रतिष्ठा का विषय बन चुका है. खास बात ये है कि खुद पीएम मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस डील की तारीफ की है.
अमेरिका में साउथ और सेंट्रल एशिया की कार्यवाहक असिस्टेंट सेक्रेटरी एलिस वेल्स ने भी कहा है -'ये करार भारत-अमेरिका रिश्तों के लिए बहुत जरूरी है. ये दिखाता है कि निवेश दोनों तरफ से होना चाहिए. भारत यहां निवेश कर रहा है जिससे अमेरिकियों के लिए रोजगार पैदा हो रहा है.
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