भारत में गर्मी मार्च महीने से ही शुरू हो जाती है और अप्रैल आते-आते देश के अधिकांश हिस्सों में तापमान 30 डिग्री सेल्सियस या इससे ऊपर पहुंच जाता है. लोग गर्मी से बेहाल होने लगते हैं. दरअसल इसी समय पावर सेक्टर पर भी दबाव बढ़ने लगता है. बढ़ती आबादी, बढ़ते शहरीकरण और सभी को एक समान सुविधाएं देने के चलते बिजली की मांग लगातार बढ़ रही है.
सेंट्रल ग्रिड रेगुलेटर की एक आंतरिक रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2023 में रात के दौरान उपलब्ध बिजली पीक डिमांड से 1.7 फीसदी कम रहने की उम्मीद है. मौजूदा समय में रात के समय बिजली की अधिकतम मांग लगभग 217 GW है. यह पिछले साल के उच्चतम रात के स्तर से 6.4 फीसदी ज्यादा है. इसे देखते हुए साल 2023 की गर्मियों में ब्लैकआउट या बार-बार लोड शेडिंग की संभावना बढ़ गई है.
हालांकि सौर ऊर्जा (Solar Energy) ब्लैक आउट के जोखिम को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, लेकिन यह तभी संभव है जब एक मजबूत और बेहतर पावर स्टोरेज इंफ्रास्ट्रकचर की ओर कदम बढ़ाए जाएं.
दरअसल हमें यूक्रेन की बिजली भंडारण (स्टोरेज) रणनीतियों की राह पर चलने की जरूरत है, जिसने युद्ध के दौरान तमाम रुकावटों के बावजूद स्थिर बिजली सप्लाई बनाए रखी है. आने वाले महीनों में देश को बिजली संकट से न जूझना पड़े इसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा. कहने का मतलब है कि एक विश्वसनीय और ऑटोनोमस पावर सिस्टम अपनाते हुए सौर ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
सोलर एनर्जी सबसे शक्तिशाली नवीकरणीय एनर्जी सोर्स में से एक है, इसलिए इमरजेंसी योजना बनाते समय इसे सबसे अधिक तवज्जो दी जानी चाहिए. उदाहरण के लिए, सूरज की रोशनी को बिजली में बदलने की क्षमता रखने वाले सौर पैनलों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल सोलर पावर सिस्टम की क्षमता को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकते हैं.
इसके अलावा सोलर एनर्जी और एनर्जी स्टोरेज को मांग और सप्लाई में संतुलन बनाए रखने के प्रोग्राम के साथ भी जोड़ा जा सकता है. जब सोलर एनर्जी अधिक मात्रा में हो या फिर एनर्जी स्टोरेज उपलब्ध हो, तो उपभोक्ता के बिजली इस्तेमाल को उस ओर शिफ्ट किया जा सकता हैं. यह ग्रिड पर पीक डिमांड को कम करने और उच्च बिजली की मांग के समय ब्लैकआउट को रोकने में मदद करेगा.
एक अन्य महत्वपूर्ण समाधान यूटिलिटी-स्केल सौर परियोजनाओं का प्रचार और उन पर तेजी से अमल करना हो सकता है. यूटिलिटी-स्केल सौर परियोजनाएं बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र हैं जो ग्रिड को बिजली उत्पन्न और आपूर्ति करते हैं. ये परियोजनाएं अपनी लागत-प्रभावशीलता और बड़े पैमाने पर बिजली पैदा करने की क्षमता के कारण अधिक लोकप्रिय हो गई हैं.
सोलर एनर्जी का इस्तेमाल ऑफ-ग्रिड क्षेत्रों को बिजली देने के लिए भी किया जा सकता है, जो मुख्य बिजली ग्रिड से जुड़े नहीं होते हैं. अपर्याप्त ग्रिड इंस्फ्रास्ट्रकचर के कारण भारत के दूर-दराज के गांवों और ग्रामीण क्षेत्रों को अक्सर ब्लैकआउट का सामना करना पड़ता है. एनर्जी स्टोरेज के साथ सोलर एनर्जी सिस्टम बिजली घरों, स्कूलों और अन्य जरूरी सेवाओं को बिजली का एक विश्वसनीय और स्थायी स्रोत प्रदान कर सकती है. इससे मुख्य ग्रिड पर निर्भरता कम होगी और ब्लैकआउट का जोखिम भी नहीं रहेगा.
स्टोरेज बढ़ाने के लिए पीक लोड शिफ्टिंग को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. बैटरी जैसे एनर्जी स्टोरेज सिस्टम में दिन के दौरान पैदा होने वाली अतिरिक्त सोलर एनर्जी को स्टोर करके रखा जा सकता है. इसे शाम या रात के समय में (जब बिजली की मांग चरम पर होती है) इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसा करने से पीक लोड डिमांड का असर ग्रिड पर नहीं पड़ेगा और ब्लैकआउट को भी रोका जा सकेगा.
ग्रिड आउटेज के दौरान सोलर एनर्जी और एनर्जी स्टोरेज आपातकालीन बैकअप पावर दे सकते हैं. इसके अलावा यह ग्रिड फेल हो जाने पर भी बिजली बनाने में मदद करेगा. ब्लैक आउट की संभावनाओं को कम करने के साथ-साथ यह अस्पताल, आपातकालीन आश्रयों और संचार प्रणालियों जैसी जरूरी सेवाओं के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा.
एक्टिव सोलर सपोर्ट के अलावा, ऑटोनॉमस पावर सिस्टम भी भारत के समग्र एनर्जी परिदृश्य में उल्लेखनीय सुधार कर सकती हैं. ऑटोनॉमस पावर सिस्टम में नवीकरणीय और मल्टी-जनरेशन को एक साथ इस्तेमाल करने के लिए बढ़ावा दिया जाता है. इससे ट्रांसमिशन लॉस को कम करने और लोड बढ़ाने और स्थानीय बिजली की गुणवत्ता को नियंत्रित करने में खासी मदद मिलती है. इन प्रणालियों का एक सबसे बड़ा फायदा मुख्य पावर ग्रिड से स्वतंत्र रूप से संचालित करने की उनकी क्षमता है. व्यापक आउटेज या ग्रिड फेल होने पर भी वे बिजली देना जारी रखते हैं.
ग्रिड फेल होने की घटनाओं को कम करने के लिए ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड समानांतर रणनीति होनी चाहिए. सोलर एनर्जी और एनर्जी स्टोरेज को भी ग्रिड के बुनियादी ढांचे में जोड़ा जा सकता हैं. ग्रिड में सोलर एनर्जी और एनर्जी स्टोरेज को एकीकृत करने से महंगे ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड की जरूरत कम हो जाएगी.
मसलन, नए बिजली संयंत्र या ट्रांसमिशन लाइनें, जिनके कार्यान्वयन में समय लग जाता है. इससे न सिर्फ बिजली आपूर्ति के लिए एक दीर्घकालिक स्थायी समाधान मिलेगा बल्कि ब्लैकआउट के तत्काल जोखिम को दूर करने में भी मदद मिलेगी. इसके अलावा एनर्जी स्टोरेज सिस्टम ग्रिड स्थिरीकरण सेवाएं देकर ग्रिड की स्थिरता (मसलन फ्रीक्वेंसी रेगुलेशन और वोल्टेज कंट्रोल) में सुधार करने में भी मदद कर सकती हैं. यह उच्च मांग के समय स्थिर ग्रिड को बनाए रखने में मदद करेगा. इसके अलावा ग्रिड फेल होने और ब्लैकआउट के जोखिम को भी कम कर सकता है.
निष्कर्ष
गर्मी के महीनों में ब्लैकआउट की स्थिति का सामना न करना पड़े, इसके लिए सोलर एनर्जी और एनर्जी स्टोरेज प्रभावी उपकरण हो सकते हैं. यह न सिर्फ बिजली उत्पादन, ऑफ-ग्रिड सोल्युशन, पीक लोड शिफ्टिंग, ग्रिड स्थिरता, डिमांड रिस्पांस प्रोग्राम और इमरजेंसी बैकअप पावर मुहैया कराएगा बल्कि कंप्लीमेंटिंग ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर भी प्रदान करेगा. तकनीकों का लाभ उठाकर भारत अपनी ऊर्जा की कमी को पूरा कर सकता है और विश्वसनीय बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है, खासतौर पर पीक डिमांड के दौरान. इसके अलावा ये ब्लैकआउट के जोखिम को कम करेगा और इसकी वजह से समुदायों, व्यवसायों और महत्वपूर्ण सेवाओं पर पड़ने वाले असर को भी कम कर सकता है.
(लेखक सर्वोकॉन (Servokon) कंपनी में पर्चेस और सर्विस डिपार्टमेंट के डायरेक्टर हैं.)
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