अर्थव्यवस्था के सबसे बुरे फेज को स्टैगफ्लेशन कहा जाता है- स्टैगनेशन (सुस्ती) और इन्फ्लेशन (महंगाई). इसको कह सकते हैं करेला और उसपर भी नीम चढ़ा हुआ. दूसरे शब्दों में कहें तो आमदनी बढ़ी नहीं लेकिन महंगाई डायन डसने को पहले से तैयार. मतलब दोहरी मार जो भारी नुकसानदायक होता है.
दिसंबर के महीने में रिटेल महंगाई की दर करीब साढ़े सात परसेंट रही जो पांच साल में सबसे ज्यादा है. साढ़े सात परसेंट नॉमिनल ग्रोथ जो 1978 के बाद सबसे कम है और उतनी ही महंगाई की दर. इसका मतलब हुआ कि रियल ग्रोथ जीरो के बराबर है. ये डरा देने वाले हालात, जिसको स्टेगफ्लेशन कहा जाता है. ओडिशा और उत्तर प्रदेश में रिटेल महंगाई की दर तो करीब 9 परसेंट की रही. मतलब इन राज्यों में लोगों की असली आमदनी पिछले साल की तुलना में घट गई है.
खाने के सामानों में महंगाई का सबसे ज्यादा असर गरीबों पर
दिसंबर के महीने में सब्जियों की कीमत में पिछले साल की तुलना में 60 परसेंट का इजाफा हुआ, प्याज की कीमत 300 परसेंट बढ़ी, दालों में 15 परसेंट की महंगाई देखी गई और खाने के सामान करीब 14 परसेंट महंगे हुए.
NSSO के सर्वे के नतीजे हमें बताते हैं कि गरीब परिवारों के उपभोग की चीजों का बड़ा हिस्सा खाने-पीने के सामान ही होते हैं. ऐसे में खाने-पीने के सामानों में महंगाई दूसरे चीजों की तुलना में काफी ज्यादा हो तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों का होता है.
हाल में रेलवे के किराए में बढ़ोतरी हुई है, पेट्रोल-डीजल महंगा हुआ है और दालों के बारे में अनुमान है कि इसकी कीमत आगे भी बढ़ सकती है. खाने के तेल की एक कैटेगरी के आयात पर बैन लगा दिया गया है. ऐसे में हो सकता है कि इसकी कीमत में भी बढ़ोतरी हो. साथ ही यह बढ़ोतरी उस समय हो रही है जब पूरे दुनिया में खाने के सामान महंगे हो रहे हैं. इसकी वजह से महंगाई को आयात करने का खतरा भी बढ़ गया है.
ब्याज दर में कटौती फिलहाल भूल जाइए
कुल मिलाकर ऐसे हालात बन रहे हैं कि महंगाई से जल्दी राहत मिलेगी, इसकी संभावना काफी कम है. इसका देश की अर्थव्यवस्था पर और क्या-क्या असर हो सकता है. दो बड़े परिणाम साफ दिख रहे हैं और दोनों ही हमारे लिए अच्छी खबर तो बिल्कुल ही नहीं है-
1. रेट कटौती पर लगाम: रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी का मैंडेट है कि देश में महंगाई की दर 2 से 6 परसेंट के दायरे में रहे. फिलहाल महंगाई की दर 6 परसेंट से ज्यादा के स्तर पर है. इसका मतलब यह हुआ कि ब्याज दर में कटौती की संभावना अब काफी कम हो गई है. मतलब कि अर्थव्यवस्था तो बूस्ट करने के लिए और सस्ते ब्याज का रास्ता तो करीब बंद ही हो गया है.
महंगाई दर इसी स्तर पर कायम रहती है या फिर आगे और बढ़ती है तो ब्याज दर में कटौती तो दूर, हो सकता है कि महंगाई को काबू करने के लिए रिजर्व बैंक ब्याज दर में बढ़ोतरी के बारे में सोचने लगे. महंगाई दर का बढ़ना तो खतरनाक है कि. उतना ही खतरनाक है लोगों की आशंका कि महंगाई आगे भी बढ़ सकती है (inflation expectation). फिलहाल दोनों ही हालात है. तो ब्याज दर में कटौती को भूल जाइए. या तो दरें स्थिर रहेंगी या फिर आगे बढ़ भी सकती हैं.
2. बजट में भी मुश्किलें: अभी तक का अनुमान था कि ग्रोथ को मजबूती देने के लिए घाटे की परवाह किए बगैर सरकार खर्च में बड़ी बढ़ोतरी का ऐलान कर सकती है. फिलहाल, सरकार की प्राथमिकता ग्रोथ को बढ़ाना है, फिस्कल डेफिसिट को संभालना नहीं है. लेकिन महंगाई के गंदे आंकड़े उस सोच में बदलाव ला सकता है. महंगाई के गंदे आंकडे की वजह से रिजर्व बैंक पर इसे लगाम लगाने के लिए दवाब बढ़ गया है. इस पर से सरकार ने अगर अगले वित्त वर्ष में बाजार से अनुमान से ज्यादा कर्ज लिए तो ब्याज दर बढ़ने का खतरा तेजी से बढ़ जाएगा जो ग्रोथ के लिए कतई सही नहीं है.
फिलहाल, जो महंगाई बढ़ी है उसमें सप्लाई साइड में रुकावट एक बड़ी वजह रही है. प्याज की बढ़ती कीमत इसका उदाहरण है जहां सप्लाई ठीक से मैनेज नहीं हो पाया और इसको ठीक करने के लिए आयात के ऑर्डर भी काफी देरी से दिए गए. आयातित प्याज इस समय बाजार में आए जब देसी सप्लाई भी ठीक होने लगी.
अगर किसी वजह से मांग में बढ़ोतरी भी दिखने लगती है, अर्थव्यवस्था में दमखम लौटने से ऐसा संभव है, तो महंगाई बढ़ने से आसार बढ़ेगे ही. ऐसा होता है तो रिकवरी वो को भी पंचर कर सकता है.
(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं.)
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