लीडरशिप की क्वालिटी क्या किताबों को पढ़कर सीखी जा सकती है ? क्या कोई मोटिवेशनल स्पीकर आपको इतना मोटिवेट कर सकता है आप एक बेहतरीन लीडर बन जाए? कहने में हर्ज नहीं है कि इस बात की गुंजाइश काफी कम है. माइक्रोसॉफ्ट के CEO सत्या नडेला ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा है कि वो भारत में क्रिकेट खेलने के दौरान ही लीडरशिप के गुर सीख पाए.
नडेला कहते हैं कि इससे उन्हें चुनौतियों का सामना करने में काफी मदद मिलती है. अब ऐसे में एक नए तरह का सवाल है कि क्रिकेट में आखिर क्या खास है जो आपको बेहतरीन लीडर बना देता है? इस सवाल का जवाब हैं इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइक ब्रेयरली.
क्रिकेट कप्तानी = कॉर्पोरेट लीडरशिप
सत्या नडेला के क्रिकेट से लीडरशिप सिखने के गुर वाले अनुभव को ब्रेयरली के बयान सटीक साबित करते हैं. ब्रेयरली, क्रिकेट कप्तानी और कॉर्पोरेट लीडरशिप में समानता आंकते हैं. ऐसे में उनकी सलाह दोनों के लिए बेहद प्रभावी है.
ब्रेयरली के मुताबिक, एक लीडर को दोहरे व्यक्तित्व वाला होना चाहिए, वो लोकतांत्रिक और तानाशाह दोनों प्रवृत्ति का हो. अपने काम के लिए पैशेनेट भी होना चाहिए और काम को अलग रखकर सोचने वाला भी होना चाहिए.
अब आपको ऐसा लग रहा होगा कि आखिर एक ही शख्स ऐसे दोहरे चरित्र में कैसे जी सकता है. यहां बात चरित्र या व्यक्तित्व की नहीं है, बात है पॉजिटिव और नेगेटिव क्वालिटी की, जिसे आपको अपने अंदर उभारनी पड़ती है.
किताबों से नहीं सीख सकते हैं लीडरशिप
ब्रेयरली साफ कहते हैं कि लीडरशिप किताबों से नहीं सीखी जा सकती है. एक लीडर को अपने अनुभवों से सीखना चाहिए, और परफेक्ट लीडरशिप नाम की कोई भी चीज नहीं होती. उनका मतलब साफ है कि लीडरशिप क्वालिटी कोई गणित नहीं नहीं है जिसका गुणा-भाग निकालकर उसे आंका जाए. ये साइंस भी नहीं कि सूरज पूरब में ही उगता है, ये कला है जिसे अपने-अपने हिसाब से तराशा जाता है.
नाडेला अपने इंटरव्यू में क्रिकेट के खेल में इसी कला को सीखने की बात कर रहे हैं. क्योंकि ये खेल ही कुछ ऐसा है जहां 8 घंटे मैदान में जब टीमें एक दूसरे से भिड़ती हैं तो लड़ाई गेंद और बल्ले के साथ-साथ मानसिक तौर पर भी लड़ी जाती है. और इस पूरे जंग का सेनापति होता है कप्तान.
ऐसा ही कुछ कॉरपोरेट में भी है, जहां सहज ज्ञान की कोई जगह नहीं, यहां बात बनती है प्लानिंग से. 8-9 घंटे की शिफ्ट में मैनेजर को ही तय करना होता है कि काम भी हो जाए और नाराजगी नहीं. शायद हमारे कॉर्पोरेट कप्तान ये सीख हासिल नहीं कर पा रहे, या उन्होंने क्रिकेट नहीं खेला है. ऐसा इसलिए, क्योंकि देश-दुनिया के ऑफिस में आज भी ज्यादातर एंप्लॉय (Employee) अपने-अपने मैनेजर्स को विलेन के तौर पर ही देखते दिखते हैं.
पॉजिटिव क्वालिटी =निगेटिव क्वालिटी
ब्रेयरली कहते हैं कि दोनों जगहों पर आपको अपनी टीम को साथ में रखने वाली पॉजिटिव क्वालिटी होनी चाहिए, वहीं गुटबाजी को खत्म करने वाली कुछ निगेटिव क्वालिटी भी. ऐसे में क्रिकेट कप्तान और कॉरपोरेट मैनेजर को बतौर लीडर मौके की नजाकत को समझते हुए कुछ नरम और कुछ गरम फैसले लेने ही चाहिए.
ब्रेयरली कहते हैं कि ये लीडर को फ्लेक्सिबल भी होना चाहिए मतलब कि अगर चीजें उससे उलट जा रही हैं तो इतना माद्दा रखे कि वो थोड़ा झुककर, रुककर हालात और अपनी टीम को संभाल सके.
सत्या नाडेला आज माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ हैं, माइक्रोसॉफ्ट को बुरे दिनों से उबारने का श्रेय भी नडेला को जाता है, हो ना हो ये क्रिकेट की सीख ही है, जो उन्हें इस मुकाम पर लेकर आई है. और हां, सत्या इस बात को खुद मानते हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)