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शेयर बाजार में ट्रेडिंग का समय बढ़ने से किसे फायदा होगा?

पहले बाजार 9.45 बजे सुबह खुलता था, अभी वो 9 बजे खुलता है और 3.30 बजे बंद होता है

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एक बार फिर देश के शेयर बाजारों में ट्रेडिंग का समय बढ़ने को लेकर चर्चा होने लगी है. कैपिटल मार्केट रेगुलेटर सेबी और स्टॉक एक्सचेंज इस बारे में विचार कर रहे हैं. ऐसी खबरें हैं कि शेयर बाजार में ट्रेडिंग का वक्त कम से कम डेढ़ घंटे और ज्यादा से ज्यादा 4 घंटे तक बढ़ाया जा सकता है.

इस बारे में कोई भी फैसला सेबी को करना है, लेकिन स्टॉक एक्सचेंज चाहते हैं कि बाजार में ट्रेडिंग का समय बढ़ाकर शाम 5 बजे या 7.30 बजे तक कर दिया जाए. वैसे तो अक्टूबर 2009 में सेबी ने एक्सचेंजों को सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक शेयर मार्केट खोले जाने की मंजूरी दी थी. इसके बाद ट्रेडिंग का ओपनिंग टाइम तो सुबह 9 बजे कर दिया गया लेकिन ब्रोकरों के विरोध के कारण क्लोजिंग टाइम शाम 3.30 से आगे नहीं बढ़ाया गया.

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पहले बाजार 9.45 बजे सुबह खुलता था, अभी वो 9 बजे खुलता है और 3.30 बजे बंद होता है. ट्रेडिंग के लिए समय 9.15 से 3.30 तक का रखा गया है. सुबह 9 से 9.15 तक का समय प्री-ओपनिंग सौदों के लिए होता है.

एक्सचेंज क्यों बढ़ाना चाहते हैं ट्रेडिंग का समय

एक्सचेंजों का कहना है कि ट्रेडिंग का समय बढ़ाने से ग्लोबल शेयर बाजारों के साथ भारतीय बाजारों का तालमेल बेहतर होगा. एक्सचेंजों की दलील है कि इससे ना सिर्फ विदेशी निवेशकों को भारत में ट्रेडिंग के लिए ज्यादा वक्त मिलेगा, बल्कि कमोडिटी एक्सचेंजों के साथ भी बेहतर तालमेल हो सकेगा.

इसका फायदा ज्यादा सौदों और वॉल्यूम के रूप में दिखेगा. हालांकि एक्सचेंजों की इन दलीलों से सभी भारतीय ब्रोकर सहमत नहीं हैं. माना जा रहा है कि ट्रेडिंग का समय बढ़ाना बड़े ट्रेडर्स और ब्रोकरेज हाउस के लिए तो फायदेमंद रहेगा, लेकिन छोटे ब्रोकरेज हाउस को इससे नुकसान होगा. इसलिए छोटे ब्रोकरेज हाउस लगातार ट्रेडिंग का समय बढ़ाए जाने का विरोध करते रहे हैं.

छोटे ब्रोकर क्यों कर रहे हैं विरोध

छोटे ब्रोकरेज हाउसेज का कहना है कि कड़े मुकाबले और लगातार बढ़ रहे ऑटोमेशन की वजह से ब्रोकिंग का धंधा पहले से ही काफी दबाव में है. ऐसे में अगर ट्रेडिंग का समय बढ़ाया जाता है, तो इससे छोटे और मध्यम आकार के ब्रोकरों के लिए लागत बढ़ेगी और उन्हें नुकसान झेलना पड़ेगा. उन्हें न सिर्फ दो शिफ्टों में काम करना होगा, बल्कि स्टाफ की संख्या भी बढ़ानी पड़ेगी.

छोटे ब्रोकरों के मुताबिक बड़े ब्रोकरेज हाउस तो दूसरे काम-धंधों से कमाई कर लेते हैं, और उनके पूरे बिजनेस का सिर्फ 5-10% हिस्सा ही ब्रोकिंग से आता है. इसलिए उन्हें ट्रेडिंग का समय बढ़ाए जाने से दिक्कत नहीं है.

छोटे ब्रोकरों का ये भी कहना है कि स्टॉक एक्सचेंज सिर्फ अपना फायदा देख रहे हैं. ट्रेडिंग का समय बढ़ाने से विदेशी बाजारों से तालमेल बढ़ने की दलील में कोई दम नहीं है, क्योंकि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में शेयर बाजार के खुलने का समय अलग-अलग है.

क्या है इंटरनेशनल प्रैक्टिस

दुनिया भर के बड़े शेयर बाजारों में अधिकतम 6.30 घंटे की ट्रेडिंग होती है. सिर्फ फ्रैंकफर्ट स्टॉक एक्सचेंज ऐसा है, जो स्थानीय समयानुसार सुबह 9 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है, यानी 11 घंटे तक. इसके अलावा अमेरिका, हांगकांग, चीन, ऑस्ट्रेलिया या जापान जैसे देशों में 6 से 6.30 घंटे की ही ट्रेडिंग होती है.

चीन में तो कुल 4 घंटे की ही ट्रेडिंग होती है. वहां पहले सुबह 9:30- 11:30 तक बाजार खुलते हैं, फिर डेढ़ घंटे का ब्रेक होता है और फिर 13:00-15:00 तक ट्रेडिंग होती है. इसके अलावा जो बात ध्यान रखने की है, वो ये कि यूरोपीय, एशियाई या अमेरिकी बाजार, सभी भारतीय समयानुसार अलग-अलग समय पर खुलते हैं. (देखें ग्राफिक्स)

ऐसे में भारतीय शेयर बाजारों में ट्रेडिंग का समय बढ़ाने से किन विदेशी बाजारों के साथ तालमेल बेहतर होगा, ये साफ नहीं है. बाजार के जानकारों का कहना है कि भारतीय बाजारों की तरफ ग्लोबल इन्वेस्टर्स को आकर्षित करने के लिए ट्रेडिंग का समय बढ़ाना कोई तरीका नहीं हो सकता. अगर भारतीय बाजारों के वैल्युएशन उन्हें आकर्षक लगेंगे तो वो बिना ट्रेडिंग का समय बढ़ाए भी आएंगे.

आखिर इतने सालों से भारतीय बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों की दिलचस्पी यहां से मिलने वाले रिटर्न की वजह से है, यहां के शेयर बाजारों के साथ उनके बाजारों का तालमेल होने से नहीं.

(धीरज कुमार जाने-माने जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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