सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च को लोन मोरेटोरियम वाले केस में फैसला सुनाते हुए मोरेटोरियम बढ़ाए जाने की गुहार को खारिज कर दिया है. जस्टिस भूषण की बेंच का कहना है कि कोर्ट सरकार को फाइनेंशियल पैकेज जारी करने पर कोई निर्देश नहीं दे सकती है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इकनॉमिक पॉलिसी के मुद्दों की न्यायिक समीक्षा करना संभव नहीं है. कोर्ट ये तय नहीं कर सकता कि किस तरह की वित्तीय राहत दी जानी चाहिए.
नहीं देना होगा 'ब्याज पर ब्याज'
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मोरेटोरियम के दौरान किसी भी कर्ज पर 'ब्याज पर ब्याज' नहीं वसूला जा सकता है. अभी तक जो भी 'ब्याज पर ब्याज' वसूला गया है वो वापस आगे की ईएमआई में एडजस्ट किया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में रियल एस्टेट, पावर सेक्टर और बाकी के कुछ कारोबारियों ने याचिका देकर गुहार लगाई थी कि कोरोना वायरस संकट के शुरुआती दौर में जो लोन मोरेटोरियम में छूट दी गई थी उसे बढ़ाया जाए. सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अशोक भूषण वाली बेंच ने इस मामले में 17 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
सरकार की दलील- बैंकों का बोझ बढ़ेगा
इसके पहले केंद्र ने इसके पहले सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि अगर वो RBI के ऐलान के मुताबिक सभी कैटेगरी के लोन में 6 महीने के मोरेटोरियम के लिए छूट देती है तो सरकार पर इसका करीब 6 लाख करोड़ रुपये का बोझ आएगा. वहीं अगर बैंकों को ये बोझ झेलना पड़े तो इससे उनके बहीखाते पर नेगेटिव असर पड़ेगा, कई सारे बैंक खस्ता हालत में कारोबार कर रहे हैं ऐसे में उनके लिए इस नुकसान को सहना मुश्किल हो सकता है.
ब्याज पर ब्याज लिए जाने पर है विवाद
कोरोना संकट के शुरुआती दौर में लॉकडाउन लगा तो कई सारे उद्योग धंधे ठप हो गए. कई लोगों की नौकरियां गई और कई की सैलरी में कटौती की गई. इसी को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक ने 1 मार्च से 1 मई 2020 तक लोन मोरेटोरियम का ऐलान किया जिसे बाद में 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया.
छोटे कर्ज पर सरकार ने दी थी राहत
इसके बाद कई सारे कर्जदारों ने इसी लोन मोरेटोरियम का फायदा उठाया, लेकिन जब मोरेटोरियम खत्म हुआ तो बैंक इन्हीं ड्यू किश्तों के ब्याज पर ब्याज लगाने लगा. इसी के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. जब सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में केंद्र सरकार से पूछा तो सरकार ने जवाब दिया कि '2 करोड़ रुपये तक के जिस लोन की बात हुई है, उसमें MSME कर्ज, शैक्षणिक कर्ज, होमलोन, ग्राहक उपभोक्ता वस्तुओं पर कर्ज, क्रेडिट कॉर्ड बकाया, ऑटो लोन, व्यक्तिगत कर्ज और खपत कर्ज शामिल हैं.'
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