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कोरोनावायरस के बीच ICU में टेलीकॉम सेक्टर, सरकार कुछ करो ना

वर्क फ्रॉम होम के बीच फोन करने में दिक्कत होगी तो जिम्मेदार कौन?

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देश में कोरोनावायरस के कई मामले सामने आ चुके हैं, ऐसे में लोगों में पैनिक की स्थिति बनी हुई है. लेकिन एक और संकट है जो देश के लिए बहुत क्रिटिकल है वो है टेलिकॉम सेक्टर में चल रहा संकट, ये चीज कोरोनावायरस के चलते दब गई है लेकिन उसपर ध्यान देना जरूरी है

टेलिकॉम सेक्टर की स्थिति उस मरीज के जैसी है जो एक बड़ी बीमारी के चौथे चरण पर पहुंच चुका है, टेलिकॉम सेक्टर के पास सिर्फ 2 हफ्ते हैं जिसमें ये पता लगेगा कि ये बचेगा या नहीं. टेलीकॉम संकट कोरोनावायरस के समय में अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभरकर आया है

पिछले 17 साल से सरकार मुकदमे बाजी कर रही थी कि एडजस्टेड ग्रोस रेवेन्यू के आधार पर हमें (सरकार) टेलिकॉम सेक्टर से ज्यादा रेवेन्यु चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण शर्मा की बेंच ने सरकार के पक्ष में फैसला दिया है और कहा है कि करीब पौने दो लाख करोड़ रुपये का ड्यू बनता है जो टेलिकॉम सेक्टर को जल्द से जल्द चुकाना होगा.  

जब ये मामला और बढ़ गया तो टेलिकॉम कंपनियों ने कहा है कि वो पैसे नहीं चुका सकते, इसके बाद सरकार ने चर्चा की और निर्णय लिया कि इन टेलिकॉम कंपनियों को सेल्फ असेसमेंट के लिए कहा जाए. टेलिकॉम कंपनियों ने कहा है कि कुल बकाया राशि का एक तिहाई चुका सकती हैं लेकिन इसके लिए उन्हें 20 साल का समय चाहिए.

इस मामले को लेकर सरकार और कंपनियां सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं तो जस्टिस अरुण मिश्रा काफी नाराज हुए उन्होंने कहा-

रि-असेसमेंट और स्लेफ़ असेसमेंट की अनुमति किसी भी तरह से देना मुमकिन नहीं है, ये हिंदुस्तान के लोगों के साथ धोखा है, कंपनियां अपने आप को क्या समझती हैं? सरकार भी गलत कदम उठा रही है और हम ऐसा नहीं होने देंगे.
टेलीकॉम AGR पर सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस मिश्रा ने मीडिया को लेकर कहा कि मीडिया भी इस लॉबिइंग में शामिल है और सभी मिलकर गड़बड़ कर रहे हैं. इसके बाद ये साफ़ हो गया कि सुप्रीम कोर्ट सेल्फ असेसमेंट की इजाजत नहीं देगा.. जिसे कंपनियों को बचाने के लिए एक जरूरी कदम काफी देर से सरकार ने उठाया था.

अब सिर्फ एक उम्मीद की किरण बची है और वो ये है कि SC ने कहा है कि वो कंपनियों को वक्त देने के लिए तैयार है. सरकार का कहना है कि वो कंपनियों को 20 साल का वक्त देना चाहती है इसपर कोर्ट का कहना है कि वो रिजनेबल टाइम कंपनियों को देगा.

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इसपर एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अगर टेलिकॉम कंपनियों को 15 साल से कम का वक्त दिया जाता है तो टेलिकॉम कंपनियों को बचाना मुश्किल होगा, ये डूब जाएंगी. इस वक्त बाजार में तीन रिलेवेंट कंपनियां है जियो, एयरटेल, वोडाफोन.

इसमें दिक्कत ये है कि अगर पेमेंट शेड्यूल 15 साल से कम हुआ तो वोडाफोन नहीं बच पाएगी. इसका दूसरा बड़ा असर बैंकिंग सेक्टर पर होगा और ये सेक्टर पहले से चोक्ड है. सरकार को फिर कैपिटलाइजेशन के लिए पैसा डालना होगा, क्योंकि सभी टेलिकॉम कंपनियों ने बैंकों से उधार लिया है और ये वाइडर इकॉनमी के लिए बहुत बड़ा संकट है.

आज अगर टेलीकॉम सेक्टर ICU में है तो इसकी जिम्मेदार सरकार है क्योंकि पहले उसने ने रेवेन्यू के चक्कर में AGR की बात की और अब वही सेल्फ असेसमेंट की बात कर रही है. इसलिए कोर्ट भी नाराज है कि आप आपनी बात से पलट कैसे सकते हैं.

अभी के हालातों को देखते हुए सरकार अगर कानून में बदलाव नहीं करती है तो टेलिकॉम सेक्टर का बचना मुश्किल है.

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