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ई-वॉलेट पर भारी पड़ेगा UPI, इसे बस पॉपुलर होने की देर है

यूपीआई का इस्तेमाल अभी बहुत कम हो पाया है, क्योंकि इसके बारे में जागरूकता का अभाव है.

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नोटबंदी के बाद देशभर में, खासकर शहरी इलाकों में टेक-सेवी लोगों के बीच कैशलेस लेन-देन बढ़ गया है. वैसे तो नोटबंदी के पहले भी डेबिट या क्रेडिट कार्ड और ई-वॉलेट का इस्तेमाल हो रहा था, लेकिन पिछले तीन हफ्ते में इसमें जबरदस्त उछाल देखने को मिला है.

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निजी ई-वॉलेट कंपनियों, मसलन पेटीएम, मोबीक्विक, ऑक्सीजन वगैरह की तो चांदी ही चांदी हो गई है. लेकिन कुछ महीनों पहले सरकार की अपनी पहल यूपीआई यानी यूनाइटेड पेमेंट्स इंटरफेस इस रेस में पिछड़ गई, जबकि तुलनात्मक रूप से देखें तो यूपीआई ई-वॉलेट के मुकाबले न सिर्फ सरल और सुरक्षित है, बल्कि फायदेमंद भी है.

यूपीआई का इस्तेमाल अभी बहुत कम हो पाया है, क्योंकि इसके बारे में जागरूकता का अभाव है.
(फोटो: The Quint)

क्या है यूपीआई?

यूपीआई एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर मेकेनिज्म है, जो सभी बैंक अकाउंट होल्डरों को उनके स्मार्टफोन के जरिए पैसे भेजने और मंगाने की सहूलियत देता है. इसके लिए बैंक के अकाउंट नंबर या आईएफएससी कोड डालने की जरूरत नहीं होती. पैसे के लेन-देन के लिए सिर्फ मोबाइल नंबर या वर्चुअल पेमेंट एड्रेस यानी वीपीए की जरूरत होती है.

वीपीए याद रखना भी बेहद आसान है, क्योंकि इसका सिस्टम होता है ‘अकाउंट@प्रोवाइडर’, यानी अगर किसी मनोज नाम के शख्स का एकाउंट एसबीआई में है, तो उसका वीपीए होगा manoj@sbi.

दूसरी ओर ई-वॉलेट वैसा डिजिटल पेमेंट मेकेनिज्म है, जो चलता तो स्मार्टफोन पर ही है, लेकिन इसके जरिए पैसे भेजने या किसी को भुगतान करने के लिए पहले आपको वॉलेट में पैसे डालने पड़ते हैं. इसके लिए आपको क्रेडिट या डेबिट कार्ड या नेट बैंकिंग की जरूरत पड़ती है, जबकि यूपीआई के लिए ऐसे किसी कार्ड या नेटबैंकिंग की जरूरत नहीं है.

क्यों बेहतर है यूपीआई?

1. चूंकि यूपीआई के तहत पैसे ट्रांसफर करने के लिए आपको सिर्फ वर्चुअल पेमेंट एड्रेस, यानी वीपीए की जरूरत होती है, इसलिए ये आपकी फाइनेंशियल सिक्योरिटी के लिए बेहतर है. हैकर सिर्फ वीपीए की मदद से आपके बैंक खातों की दूसरी जानकारी हासिल नहीं कर सकते, क्योंकि ये वीपीए एक ईमेल आईडी की तरह ही काम करता है.

2. यूपीआई में एक और फीचर है, पेमेंट की तारीख को तय कर सकने का. ये फीचर है ‘पे बाई’ डेट, जिसकी मदद से एक तरह से पेमेंट अलार्म लगा सकते हैं. ई-वॉलेट में फिलहाल ऐसी कोई सुविधा नहीं है.

3. ज्यादातर ई-वॉलेट सेमी-क्लोज्ड वॉलेट हैं, यानी उनकी मदद से आप सिर्फ उन्हीं लोगों को पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं, जिनके पास वही ई-वॉलेट है, जो आपके पास है. मसलन अगर आपके पास पेटीएम है, तो आप सिर्फ पेटीएम होल्डर को ही पैसे ट्रांसफर कर सकेंगे या ले सकेंगे, जबकि यूपीआई के तहत आप अपने बैंक अकाउंट से किसी भी दूसरे बैंक अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं. फिलहाल देश के करीब 25 बैंक यूपीआई के दायरे में हैं, यानी करीब-करीब सभी शेड्यूल्ड बैंक में अपने पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं.

4. जैसा हमने पहले बताया कि ई-वॉलेट से पैसे ट्रांसफर करने के पहले उसमें क्रेडिट या डेबिट कार्ड या नेट बैंकिंग के जरिए पैसे डालने पड़ते हैं. आप जो पैसे ई-वॉलेट में डालते हैं, उस पर आपको कोई ब्याज नहीं मिलता है, साथ ही उसका इस्तेमाल सिर्फ पेमेंट के लिए हो सकता है. अगर आप उसे अपने बैंक अकाउंट में वापस डालना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको 1-3% ट्रांजेक्शन फीस देनी पड़ सकती है. दूसरी ओर यूपीआई में पैसों का लेन-देन सीधे आपके बैंक अकाउंट से होता है, तो आपको अलग से किसी डिजिटल वॉलेट में पैसे रखने की जरूरत नहीं होती. न ब्याज का नुकसान, न ही बार-बार ई-वॉलेट में पैसे डालने का झंझट.

5. ई-वॉलेट के तहत पैसे ट्रांसफर करने की सीमा है. अगर आपका ई-वॉलेट 'नो योर कस्टमर' यानी केवाईसी शर्तों को पूरा नहीं करता, तो आप महीने में 10 हजार से 20 हजार रुपये के बीच ही ट्रांसफर कर सकते हैं. लेकिन यूपीआई में ऐसी कोई सीमा नहीं है, क्योंकि ये सीधा आपके बैंक खाते से जुड़ा होता है. आप एक दिन में उतने ही रुपये ट्रांसफर कर सकते हैं, जितने आप अपने बैंक खाते से करने की क्षमता रखते हैं.

लेकिन इसी के साथ एक सच्चाई ये भी है कि यूपीआई का इस्तेमाल अभी बहुत कम हो पाया है, क्योंकि इसके बारे में जागरूकता का अभाव है.

साथ ही सरकार ने भी इस बात की कोशिश नहीं की है कि इसे निजी ई-वॉलेट कंपनियों के विकल्प की तरह प्रचारित किया जाए. तभी तो आज देशभर में करीब 10 करोड़ लोग ई-वॉलेट का इस्तेमाल करने लगे हैं, जबकि बेहतर होने के बावजूद यूपीआई के बारे में जानने वाले उंगलियों पर गिने जा सकते हैं.

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