हर साल बजट आता है और सरकार अपना बही-खाता जनता के सामने रखती है. बजट आने के पहले से लेकर कुछ दिनों बाद तक बजट से जुड़ी खबरें आती रहती हैं. आर्थिक महारथी पहले से चर्चा करने लगते हैं कि फिस्कल डेफिसिट बढ़ेगा या घटेगा? ग्रोथ टारगेट क्या होगा? विनिवेश के फ्रंट पर क्या होगा? कौन-सा शेयर गिरेगा, कौन-सा शेयर बढ़ेगा? कौन-सी चीजें सस्ती होंगी, क्या महंगा होगा?
जैसे ही ये सब बातें होती हैं और अगर आप इकनॉमी के कुछ खास टर्म से वाकिफ नहीं हैं, तो आप बोर होने लगते हैं. तो ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कारोबार और इकनॉमी की कुछ बेसिक शब्दावलियां. इन शब्दों के मायने जानकर आपको खबरें समझने में आसानी होगी और आप भी अपने दोस्तों को देश की GDP पर ज्ञान दे पाएंगे.
बजट है क्या?
जैसे आप अपनी आय और खर्चे के लिए डायरी में हिसाब बनाते हैं और तय करते हैं कि आपके पास जो पैसे हैं, उनको कहां-कहां, कैसे खर्च करना है. वैसे ही सरकार भी सालाना आमदनी और खर्च का बही-खाता तैयार करती है, इस दस्तावेज को ही बजट कहते हैं.
केंद्र सरकार अपना बजट हरेक वित्त वर्ष के लिए बनाती है. इस वित्तीय वर्ष की अवधि 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होती है.
पहले कमाई की बात
सरकार की कमाई के वैसे तो कई जरिया होता है, लेकिन मोटे तौर पर 3 स्रोत से धन आता है.
प्रत्यक्ष कर (Direct tax)
डायरेक्ट टैक्स वो टैक्स होता है, जिसे आपसे सीधे तौर पर वसूला जाता है. ये आपके या संगठनों की किसी भी स्रोत से हुई इनकम पर लगाई जाती है. इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, डायरेक्ट टैक्स के तहत ही आते हैं.
अप्रत्यक्ष कर (Indirect tax)
ये वो टैक्स है, जिसे आप सीधा नहीं जमा कराते, लेकिन ये आप ही से किसी और रूप में वसूला जाता है. आपके सामान खरीदने और सेवाओं का इस्तेमाल करने के दौरान आप ये टैक्स देते हैं. देश में तैयार, एक्पोसर्ट या इंपोर्ट किए गए सभी सामानों पर लगाए जाने टैक्स अप्रत्यक्ष कर की श्रेणी में आते हैं. लेकिन 1 जुलाई, 2017 सारे अप्रत्यक्ष कर GST में समाहित हो गए हैं.
डिविडेंड (Dividend)
सरकार पब्लिक सेक्टर की कंपनियों की मालिक होती है. उनसे जो आमदनी होती है, वो भी सरकार की कमाई का एक बड़ा सोर्स है.
विनिवेश (Disinvestment)
सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहलाती है. दरअसल इस प्रोसेस के तहत सरकार घाटे में चल रहे पब्लिक सेक्टर की उन कंपनियों या उपक्रमों की कुछ हिस्सेदारी को शेयर या बांड के रूप में बेचती है. इससे मिलने वाले पैसे का इस्तेमाल सरकार या तो उस कंपनी को बेहतर बनाने में करती है या किसी दूसरी योजनाओं में इसको लगाती है.
इसके अलवा सरकार कुछ अन्य जरियों से भी कमाई करती है, जैसे बॉन्ड जारी करके, जमीन बेचकर पैसा जुटाती है.
सरकार खर्च कहां-कहां करती है?
सरकारी खर्चे दो हिस्सों में बांटे जाते हैं- योजनागत व्यय और गैर-योजनागत व्यय.
योजनागत व्यय में वे सभी खर्च आते हैं, जो कई डिपार्टमेंट की ओर से चलाई जा रही योजनाओं पर किया जाता है. इसका एस्टीमेट अलग-अलग मंत्रालय तय करते हैं.
गैर योजनागत व्यय के दो हिस्से होते हैं- गैर-योजनागत राजस्व व्यय और गैर-योजनागत पूंजीगत व्यय. गैर-योजनागत राजस्व व्यय में ब्याज की अदायगी, सब्सिडी, सरकारी कर्मचारियों को वेतन की अदायगी, राज्य सरकारों को ग्रांट, विदेशी सरकारों को दिए जाने वाले ग्रांट आदि शामिल होते हैं. वहीं गैर-योजनागत पूंजीगत व्यय में डिफेंस, पब्लिक इंटरप्राइजेज को दिया जाने वाला कर्ज, राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और विदेशी सरकारों को दिया जाने वाला कर्ज शामिल होता है.
सब्सिडी (Subsidies)
सरकार की ओर से व्यक्तियों या समूहों को नकदी या टैक्स से छूट के रूप में दिया जाने वाला लाभ सब्सिडी कहलाता है. सरकार अपनी तमाम योजनाओं के जरिए सब्सिडी देती है.
आमदनी और खर्चों का हिसाब करने के बाद दो परिस्थितियां हो सकती हैं. या तो सरकार को घाटा हो सकता है या फायदा. हमारे देश की सरकार हमेशा से घाटे में रही हैं.
राजस्व घाटा (Revenue Deficit)
राजस्व घाटे का मतलब ये है कि सरकार ने जितने रेवेन्यू का अनुमान लगाया था, उससे ज्यादा का खर्च हो गया. मतलब ये है कि अनुमान किए गए रेवेन्यू और खर्चे के बीच का अंतर राजस्व घाटा कहलाता है.
राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
सरकार की कुल आय और खर्चे में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है. इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिए कितनी उधारी की जरूरत होगी. बजट के दौरान सभी इसी आंकड़े का इंतजार करते हैं.
अब बात उस शब्द की, जिसका नाम आप सबसे ज्यादा सुनते हैं ये है GDP यानी GROSS DOMESTIC PRODUCT.
ये देश की अर्थव्यवस्था की सेहत बताने वाला सबसे प्रमुख पैमाना है. एक साल के दौरान मैन्यूफैक्चर्ड सभी उत्पादों और सेवाओं के सम्मिलित बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है.
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