देश में जब कोरोना वायरस लॉकडाउन जारी था और सभी आर्थिक गतिविधियां रुकी हुई थीं, तब एक कंपनी है जिसने अपना डेढ़ लाख करोड़ का कर्जा उतारने के लिए दो महीने से भी कम समय में पैसे जुटा लिए. ये कारनामा एशिया के सबसे धनी आदमी मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने किया है. रिलायंस ने राइट्स इश्यू और अपने डिजिटल वेंचर जियो में 24.7% की हिस्सेदारी बेच कर रकम जुटा ली है. किन निवेशकों ने जियो में हिस्सेदारी खरीदी, रिलायंस इस पैसे का क्या करेगा और अंबानी की आगे की क्या प्लानिंग है, ये सब बारी-बारी से समझते हैं.
जियो का एकाधिकार मुश्किल है क्योंकि एयरटेल भी एक बड़ा प्लेयर है. हालांकि, भारत में इन दो कंपनियों के सामने कोई तीसरा प्लेटफॉर्म थोड़ा कमजोर ही रहेगा.संजय कपूर, एयरटेल के पूर्व सीईओ
जियो में किसने निवेश किया?
- सबसे पहले सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने जियो में निवेश किया था. 22 अप्रैल को इस डील का ऐलान हुआ था. जियो ने फेसबुक के साथ 43,574 करोड़ रुपए की डील की थी. इस डील के बाद फेसबुक, जियो का सबसे बड़ा माइनॉरिटी शेयर होल्डर बन गया. फेसबुक ने 9.99 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी.
- फेसबुक के बाद अमेरिकी कंपनी सिल्वर लेक ने रिलायंस जियो में निवेश का ऐलान किया. 4 मई को रिलायंस इंडस्टरीज ने बताया कि सिल्वर लेक जियो प्लेटफॉर्म में 1.15 फीसदी की हिस्सेदारी खरीदकर 5655 करोड़ रुपए का निवेश करेगी.
- इसके बाद 8 मई को विस्ता इक्विटी पार्टनर्स ने जियो प्लेटफॉर्म में निवेश किया. कंपनी ने 2.32 फीसदी हिस्सेदारी करीब 11,367 करोड़ रुपए में खरीदी.
- 17 मई को अमेरिका की प्राइवेट इक्विटी फर्म जनरल अटलांटिक ने जियो में 6,598 करोड़ का निवेश किया. ये निवेश 1.34 फीसदी के इक्विटी स्टेक के जरिए किया गया.
- फिर अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फर्म KKR ने 22 मई को जियो में 2.32 फीसदी हिस्सेदारी 11,367 करोड़ में खरीदा.
- 5 जून को अबू धाबी के सॉवरेन वेल्थ फंड मुबादला इन्वेस्टमेंट कंपनी ने जियो की 1.85 प्रतिशत हिस्सेदारी 9,093.60 करोड़ में खरीदी.
- 5 जून को सिल्वर लेक ने फिर जियो में 0.93 प्रतिशत हिस्सेदारी 4,546.80 करोड़ में खरीद ली.
- 7 जून को अबू धाबी इंवेस्टमेंट अथॉरिटी (ADIA) ने जियो में 1.16 फीसदी की हिस्सेदारी 5,683.50 करोड़ में खरीदी.
- 13 जून को एसेट फर्म TPG ने जियो प्लेटफॉर्म्स में 0.93 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए 4,546.80 करोड़ रुपये का निवेश किया.
- 13 जून को दुनिया की सबसे बड़ी कंज्यूमर-फोकस्ड प्राइवेट इक्विटी फर्म L Catterton ने जियो में 0.39 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए 1,894.50 करोड़ का निवेश किया.
- 18 जून को सऊदी अरब के पब्लिक इंवेस्टमेंट फंड (PIF) ने जियो में 2.32 फीसदी की हिस्सेदारी 11,367 करोड़ में खरीदी.
कर्ज चुकाने में रिलायंस की कुछ मदद ब्रिटिश पेट्रोलियम (BP) ने भी की थी. 1 मई को भारत सरकार ने दोनों कंपनियों की डील को मंजूरी दे दी थी. इसके तहत BP, रिलायंस इंडस्ट्रीज की फ्यूल रिटेल कंपनी रिलायंस पेट्रोलियम में 7000 करोड़ का निवेश करेगी.
रिलायंस पर था 1.6 लाख करोड़ का कर्ज
रिलायंस इंडस्ट्रीज पर 21 बिलियन डॉलर या 161,035 करोड़ रूपए का कर्ज था. पिछले साल अगस्त में एनुअल जनरल मीटिंग (AGM) के दौरान मुकेश अंबानी ने रिलायंस को कर्ज-मुक्त करने के लक्ष्य की बात कही थी. इसके लिए 31 मार्च 2021 तक का समय तय किया गया था.
हालांकि इस समय सीमा से करीब 1 साल पहले ही रिलायंस ने अपना कर्ज उतारने के लिए पैसा जुटा लिया है. इस पैसे का बड़ा हिस्सा जियो में 24.7% की हिस्सेदारी बेच कर आया. 10 निवेशकों को 9 हफ्तों में हिस्सेदारी बेच कर रिलायंस ने 115,693.95 करोड़ रूपए जुटाए.
इसके अलावा रिलायंस ने 53,124.20 करोड़ रूपए राइट्स इश्यू से जुटाए. कंपनी का ये इश्यू 30 सालों में पहली बार आया था.
राइट्स इश्यू कंपनी के उस फैसले को कहते हैं, जिसमें वो मौजूदा शेयरहोल्डर्स को और शेयर खरीदने का न्योता देती है. इस इश्यू के मुताबिक, शेयरहोल्डर्स ने अपने हर 15 शेयर के लिए 1 नया शेयर 1,257 रूपए में खरीदा. 20 मई से 3 जून तक ओपन रहा रिलायंस का राइट्स इश्यू 1.59 गुना बार सब्सक्राइब हुआ था.
रिलायंस इंडस्ट्रीज ने राइट्स इश्यू और जियो में हिस्सेदारी बेच कर 168,818 करोड़ रूपए जमा किए. कंपनी पर कर्ज 161,035 करोड़ रूपए का था. दो महीने में मुकेश अंबानी ने रिलायंस को कर्ज मुक्त कर दिया.
दुनिया के सबसे बड़े तेल एक्सपोर्टर से भी जल्द होगी डील
सोशल मीडिया जायंट फेसबुक से लेकर तरह-तरह की इक्विटी फर्म से पैसा जुटाने के अलावा रिलायंस इंडस्ट्रीज की नजर एक और बड़ी डील पर है. रिलायंस सऊदी अरब की अरामको के साथ लगभग 1.13 लाख करोड़ की डील कर सकता है. इस डील का ऐलान मुकेश अंबानी ने पिछले साल की AGM में किया था.
ये डील 31 मार्च 2020 तक होनी थी, लेकिन इसमें देरी हो गई है. रिलायंस अपने तेल और केमिकल बिजनेस में 20 फीसदी हिस्सेदारी अरामको को बेचना चाहता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसमें गुजरात के जामनगर स्थित रिलायंस की दो रिफाइनरी और कुछ पेट्रोकेमिकल एसेट शामिल हैं.
इतने पैसे का रिलायंस क्या करेगी?
जियो में हिस्सेदारी खरीदने वाले निवेशकों में बड़ी संख्या में टेक्नोलॉजी इन्वेस्टर्स हैं. जियो में 5,655 करोड़ का निवेश करने वाली सिल्वर लेक पार्टनर्स दुनिया की सबसे बड़े टेक्नोलॉजी निवेशकों में से एक है. इसने AirBnB, अलीबाबा, ट्विटर और ANT फाइनेंशियल जैसी टॉप टेक कंपनियों में निवेश किया है.
लेकिन सवाल है कि रिलायंस इस निवेश के पैसे का करेगी क्या? इसके लिए भारत में जल्द लागू होने वाले 5G का गेम समझना होगा.
असल में रिलायंस बिना किसी थर्ड पार्टी प्लेयर के 5G लागू करने की योजना बना रही है. कंपनी खुद की टेक्नोलॉजी डेवलप करेगी. 4G के लिए रिलायंस, सैमसंग के इक्विपमेंट पर निर्भर था. लेकिन टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) ने अपने 2018 के नोटिफिकेशन में टेलीकॉम इक्विपमेंट के लोकल मैन्युफेक्चर पर जोर दिया.
रिलायंस जियो ने 2018 में एक अमेरिकी फर्म Radisys को खरीदा था और उसकी सब्सिडियरी Rancore Technologies का खुद में विलय कर लिया. ये विलय टेलीकॉम इक्विपमेंट बनाने के लिए किया गया. ये एक्विपमेंट या तो भारत में डिजाइन किया जाएगा और बाहर बनेगा, या फिर भारत में डिजाइन और बनाया जाएगा. लेकिन इक्विपमेंट के साथ ही कंपनी को 5G स्पेक्ट्रम के लिए डीप पॉकेट भी चाहिए. 5G स्पेक्ट्रम बैंड 3,300 MHz से 3,600 MHz के बीच का है.
TRAI ने 492 करोड़ प्रति MHz के बेस प्राइस का सुझाव दिया है. इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन (ITU) के मुताबिक किसी ऑपरेटर को पूरे भारत में 5G ऑपरेट करने के लिए न्यूनतम 100 MHz चाहिए. मतलब किसी ऑपरेटर को कम से कम 49,200 करोड़ चाहिए.
ऐसा लगता है कि मुकेश अंबानी ने सभी डील पूरा हिसाब-किताब लगा के की हैं. जियो में हिस्सेदारी बेच कर और राइट्स इश्यू से रिलायंस को कर्ज मुक्त कराना और अरामको डील से 5G का बड़ा गेम खेलना.
टेलीकॉम सेक्टर में क्या बदलाव होंगे?
सितंबर 2016 में सर्विस शुरू करके तीन साल बाद जून 2019 में रिलायंस जियो भारत की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बन गई थी. जून 2019 में जियो का यूजर बेस 33 करोड़ से ज्यादा का था. अब रिलायंस के पास इतनी बड़ी तादाद में निवेश आया है तो संभावना बढ़ जाती है कि टेलीकॉम सेक्टर में जियो का एकाधिकार हो जाएगा.
लेकिन एयरटेल के पूर्व सीईओ संजय कपूर इस बात से इनकार करते हैं. क्विंट से बातचीत में कपूर ने कहा था कि उनके मुताबिक एयरटेल, जियो और बाकी प्लेटफॉर्म को-एक्सिस्ट कर सकते हैं. संजय कपूर का कहना है, "डिजिटल ऐसा एरीना है जिसमें कोई एक विजेता नहीं होता है. इसमें एक सिस्टम बन जाता है, एक इकोसिस्टम तैयार हो जाता है, जिसमें दो-तीन बड़े प्लेयर मौजूद रहते हैं. जियो का एकाधिकार मुश्किल है क्योंकि एयरटेल भी एक बड़ा प्लेयर है. हालांकि, भारत में इन दो कंपनियों के सामने कोई तीसरा प्लेटफॉर्म थोड़ा कमजोर ही रहेगा."
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