शेयर बाजार में कहावत है कि जो ऊपर जाता है वो नीचे भी आता है. लगातार चार दिनों की शेयर बाजार की गिरावट को आप इस कहावत से जोड़कर भी देख सकते हैं. लेकिन इसके पहले ये याद रखना जरूरी है कि शेयर बाजार की गिरावट भी दो तरह की होती है- एक जिसे बाजार के जानकार 'करेक्शन' कहते हैं और दूसरी जिसे 'फॉल' कहते हैं. और इस बार की गिरावट करेक्शन नहीं, बल्कि फॉल है जिसका ट्रिगर आया है मार्केट रेगुलेटर सेबी के फैसले से.
सेबी ने सोमवार को देर रात एक फैसले में स्टॉक एक्सचेंजों को निर्देश दिया था कि वो 331 शेल कंपनियों में शेयरों की खरीद-बिक्री फौरन बंद कर दें. ये 331 कंपनियां वो थीं, जिन्हें कंपनी मामलों के मंत्रालय ने शेल करार दिया था. शेल कंपनी उन्हें कहा जाता है, जिनका कोई कारोबार नहीं होता या जायदाद नहीं होती.
लेकिन सेबी की लिस्ट में शामिल 331 कंपनियों में से कई ऐसी हैं, जो कारोबार में सक्रिय हैं. और तो और, कम से कम 5 ऐसी कंपनियां हैं, जिनमें से हरेक का मार्केट कैपिटलाइजेशन 500 करोड़ रुपये से भी ज्यादा है. इनके शेयरधारकों में संस्थागत निवेशकों के साथ खुदरा निवेशक भी शामिल हैं.
शेल कंपनी का लगा दाग
सेबी के फैसले के बाद 8 अगस्त को बीएसई ने उन 331 में से 162 कंपनियों में नियमित ट्रेडिंग पर रोक लगा दी. इन कंपनियों को छठे चरण की निगरानी श्रेणी में रखा गया है. इस कैटेगरी की कंपनियां महीने में केवल एक बार शेयर कारोबार कर सकती हैं. साथ ही, जितनी कीमत के शेयरों का कारोबार होता है उसकी तीन गुनी रकम बतौर जमानत एक्सचेंज के पास रखनी पड़ती है.
बाजार में सेबी और एक्सचेंज के इस फैसले से घबराहट फैल गई और बिकवाली का दबाव, खासकर मिडकैप शेयरों में, हावी हो गया है. सोमवार से जारी गिरावट ने शेयर बाजार को एक महीने के निचले स्तर पर पहुंचा दिया है.
कुछ दिनों पहले ही 10 हजार के स्तर को पार करने वाला निफ्टी-50 अब 9800 के स्तर पर पहुंच गया है. वहीं 32250 को पार करने वाला सेंसेक्स भी 31500 के स्तर पर पहुंच चुका है. मिडकैप शेयरों में निवेशकों ने जमकर बिकवाली की है और बीएसई का मिडकैप इंडेक्स 900 प्वॉइंट लुढ़क चुका है.
दरअसल, जिन 331 कंपनियों पर सेबी ने कार्रवाई की है, उनमें म्युचुअल फंड और छोटे निवेशकों के करीब 9000 करोड़ रुपए फंस गए हैं. यही नहीं, इन कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइजेशन भी 14,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का है.
और, अभी ये साफ नहीं है कि क्या सेबी की सख्ती के दायरे में और भी कंपनियां आएंगी? वैसे, बाजार के सेंटिमेंट को खराब करने में दो और फैक्टरों का हाथ भी रहा है- एक तो उत्तर कोरिया और अमेरिका में बढ़ रहा तनाव और दूसरा दिसंबर 2016 के बाद से एकतरफा तेजी के बाद बाजार के वैल्युएशन को लेकर बढ़ी चिंता.
ऐसे में मन में ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि बाजार का रुख यहां से आगे क्या रह सकता है. बाजार के जानकारों का मानना है कि शेल कंपनियों पर सख्ती के फैसले ने बाजार के सेंटिमेंट को खराब जरूर किया है, लेकिन मोटे तौर पर बाजार के फंडामेंटल्स मजबूत हैं. इसलिए हो सकता है ये गिरावट थोड़ी और बढ़े और ट्रेडिंग करने वालों को थोड़ा नुकसान उठाना पड़े, लेकिन लंबी अवधि के निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है.
मार्केट एक्सपर्ट तो यही सलाह दे रहे हैं कि अच्छे फंडामेंटल्स वाले शेयरों के टूटने पर उनमें नया निवेश भी करने से आप ना चूकें. तो भले ही बाजार की गिरावट 'फॉल' हो, इसे लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर अपने लिए 'करेक्शन' में तब्दील कर सकते हैं.
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