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क्यों घटा है देश के लोगों का अर्थव्यवस्था पर भरोसा?

RBI ऐसे सर्वे कराता है, जिनके आधार पर आर्थिक, रोजगार, कीमतों, इनकम और खर्चों कंज्यूमर के सेंटिमेंट का पता चलता है.

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अर्थव्यवस्था की मंदी को लेकर सरकार और विपक्ष के दावे-प्रतिदावे चाहे जो हों, देश की अर्थव्यवस्था पर आम कंज्यूमर का भरोसा घटा है. ये बात कही है खुद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने.

सितंबर महीने के लिए आरबीआई ने जो कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे जारी किया है, उसके नतीजे दिखाते हैं कि सामान्य आर्थिक हालातों को लेकर कंज्यूमर में निराशा बढ़ रही है.

आरबीआई नियमित अंतराल पर ऐसे सर्वे कराता है, जिनके आधार पर आर्थिक हालात, रोजगार की संभावनाएं, कीमतों, इनकम और खर्चों को लेकर कंज्यूमर के सेंटिमेंट का पता चलता है.

सितंबर 2017 के सर्वे में कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स 95.5 पर पहुंच गया, जबकि जून 2017 में ये 96.8 पर था.
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आरबीआई के चार्ट पर नजर डालें, तो साफ होगा कि कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स का ये पिछले 4 सालों का सबसे निचला स्तर है. इसी तरह फ्यूचर एक्सपेक्टेशंस इंडेक्स भी जून 2017 के मुकाबले नीचे आया है. इसका मतलब है कि लोगों को फिलहाल इस बात की संभावना कम लग रही है कि भविष्य में आर्थिक हालात बेहतर होंगे.

खास बात ये है कि दिसंबर 2016 के सर्वे में लोगों में आर्थिक हालात को लेकर जबरदस्त उत्साह था, लेकिन उसके बाद के सर्वे में ये सेंटिमेंट निगेटिव ही रहे हैं. दिसंबर 2016 में सर्वे में शामिल लोगों में ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा थी जिन्हें आर्थिक हालात सुधरते दिख रहे थे, लेकिन अब ऐसे लोग बढ़ गए हैं जो मानते हैं कि आर्थिक हालात बिगड़े हैं.

RBI ऐसे सर्वे कराता है, जिनके आधार पर आर्थिक, रोजगार, कीमतों, इनकम और खर्चों कंज्यूमर के सेंटिमेंट का पता चलता है.
स्रोत- आरबीआई
इन्फोग्राफिक्स: स्मृति चंदेल

दिसंबर 2016 वही समय है जब देश में नोटबंदी लागू हुई थी. उस वक्त नोटबंदी के जिस तरह के फायदे गिनाए गए थे, उससे लोगों की उम्मीदें बढ़ी थीं. लेकिन बाद के महीनों में जब नोटबंदी के वैसे सकारात्मक असर नहीं दिखे तो लोगों का आर्थिक हालात सुधरने का भरोसा कम हुआ है.

सितंबर के सर्वे में अब तक सबसे ज्यादा 40.7 फीसदी लोगों ने कहा कि आर्थिक हालात बिगड़े हैं, और यही चिंता की बात है. इसी सर्वे में रोजगार को लेकर भी आम लोगों की बढ़ती चिंता साफ दिख रही है. करीब 44 फीसदी लोगों ने कहा कि रोजगार के मोर्चे पर देश में हालात बिगड़े हैं.
RBI ऐसे सर्वे कराता है, जिनके आधार पर आर्थिक, रोजगार, कीमतों, इनकम और खर्चों कंज्यूमर के सेंटिमेंट का पता चलता है.
स्रोत- आरबीआई
इन्फोग्राफिक्स: स्मृति चंदेल
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रोजगार को लेकर ये निराशा इनकम में बढ़ोतरी को लेकर भी दिखती है. सितंबर के सर्वे में शामिल किसी भी शख्स ने ये नहीं कहा कि उसकी आय बढ़ी है. आय में बढ़ोतरी को लेकर लोगों की निराशा पिछले मार्च 2017 से ही बढ़ती गई है.

RBI ऐसे सर्वे कराता है, जिनके आधार पर आर्थिक, रोजगार, कीमतों, इनकम और खर्चों कंज्यूमर के सेंटिमेंट का पता चलता है.
स्रोत- आरबीआई
इन्फोग्राफिक्स: स्मृति चंदेल
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जाहिर है, जब कंपनियां नए निवेश को लेकर उत्साही नहीं हैं, वो लोगों की भर्तियां कम से कम कर रही हैं, तो लोगों की इनकम में बढ़ोतरी की गुंजाइश भी घटेगी. इकनॉमी को इसका बड़ा नुकसान ये है कि इनकम में बढ़ोतरी की संभावना नहीं दिखने पर लोग अपने गैर-जरूरी खर्च कम कर देते हैं या टाल देते हैं. इस वजह से बाजार में डिमांड भी घट जाती है.

आरबीआई का ये कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे देश के 6 महानगरों में कराया गया था- नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु. इस सर्वे में 5100 लोगों को शामिल किया गया था. जानकारों के मुताबिक, महानगरों में लोगों की इस राय से संकेत मिलते हैं कि पूरे देश में आर्थिक हालातों को लेकर सेंटिमेंट किस दिशा में जा रहे हैं.

हालांकि उनका ये भी मानना है कि कई प्रोडक्ट्स पर जीएसटी की दरों में कमी और व्यापारियों के लिए रिटर्न फाइलिंग की प्रक्रिया आसान बनाए जाने का फायदा अगली तिमाहियों में मिलेगा. लेकिन रोजगार के मामले में सरकार को ठोस कदम जल्दी से जल्दी उठाने होंगे. कंजप्शन बेस्ड इंडियन इकनॉमी के लिए जरूरी है कि रोजगार के नए मौके ज्यादा बनें, तभी इन्वेस्टमेंट, कंजप्शन और ग्रोथ के साइकिल का पहिया बिना किसी स्पीडब्रेकर के घूम सकेगा.

(धीरज कुमार अग्रवाल जाने-माने जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)

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