मोदी सरकार की कैबिनेट ने बुधवार को रेलवे बजट को आम बजट के साथ मिलाने वाला प्रस्ताव मंजूर कर लिया है. केंद्र सरकार इस कदम से बजट को फरवरी के आखिरी हफ्ते में पेश करके चर्चा को फाइनेंशियल ईयर शुरू होने से पहले ही पूरी कराने की कोशिश कर रही है.
साल 1924 में रेलवे को आम बजट से अलग किया था, ताकि रेलवे एक स्वतंत्र संस्था के रूप में विकसित हो सके. लेकिन सवाल ये है कि क्या इन दो बजटों को एक साथ मिला देने से रेलवे की बदहाली दूर होगी.
विलियम एकवर्थ कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ब्रिटिश सरकार ने साल 1924 में रेल बजट को आम बजट से अलग कर दिया. इसकी वजह ये थी कि ब्रिटिश सरकार के 180 करोड़ रुपये के बजट का लगभग 80 करोड़ रुपये रेलवे में खर्च होता था. ऐसे में ये कदम उठाया गया, ताकि रेलवे सरकार से अलग होकर एक कमर्शियल संस्था का रूप ले सके.
मौजूदा सरकार का तर्क है कि चूंकि ब्रिटिश राज में रेल बजट ब्रिटिश सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा था. लेकिन समय बदलने के साथ रेल बजट आम बजट की तुलना में बहुत कम रह गया है. सरकार के अन्य विभागों, जैसे डिफेंस का बजट रेलवे से कहीं ज्यादा है. ऐसे में सरकार के मुताबिक बदली हुई स्थितियों में इस परंपरा को निभाने का कोई लॉजिक नहीं है.
क्या राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होगा रेलवे?
रेल मंत्री हर साल रेल बजट में नई ट्रेनें शुरू करते हैं. रेल बजट सांसदों के लिए वोटर्स को लुभाने का रास्ता होता है. सांसद नई ट्रेनों की मांग के साथ-साथ ट्रेनों के नए स्टॉप्स की मांग करते हैं, ताकि उन्हें आने वाले चुनाव में इसका फायदा मिल सके.
ट्रेनों की घोषणा के तकनीकी पहलुओं को देखें, तो रेलवे की इंटर-रेलवे टाइम टेबल कमेटी नई ट्रेनों की घोषणा के ऑपरेशन पहलुओं पर काम करती है. वर्तमान में चल रही ट्रेनों के रूट और उनके रूट पर ट्रैफिक जैसे पहलुओं की जांच की जाती है. इसका उद्देश्य ये होता है कि नई ट्रेनें टाइम से अपने डेस्टिनेशन पर पहुंचें और पुरानी ट्रेनों पर इनका कोई फर्क नहीं पड़े.
लेकिन राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आईआरटीटीसी के सुझावों पर ध्यान नहीं दिया जाता.
क्या रेलवे कमर्शियल अकाउंटिंग सिस्टम फॉलो करेगा?
देश की 21 हजार ट्रेनें हर साल 23 मिलियन लोगों को उनके डेस्टिनेशंस पर पहुंचाने के साथ-साथ 3 मिलियन टन माल का ट्रांसपोर्ट करता है. आंकड़ों को देखें, तो मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों पर प्रति व्यक्ति के हिसाब से 22.6 पैसे की कमाई होती है, तो खर्च 38.3 पैसे हैं. वहीं, सामान्य ट्रेनों में कमाई 15.5 पैसे प्रति व्यक्ति है, तो खर्च 49.1 पैसे है. लेकिन नई ट्रेनों की घोषणा के वक्त इन फैसलों से रेलवे को होने वाले खर्च और लाभ की समीक्षा होती है.
इससे भी बड़ी बात ये है कि रेलवे कमर्शियल अकाउंटिंग सिस्टम फॉलो नहीं करता है. IRTTC के मुताबिक, कोई फिक्स्ड रेलवे इन्फ्रास्ट्रक्चर, पैसेंजर ट्रैफिक, फ्रैट ट्रैफिक, सब-अर्बन रेलवे और कंस्ट्रक्शन-प्रॉडक्शन यूनिट्स से जुड़े अकाउंट्स नहीं जानता.
ये सही है कि रेलवे देश के सबसे बड़े ट्रांसपोर्टर के बारे में कमर्शियल लिहाज से फैसले नहीं लिए जा सकते. लेकिन क्या आम बजट में शामिल होने से रेलवे इस बदहाली से निपट पाएगा?
रेलवे को मिलेगा रिसोर्स का फायदा
रेल बजट के आम बजट में शामिल होने से रेलवे को एक फायदा मिलना तय है. आम बजट में शामिल होने से रेलवे को अपनी जरूरत के हिसाब से केंद्र सरकार से रिसोर्स मिलने में सहूलियत होगी.
केंद्रीय वित्तमंत्री ने कैबिनेट के फैसले की घोषणा करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार रेलवे की प्रभुसत्ता पर किसी तरह की आंच नहीं आने देगी. इसके साथ ही रेलवे के खर्च आदि पर संसदीय चर्चा की पहल करने की बात भी कही है.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या रेलवे को सरकार के इस कदम से फायदा होगा या स्थिति ज्यों की त्यों चलती रहेगी?
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)