एक पुरानी कहावत है- दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है. माने या न माने, बिलकुल ऐसी ही स्थिति अभी बिहार में दिख रही है. देश के कई राज्यों में बढ़ते कोरोना संक्रमण की वजह से फिर से लॉकडाउन लगाए जाने की आशंका के बीच प्रवासी मजदूरों में अपने घर लौटने की अभी आपाधापी सी मची हुई है.
सिर पर सामान की गठरी और गोद में अपने नन्हें से बच्चे को लिए प्रवासी मजदूर रोज बसों, ट्रकों अरे ट्रेन से यहां अपने घर लौट रहे हैं. पिछले तीन-चार दिनों में महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश से हजारों प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौट चुके हैं और दिन पर दिन उनकी संख्या बाद रही है. अब तो सेंट्रल रेलवे ने बजाप्ता मुंबई से पटना और दरभंगा, और पुणे से दानापुर के लिए स्पेशल ट्रेनों को चलने की घोषणा की है ताकि बिहार के प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाया जा सके. रेलवे के इस कदम ने प्रवासी मज़दूर और भी ज्यादा आशंकित हो गए हैं.
रेलवे के साथ केंद्र सरकार द्वारा जारी किये गए एक बयान ने भी इन प्रवासी मज़दूरों के भी आतंक मचा दिया है. नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ वी के पॉल ने मंगलवार के अपने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा तेज है इसलिए देश के लिए अगले चार सप्ताह बेहद "नाजुक" हैं . उन्होंने कहा की पिछली बार के मुकाबले यह तेजी से फ़ैल रहा है और इसे नियंत्रित करने के लिए पुरे देश को मेहनत करनी होगी. सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस खबर ने अचानक ही लोगों के बीच भय का माहौल पैदा कर दिया है जो प्रवासी मजदूरों के भागमभाग से जाहिर है.
मजदूरों के बीच अभी इस बात का डर है कि कहीं पिछले साल की तरह इस बार भी उन्हें अपने घरों को लौटने के लिए फिर से उन्हें सैंकड़ों किलोमीटर पैदल न चलना पड़े. इस डर से वो पहले ही कार्य स्थल को छोड़ कर अपने घर भाग रहे हैं. लॉकडाउन फिर से लगाए जाने का खाफ उनके माथे पर साफ़ देखा जा सकता है.
पंजाब से अपने साथियों के साथ अपने घर समस्तीपुर लौट रहे मोहन उराव कहते है, "कोरोना के हालत दिन-ब-दिन देश में गंभीर होते जा रहे हैं. ऐसे में एक बार फिर लॉकडाउन लगाने की नौबत आ गयी है. इसलिए समय रहते हमलोग अपने घर लौट रहें हैं ताकि लॉकडाउन लगने के बाद फिर से पैदल न चलना पड़े." उराव सड़क के रास्ते बिहार-उत्तर प्रदेश के सीमा पर स्थित गोपालगंज जिले के बलथरी चेक पोस्ट पहुंचे हैं और समस्तीपुर जाने के लिए बस का इंतज़ार कर रहे हैं.
राजस्थान के जयपुर से अपने जिले कटिहार जा रहे मोहममद शमीम पर तो लॉकडाउन का और भी भय समाया हुआ है. शमीम कहते हैं-
“अगला पल क्या होगा कोई नहीं जानता. इसलिए हमलोग अपने घरों को भाग रहे हैं. देश में नोटबंदी की घोषणा लागू करने के महज कुछ घंटे पहले की गयी. उसी तरह मात्र चार घंटे पहले देश में लॉकडाउन लगाने की घोषणा हुई. इसलिए इस बार हमलोग ज्यादा चौकन्ने हैं और फिर कोई नयी परेशानी में फंसना नहीं चाहते.”
सीतामढ़ी के पवन कुमार भी शमीम की बातों का ही समर्थन करते हुए कहते हैं कि आगे होनेवाली परेशानियों से बचने के लिए वे लोग अपने घरों को लौट रहे हैं. पवन साथियों के साथ दिल्ली में मजदूरी करते थे, जहां के हालत आज काफी ख़राब हो चुके हैं और मजबूर होकर सरकार को नाइट कर्फ्यू लगानी पड़ी है.
कई लोग इसलिए अपने घरों को लौट रहें हैं क्योंकि उन्हें कंपनी ने निकल दिया है और दूसरी कंपनियां अभी कोई काम नहीं देना चाहती. पश्चिम चम्पारण के धमौरा निवासी त्रिवेणी शंकर इनमें से एक हैं. शंकर मात्र दो माह पहले ही रोजगार की तलाश में दिल्ली गए थे. एक महीने तो उन्हें रोजगार ढूंढ़ने में ही लग गए और जब उन्हें काम मिलना शुरू हुआ तो मालिक ने कोरोना बढ़ने की बात कहकर घर लौटने को कह दिया. शंकर मंगलवार को ट्रेन पकड़कर दिल्ली से पटना जंक्शन पहुंचे हैं.
उधर, मदन राम पुरे परिवार के साथ पटना जंक्शन पर ट्रेन से उतरकर मुजफ्फरपुर जाने के लिए बस पकड़ने पटना के मीठापुर बस स्टैंड पहुंचे हैं. बोरे में कपडे, झोले में जरुरत के सामान और गोद में बच्चे लिए मदन कहते है-
पिछले साल लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद नवम्बर में देहरादून गए थे. सोचा था कि ज़िन्दगी पटरी पर आ जाएगी लेकिन होली के बाद जब कोरोना संक्रमण बेकाबू हो गया तो उन्होंने परिवार के साथ लौटे का फैसला किया.
मुजफ्फरपुर के रहने वाले मदन देहरादून में राज मिस्त्री का काम करते थे.
कइयों ने बताया कि लॉकडाउन की आशंका के साथ ही कई राज्यों में कोरोना के बिगड़ते हालात और जारी पाबंदियों के चलते भी उन्हें अपने घर लौटने को मजबूर होना पड़ा है. जैसे महाराष्ट्र, दिल्ली गुजरात और पंजाब में अभी नाईट कर्फ्यू लगे हैं. इसके अलावा भी और कई पाबंदियां लगायी गयीं हैं ताकि वायरस के चेन को तोड़ा जा सके. महाराष्ट्र सरकार ने तो नाईट कर्फ्यू के अलावा, दुकानों को बंद रखने और सप्ताह के अंत में लॉक डाउन लगाने की भी घोषणा कर रही है. जाहिर है सरकार के इस कदम से फैक्ट्रियों में काम प्रभावित होंगे जिसका मतलब है मजदूर और बेरोजगार होंगे.
एक सरकारी आकड़े के अनुसार लॉकडाउन लगाने जाने के बाद पिछले साल करीब 30 लाख प्रवासी मज़दूर बिहार लौटे थे. वैसे तो राज्य सरकार ने बिहार के भीतर ही उन्हें रोजगार देने की घोषणा की थी लेकिन उनके चॉइस और कौशल के अनुसार रोजगार नहीं मिलने के चलते लॉकडाउन हटने के बाद हज़ारों मजदूर फिर से वापस बाहर चले गए.
कोरोना के बार-बार बढ़ने संक्रमण के चलते अब मज़दूरों के सामने रोजी-रोटी के गंभीर संकट पैदा हो गए हैं. अब उनके सामने या तो मनरेगा के तहत मजदूरी करने का ऑप्शन है या फिर भूखों मरने का. वैसे, मनरेगा के तहत रोजगार भी उतना उपलब्ध नहीं हैं जितना की बेरोजगार हुए मजदूरों की संख्या है.
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