वैक्सीनेशन को लेकर देश में दो खेमे साफ तौर पर देखा जा सकते हैं, कुछ जगह पर तो आसानी से टीके लग रहे हैं तो कहीं वैक्सीन और रजिस्ट्रेशन के लिए कई-कई दिनों तक जद्दोजहद करनी पड़ रही है. कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सरकार को कहा था कि आपको जमीनी हालात देखने की जरूरत है और ‘डिजिटल इंडिया' की वास्तविक स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए. आइए जानते हैं कैसे भारत एक डिजिटल खाई से दो हिस्सों में बंटा है और ये टीकाकरण को किस तरह प्रभावित कर रहा है.
पहले जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले ही सुनवाई के दौरान कहा कि नीति निर्माताओं को जमीनी हकीकत से वाकिफ होना चाहिए और ‘डिजिटल इंडिया' की वास्तविक स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने वैक्सीनेशन के लिए कोविन एप पर रजिस्ट्रेशन की बाध्यता को लेकर भी सवाल किया. कोर्ट ने कहा कि झारखंड के किसी मजदूर का राजस्थान में रजिस्ट्रेशन कैसे होगा? केंद्र डिजिटल इंडिया की बात करता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में हालात अलग हैं. इसके आगे कोर्ट ने कहा कि केंद्र को जमीनी हालात को ध्यान में रखकर पॉलिसी में बदलाव जरूर करना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि केंद्र ने टीकाकरण के लिए कोविन ऐप पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया है तो ऐसे में वह देश में जो डिजिटल विभाजन का मुद्दा है उसका समाधान कैसे निकालेगी.
कोर्ट ने यह भी कहा कि हम चाहते हैं कि आप (केंद्र सरकार) हकीकत से वाकिफ हों कि देश में क्या हो रहा है और आप जरूरी बदलाव करें.
एक मई से 18 से 44 वर्ष की आयु वालों का वैक्सीनेशन प्रारंभ किया गया है. इसमें पंजीकरण अनिवार्यता की शर्त से वे लोग टीकारकण के अवसरों से प्रभावित हो रहे हैं, जिन तक डिजिटल पहुंच नहीं है.
डिजिटल इंडिया में कितना व्यापक है डिजिटल विभाजन?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार लोकनीति-सीएसडीएस की नेशनल इलेक्शन स्टडी 2019 के आंकड़ें बताते हैं कि
देश में तीन में से एक व्यक्ति स्मार्टफोन का प्रयोग करता है. इनमें से लगभग 90 फीसदी यूजर्स के स्मार्टफोन में इंटरनेट था.
वहीं इस स्टडी में 16 फीसदी घरों में लैपटॉप या कम्प्यूटर होने की बात कही गई थी, जबकि महज 10 फीसदी घरों में इंटरनेट कनेक्शन पाया गया था.
माना गया है कि देश में 18 से 44 वर्ष जो स्मार्टफोन यूजर्स है उनमें से लगभग आधे ही इसके मालिक है. ऐसे में यह अनुपात निराशाजनक है.
भारत में स्मार्टफोन यूजर्स
पुरुष vs महिला डिजिटल विभाजन
पुरुष 41%
महिला 24%
शहरी Vs ग्रामीण डिजिटल विभाजन
शहरी 49%
ग्रामीण 27%
शहरी और ग्रामीण में भी डिजिटल विभाजन दिखता है. शहरी क्षेत्र में पांच में से हर तीसरे के पास स्मार्टफोन है, जबकि ग्रामीण इलाकों में हर पांच में से दो से भी कम लोगों के पास स्मार्टफोन है.
शहरी क्षेत्रों में भी डिजिटल डिवाइड दिखता है. सिटी में 72 फीसदी तो कस्बों में 56 फीसदी लोगों के पास स्मार्टफोन है.
जाति और वर्ग आधारित डिजिटल विभाजन
उच्च जाति 43%
ओबीसी 30%
एससी 25%
एसटी 23%
मुस्लिम 32%
अन्य 38%
(लोकनीति-सीएसडीएस की नेशनल इलेक्शन स्टडी 2019 के आंकड़ों के मुताबिक)
वहीं 18 से 44 आयुवर्ग के आंकडे़ इस प्रकार है...
पुरुष vs महिला डिजिटल विभाजन
पुरुष 55%
महिला 33%
शहरी Vs ग्रामीण डिजिटल विभाजन
शहरी 63%
ग्रामीण 38%
जाति और वर्ग आधारित डिजिटल विभाजन
उच्च जाति 57%
ओबीसी 42%
एससी 36%
एसटी 32%
मुस्लिम 43%
अन्य 52%
स्रोत : लोकनीति-सीएसडीएस की नेशनल इलेक्शन स्टडी 2019
किन पर है बाहर होने का जोखिम?
जाहिर है कि वे लोग जो शहरी, अमीर, उच्च जाति, शिक्षित और पुरुष हैं उनके पास इंटरनेट सुविधा के साथ स्मार्टफोन होने की अधिक संभावना है. ऐसे में इनके अलावा बाकी सभी लोगों को टीके तक पहुंच तुलनात्मक रूप से कम हो जाती है.
अगर हम महिला वर्ग का ही उदारण लेते हैं तो पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पास स्मार्टफोन की संभावना कम होती है. 18 से 44 आयुवर्ग में पुरुषों और महिलाओं के बीच में 22 फीसदी का गैप है.
जाति और वर्ग भी डिजिटल खाई को बढ़ाते हैं. 18 से 44 आयुवर्ग के आंकड़ें बताते हैं कि गरीबों की तुलना में अमीरों के पास स्मार्टफोन की संभावना तीन गुना ज्यादा है. वहीं एससी/एसटी की तुलना में उच्च जाति वालों के पास स्मार्टफोन होने की संभावना 1.5 गुना ज्यादा है.
18 से 44 साल के लाेगों के बीच भी डिजिटल दूरी देखने को मिलती है. आंकड़ों के मुताबिक 36-44 आयुवर्ग की तुलना में 15-25 आयुवर्ग के लोगों के पास स्मार्टफोन की संभावना दोगुनी है.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ग्रामीण भारत की कठिनाईयों का जिक्र किया था. आंकड़ें भी सुप्रीम कोर्ट की चिंता के पक्ष में हैं. इसके अनुसार यह असंभव सा दिखता है कि ग्रामीण भारत में रहने वाले निरक्षर ग्रामीण डिजिटल खाई को पार करके कोविन पोर्टल में रजिस्ट्रेशन कराकर वैक्सीनेशन करा सकें.
18-44 आयुवर्ग में गैर-साक्षर लोगों में से केवल 8%, प्राथमिक तक पढ़ने वालों में से 17% और मैट्रिक तक शिक्षित लोगों में से 40% के पास खुद के स्मार्टफोन हैं, जबकि कॉलेज में पढ़ने वाल हर चार में से तीन यानी 74% के पास स्मार्टफोन है.
कोविड की पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर ने अंदरुनी इलाकों यानी ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा तेजी से अपना कहर फैलाया. ऐसे में टीकाकरण की शहरी और ग्रामीण विषमता को दूर करने की जरूरत है.
सरकार की ने 24 मई को जानकारीदी है कि 18-44 आयु वर्ग को वॉक इन वैक्सीन मिलेगी. लेकिन इसमें कई शर्तें हैं और शर्ते उलझन भरी भी हैं. जैसे कि तब वैक्सीन मिलेगी जब ऑनलाइन बुकिंग के बाद कोई न पहुंचे. जब आप बताएं कि आपकी पास स्मार्टफोन या इंटरनेट तक पहुंच नहीं है. अब ये कैसे तय करेंगे कि किसके पास स्मार्टफोन है, किसके पास नहीं. राज्यों से कहा गया है कि वो चाहें तो किसी साइट पर कोई सेशल पूरी तरह वॉक इन कर सकते हैं. सवाल ये है कि जब देश में ढेर सारे लोगों की पहुंच इंटरनेट और स्मार्टफोन तक नहीं है तो फिर जान बचाने वाली वैक्सीन देने के लिए इतने शर्तें क्यों?
सच ये है कि देश की एक बड़ी आबादी वैक्सीन का एक शाॅट लगवाने के लिए मशक्कत कर रही है. इस संघर्ष के पीछे स्मार्टफोन की कमी होने के साथ-साथ रजिस्ट्रेशन की प्रकिया न जानना, भाषा का सीमित ज्ञान क्योंकि पोर्टल पर जानकारी अंग्रेजी में ही भरनी पड़ रही है.
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