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इलाज न मिलने पर कोविड से मौत, सरकार के खिलाफ मुकदमा चला सकते हैं?

नाकामी स्पष्ट है और आंकड़ों से साबित की जा सकती है, क्या सरकार को जवाबदेह ठहरा सकते हैं?

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दिल्ली में 30 वर्षीय नवीन कम हुए ऑक्सीजन लेबल(SpO2) के कारण हांफ रहा था जब कथित तौर पर उसे सरकारी राव तुला राम मेमोरियल हॉस्पिटल में बेड देने से इंकार कर दिया गया. इतने कम SpO2 लेबल होने के बावजूद जांच कर रहे डॉक्टर ने अस्पताल में नवीन को भर्ती नहीं किया.

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नवीन का परिवार पागलों जैसे मदद की भीख मांगता रहा तब भी अस्पताल ने उसे दूसरे हास्पिटल ट्रांसफर करने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं की. सिर्फ 1 घंटे बाद घटते ऑक्सीजन के कारण नवीन ने दम तोड़ दिया.

नवीन के परिवार के अनुसार वह 'सरकार के द्वारा मौलिक अधिकारों की उपेक्षा का शिकार' हो गया. मुआवजे के माध्यम से सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

नवीन देश के उन हजारों लोगों में से था जिसकी मौत सिर्फ वायरस के कारण नहीं बल्कि सही वक्त पर मेडिकल इलाज की गैर मौजूदगी की वजह से हुई है .

24 अप्रैल को दिल्ली के जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी के कारण 25 लोगों की मौत हो गई .सिर्फ 6 दिन बाद गुरुग्राम के एक हॉस्पिटल में मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण 7 लोगों की जान चली गई.

जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ डी के बालुजा ने NDTV को बताया कि उन्हें सरकार के द्वारा 3.5 मेट्रिक टन ऑक्सीजन का आवंटन हुआ था और उसे शाम 5 बजे तक पहुंच जाना चाहिए था ,लेकिन वह आधी रात को पहुंचा.

यह राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह अपने लोगों के जीने के मौलिक अधिकार की रक्षा करें .मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर की गैरमौजूदगी या कमी से हुई मौत यह दिखलाती है कि राज्य अपने कर्तव्य को पूरा करने में नाकाम रहा. चूंकि यह नाकामी स्पष्ट है और जिसको आंकड़ों से साबित किया जा सकता है, क्या हम सरकार को जवाबदेह ठहरा सकते हैं? क्या सरकार इस दुर्गति के लिए अपराधिक रूप से उत्तरदाई है?
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क्या अथॉरिटी लापरवाह रही हैं ?

पूरे देश के हाई कोर्टों ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार और संवैधानिक ऑथोरिटी जैसे चुनाव आयोग को अपने कर्तव्य में नाकाम रहने पर लताड़ा है .

शुक्रवार, 7 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर जर्जर हालत में है और राज्य सरकार 'रेत में सर डाले शुतुरमुर्ग' की तरह व्यवहार नहीं कर सकती. एक महीने पहले ही कोर्ट ने यह कहा था कि दिसंबर 2020 में ऑक्सीजन प्लांट के लिए फंड मिलने के बावजूद दिल्ली सरकार उसे स्थापित करने में नाकाम रही.

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गवर्नमेंट अथॉरिटी को भी उनकी सरासर लापरवाही के लिए डाटा गया है. जहां मद्रास एवं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को चुनाव कुप्रबंधन के लिए सुनाया तो दूसरी ओर झारखंड हाईकोर्ट ने आवश्यक दवाइयों और ऑक्सीजन की कालाबाजारी रोकने में असफल रहने के कारण ड्रग कंट्रोलर को कारण बताओ नोटिस जारी किया है.

विभिन्न कोर्टों ने यह पाया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत भारत के लोगों को प्राप्त जीवन के मौलिक अधिकार की रक्षा में सरकारें नाकाम रही हैं. अपनी जिम्मेवारी से उनका मुकरना सिद्ध हो चुका है और उसकी आलोचना भी हुई है, लेकिन जमीन पर हालात अभी भी भयंकर है. कोविड-19 से बचे रहने के लिए बेसिक मेडिकल जरूरतों के लिए भी लोगों को संघर्ष करना पड़ रहा है.

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इस आपराधिक लापरवाही के बाद क्या?

इंडियन पीनल कोड के अंदर धारा 304 ए आपराधिक लापरवाही को परिभाषित करती है. इस धारा के तहत दोष सिद्ध व्यक्ति को 2 साल कारावास या फाइन या दोनों की सजा मिल सकती है.

आपराधिक लापरवाही के दोष को साबित होने के लिए आधार यह है :

  • पीड़ित व्यक्ति के प्रति अभियुक्त का 'ड्यूटी ऑफ केयर' होना चाहिए.

  • अभियुक्त अपने उस कर्तव्य में नाकाम रहा हो.

  • अभियुक्त उस कर्तव्य को करने में नाकाम रहा हो जिसकी उससे अपेक्षा थी या वह किया हो जो उसे नहीं करना चाहिए था.

  • अभियुक्त की लापरवाही से पीड़ित व्यक्ति को वास्तविक और ठोस हानी हुई हो.

हालांकि 'स्वास्थ्य का अधिकार' संविधान के तहत प्राप्त मौलिक अधिकारों का स्पष्ट रूप से अंग नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न निर्णयों में यह व्याख्या की है कि वह अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त 'जीवन का अधिकार' का हिस्सा है.
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दिल्ली में प्रैक्टिस कर रही अमाला दसरथी इस संकट में मेडिकल सिस्टम तक पहुंचने में लोगों की मदद कर रही हैं. उनका मानना है कि सरकार का इस वर्तमान संकट के पूर्वानुमान और उस पर क्षमता अनुसार कार्यवाही से इंकार तथा पूरे देश में समय पर लाइफसेविंग मेडिकल सुविधाओं के ना मिलने से हो रही मौतों के बीच स्पष्ट संबंध निकाला जा सकता है.

" कोविड-19 संकट को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी के रूप में मान्यता दी जा चुकी थी और पिछले साल लगभग 2 महीने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन भी लगा था .जब भारत को पता था कि उसका हेल्थ केयर सुविधाओं में निवेश इतना कम है ,तब सरकार से यह उम्मीद करना व्यवहारिक है कि वह इस कोविड-19 संकट से लड़ने के लिए पिछले 1 साल में अपने हेल्थ केयर क्षमता को बढ़ाने के लिए निवेश करती. यह उम्मीद भी व्यवहारिक है कि सरकार वर्तमान संकट को संभालने के लिए पुरजोर कोशिश करे तथा यह सुनिश्चित करे कि लाइफ सेविंग हेल्थकेयर तक नागरिकों की पहुंच के लिए सिस्टम मौजूद हो"
अमाला दसरथी
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इसलिए स्पष्ट चेतावनी के बावजूद सरकार का दूसरी लहर का अंदाजा ना लगा पाना पहली नजर में उसका नागरिकों के 'स्वास्थ्य का अधिकार' और 'जीवन के अधिकार' की सुरक्षा, करने के कर्तव्य में लापरवाही लगता है.

इस पूर्वानुमान की कमी को आपराधिक लापरवाही की हद तक संगीन करती है बढ़ते केसों और मौतों के बीच सरकार की आत्मसंतुष्टि और निष्ठुरता. चुनावी रैली पूरे जोर-शोर से चलती रही और धार्मिक भीड़ को इकट्ठा होने की मंजूरी दी गई .यह आयोजन वायरस का सुपर स्प्रेडर सिद्ध हुआ.
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नवीन का केस,लिटमस टेस्ट

कुंभ मेला, चुनावी रैलियां, पंचायत चुनाव- इन आयोजनों में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों पर आपराधिक लापरवाही का केस चलाने के लिए प्रमुख सबूत है.

यह आपराधिक लापरवाही है क्योंकि अथॉरिटियों ने ना सिर्फ पूर्वानुमान नहीं किया बल्कि हर मापदंडों पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति विरोधी काम किया .जब दूसरी लहर फैल रही थी तब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पश्चिम बंगाल में चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे थे. वायरस से लोगों के जीवन की सुरक्षा की ऐसी स्पष्ट उपेक्षा के लिए आपराधिक लापरवाही शायद सबसे छोटी सजा होगी .

4 मई को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को नवीन के परिवार की तरफ से मुआवजे के लिए दायर याचिका में नोटिस भेजा है .कोर्ट इस केस को कैसे हैंडल करती है ,क्या राय रखती है और उसका अंतिम निर्णय सरकारों एवं अथॉरिटियों की जवाबदेही (जिसे मैं आपराधिक लापरवाही समझता हूं )तय करने में मील का पत्थर साबित हो सकती है.

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सरकार की शक्ति और क्रिमिनल जस्टिस से जुड़े जोखिमों को देखते हुए पीड़ित परिवार के लिए ,सरकार को उसकी लापरवाही के लिए दोषी साबित करना एक पहाड़ सा काम होगा. फिर भी मुआवजे की उनकी याचिका न्यायालय के लिए ज्यादा स्वीकार्य होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने कोविड संकट पर स्वतः संज्ञान केस में सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को यह सलाह दी थी कि वह मेडिकल सुविधाओं की कमी से मरे लोगों के लिए मुआवजे की देशव्यापी पॉलिसी तैयार करें. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत ऐसी शक्ति सरकार के पास है.

मुआवजे की यह स्थिति सरकार की आपराधिक लापरवाही तय करने की जगह लोगों के मौलिक अधिकार की रक्षा न कर पाने पर दी गई सजा ज्यादा लगती है .

'सिस्टम के शिकार' लोगों लिए मुआवजे पर अभी भी कोई देशव्यापी पॉलिसी नहीं आई है. इसलिए नवीन के परिवार को कोर्ट जाने पर मजबूर होना पड़ा. पीड़ित परिवारों को उनके हक का मुआवजा मिलेगा या नहीं यह तो समय ही बताएगा, लेकिन जो अपने कर्तव्यों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं ,उनकी नाकामी भी साबित हो जाए तो यह इंसाफ की तरफ एक कदम होगा.

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