देशभर में दूसरी लहर में कोहराम मचाने वाले और भारत में सबसे पहले पाए गए कोविड वेरिएंट को नाम दिया गया था- डेल्टा वेरिएंट (B.1.617.2). WHO ने भी इसे वेरिएंट को संक्रामत बताया है और इसे अति संक्रामक की कैटेगरी में रखा है. अब इस डेल्टा वेरिएंट में भी म्यूटेशन हो गया है. K417N स्पाइक म्यूटेशन की वजह से 'डेल्टा प्लस' वेरिएंट सामने आया है. इसे 'AY.1' वेरिएंट भी कहा जा रहा है. ऐसे में इस FAQ में हम जानेंगे कि ये वेरिएंट कितना बड़ा खतरा है और म्यूटेशन क्या होता है.
वायरस के म्यूटेशन का मतलब क्या है?
- जेनेटिक मैटेरियल या जीनोम में आए अचानक बदलाव को म्यूटेशन कहा जाता है.
- वायरस के जेनेटिक मैटेरियल में बदलाव एक सामान्य प्रक्रिया है जिससे स्ट्रेन हर बार नए वेरिएंट में बदल जाते हैं.
- ज्यादातर मामलों में म्यूटेशन का शायद ही कोई प्रभाव पड़ता है कि वायरस किसी व्यक्ति को कैसे प्रभावित करता है.
- हालांकि, ये भी संभव है कि म्यूटेशन की वजह से स्ट्रेन और शक्तिशाली हो जाए या कमजोर पड़ जाए.
डेल्टा प्लस वेरिएंट कहां पाया गया है?
- पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड की हालिया रिपोर्ट में डेल्टा प्लस वेरिएंट के लिए 7 जून के डेटा का जिक्र है. इसमें बताया गया है कि इस तारीख तक K417N म्यूटेशन वाले 63 जीनोम की GISAID के आंकड़ों में पहचान की गई है.
- इनमें से 6 मामले भारत में हैं. GISAID एक ग्लोबल इनिशिएटिव है जिसके तहत इन्फ्लूएंजा वायरस का जीनोमिक डेटा मिलता है.
- 36 मामले इंग्लैंड में पाए गए हैं.
- ऐसे दो केस में वैक्सीनेशन की दूसरी डोज और पॉजिटिव नमूने के बीच 14 दिन से अधिक का समय बीत चुका था.
भारत में इसकी फ्रीक्वेंसी क्या है?
- अभी तक भारत में इसकी ज्यादा फ्रीक्वेंसी नहीं है. CSIR- इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) के साइंटिस्ट विनोद स्कारिया ने ट्वीट कर ये जानकारी दी थी.
क्या हमें इस म्यूटेशन के बारे में चिंतित होने की जरूरत है?
- CSIR-IGIB के डायरेक्टर और पल्मोनोलॉजिस्ट अनुराग अग्रवाल ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि “भारत में अभी तक नया वेरिएंट कोई चिंता का कारण नहीं है.”
- उन्होंने ये भी कहा कि क्या ये वेरिएंट शरीर के इम्युन सिस्टम से बच सकता है, जानने के लिए पूरी तरह से वैक्सीनेटेड लोगों का इस वेरिएंट के लिए टेस्ट करना होगा.
क्या इस नए म्यूटेशन के खिलाफ ‘एंटीबॉडी कॉकटेल’ प्रभावी है?
- जो सबूत मिले हैं वो बताते हैं कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी Casirivimab और Imdevimab के खिलाफ ये K417N म्यूटेशन प्रतिरोध दिखाता है. \
- मतलब ये कि ऐसी आशंका है कि इस नए वेरिएंट पर एंटीबॉडी कॉकटेल कम प्रभावी साबित हो सकते हैं. कॉकेटल को हाल ही में भारत में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी गई थी.
क्या इसका मतलब है कि इस म्यूटेशन से और गंभीर बीमारियां होंगी?
- इम्यूनोलॉजिस्ट विनिता बल ने पीटीआई से बातचीत में कमोबेश इस सवाल का जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि अभी तक ये नहीं पता कि इस म्यूटेश से और गंभीर बीमारियां होंगी. एंटीबॉडी थैरेपी के खिलाफ प्रतिरोध का ये इशारा नहीं करते कि ये और गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है.
- उन्होंने कहा कि वायरस की संक्रमण की क्षमता से ये तय होगा कि ये तेजी से फैलेगी या नहीं.
- कुल मिलाकर विनिता का कहना है कि अभी इससे बहुत चिंतित होने की जरूरत नहीं है.
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