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US में आराम-भारत में कोरोना का कोहराम, भारतीय-अमेरिकियों का दर्द

अमेरिका में प्रवासी भारतीय देख रहे हैं कि उनके अपने देश में उनके अपने लोग ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ रहे हैं.  

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अभय भूषण अपने चाचा-चाची की स्मृतियों को टटोल रहे हैं. कैसे दिल्ली के एक अस्पताल की क्रिटिकल केयर यूनिट में एक साथ दोनों कोविड-19 से जूझ रहे थे, और एक दूसरे से फोन मैसेज के जरिए बातें करते थे.

“आभा चाची ने अजय चाचा को टेक्स्ट करके पूछा कि वह कैसे हैं. चाची ने चाचा को बताया कि उन्होंने ऑक्सीमास्क लगाया हुआ है. अजय चाचा ने जवाब दिया कि ऑक्सीमास्क उन्होंने भी लगाया है. इसके जवाब में उनकी बीवी, यानी आभा चाची ने मजाक में कहा- कॉपीकैट. उनके बीच हंसी-मजाक का रिश्ता था.”

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भूषण की चाची ने कुछ ही दिनों बाद इस दुनिया से विदा ले ली. इसके बाद उनके पति, यानी भूषण के चाचा भी मौत की नींद सो गए. कैलिफोर्निया में रहने वाली उनकी बेटी रुचिका कुमार, जोकि भूषण की चचेरी बहन हैं, ने फेसबुक पोस्ट में लिखा था, “मम्मी का पापा को कॉपीकैट कहना सही ही था. उनकी नकल करके पापा ने भी आंखें मूंद लीं...”

भूषण सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में टेक एंटरप्रेन्योर और कम्युनिटी एक्टिविस्ट हैं. भारत में कोविड-19 महामारी में उन्होंने अपने परिवार के सात लोगों को खोया है. बेशक, रिकवर होने वालों के लिए वह शुक्रिया अदा करते हैं लेकिन अपनों को खोने का दर्द उन्हें अंदर तक सालता है.

“अजय चाचाजी एक शानदार इंसान थे. सबका ध्यान रखते थे. वह मुझसे सिर्फ पांच साल बड़े थे. इसलिए चाचा होने से ज्यादा वह मेरे दोस्त थे, यार थे. जब मैं भारत जाता था, वह हमेशा मेरे लिए मौजूद रहते थे. वह सबका स्वागत करते थे. सबके लिए समय निकालते थे. लोगों से मिलते थे, अपना सहयोग देते थे और दूसरों को सुख पहुंचाते थे.”
अभय भूषण

दो अलग-अलग सच्चाइयां

अमेरिका में बसे भारतीय हजारों किलोमीटर दूर, भारत में अपने माता-पिता, भाई-बहनों, रिश्तेदारों और दोस्तों की मौत का गम झेल रहे हैं. बेबस हैं, जैसे यकीन ही नहीं हो रहा.

भूषण और कुमार पर जो गुजरी है, उस हताशा को बहुत से भारतीय अमेरिकियों ने पिछले महीने महसूस किया है. बहुत से लोग लगातार फोन पर रहते हैं, बार-बार अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों की खैरख्वाह पूछते रहते हैं. डरावनी खबरें आती रहती हैं. वे दो किस्म की खबरों के बीच झूल रहे हैं. एक तरफ अमेरिका में बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन हो गया है, और वहां शहर खोले जा रहे हैं, दूसरी तरफ उनकी धरती, भारत में तबाही का मंजर है.

भारतीय अमेरिकियों के लिए भारत और अमेरिका की अलग-अलग सच्चाई हक्का बक्का करने वाली है. जब सात समुंदर पार अपने करीबी लोग जिंदगी की जंग हार रहे हों तो दुख कितना बड़ा हो सकता है. खासकर, जब अमेरिका में खुशियां फिर पैर पसार रही हों.

जंग अभी जारी है

अमेरिका के लिए भी साल 2020 बहुत बुरा था. लेकिन इस साल वो खूबसूरत गर्मियों का बेसब्री से इंतजार कर रहा है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संकेत दिया है कि 4 जुलाई तक, अमेरिका “वायरस से अपनी आजादी का जश्न मनाना शुरू कर देगा.”

लेकिन भारतीय अमेरिकियों को वो आजादी महसूस नहीं हो रही. उनकी अग्नि परीक्षा अभी बाकी है. कोविड-19 से उनके बुरे अनुभव अभी खत्म नहीं हुए हैं.

भारत में अपनों को खोने वाले दोस्तों और परिवारों के लिए वे लोग मेमोरियल मीटिंग्स कर रहे हैं, या उसमें हिस्सा ले रहे हैं. जैसा कि उन्होंने उन लोगों के लिए किया था, जिनकी अमेरिका में मौत हुई थी. 2021 की सर्दियों में भी वे इस तकलीफ से गुजरे थे, क्योंकि तब अमेरिकी शहर भी कोविड-19 की गिरफ्त में थे.

भूषण याद करते हैं, कि डायटन, ओहायो में उनके एक करीबी की कोविड-19 से मृत्यु हो गई थी.

“मुकुल को मैं पहले से जानता था. उन्होंने मेरी कजिन से शादी की, उससे भी पहले से. मैं उन्हें तब से जानता था, जब मैं टीन एजर था. मुझे सब कुछ याद है, उनकी शादी, उनकी बेटी का जन्म, कितनी सारी यादें हैं. वह 70 के दशक में इंडियन विलेज में काम करते थे. डॉ. मुकुल चंद्रा एक कम्युनिटी हेल्थ स्पेशलिस्ट थे और अमेरिका की मेडिकल कम्युनिटी उनकी मौत से बहुत दुखी है. कोविड प्रभावित होने के बाद लंग फेल्योर से उनकी मृत्यु हुई.”
अभय भूषण
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वायरस भारतीय अमेरिकियों के लिए धीमा नहीं पड़ा है

लगभग हर भारतीय अमेरिकी ने पिछले कुछ हफ्तों में भारत में अपने किसी दोस्त, या परिवार के सदस्य या रिश्तेदार को खोया है. हर फोन कॉल या टेक्स्ट उन्हें एंग्जाइटी से भर देता है. बहुतों ने अपने प्रिय लोगों के लिए दिन-दिन भर ऑक्सीजन सिलिंडरों को ऑनलाइन सर्च किया है, अस्पताल में बेड्स की तलाश की है. कइयों ने पैसे जमा किए हैं, मेडिकल सप्लाई जुटाई है.

पहले अमेरिका और अब भारत में कोविड की लहर से टकराते हुए उन्होंने यह भी देखा है कि दोनों देशों में पब्लिक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर कितना फर्क है.

कैलिफोर्निया में रहने वाले संजीव सहाय के ब्रदर इन लॉ दिसंबर 2020 में सैन फ्रांसिस्को बे एरिया अस्पताल की इंटेंसिव केयर यूनिट में भर्ती थे. आखिर में वह कोविड से अपनी जंग हार गए.

संजीव सिलिकॉन वैली में टेक एंटरप्रेन्योर हैं. पिछले कुछ हफ्तों में दिल्ली में इस जानलेवा वायरस से उनके तीन रिश्तेदारों की जान गई है.

“जब यह लहर शुरू हुई तो दिल्ली में एक दिन में मेरे परिवार के दो सदस्यों की मौत हुई, फिर तीसरे की. जब इसने डरावना रूप अख्तियार किया था. उनमें से एक रिटायर्ड सीनियर सरकारी अधिकारी थे जिन्हें समय पर ऑक्सीजन या अस्पताल नहीं मिला. मेरा कजिन उन्हें एक से दूसरे अस्पताल लेकर गया. स्वास्थ्य सेवा कितनी अच्छी है, उससे बहुत फर्क पड़ सकता है. अमेरिका में फील्ड अस्पताल बनाए गए, जब भी शहरों को उनकी जरूरत पड़ी. भारत के लिए भी, कौन सोच सकता है कि लोग ऑक्सीजन की कमी की वजह से मर जाएंगे. भारत का ऑक्सीजन उत्पादन तो काफी है.”
संजीव सहाय

हालात पर भरोसा नहीं होता

भारतीय अमेरिकी पढ़ा-लिखा और उच्च आय वाला प्रवासी समुदाय है. इनमें से बहुत से ऐसे हैं जो पेशेवर मौकों का फायदा उठाकर, अपनी मर्जी से अमेरिका आए हैं लेकिन फिर भी अपने दिल में स्वदेश को बसाए हुए हैं. उनके देश ने जिस तरह एक वायरस के आगे घुटने टेक दिए हैं, उसे देखकर वे एक तरफ परेशान होते हैं तो दूसरी तरफ गुस्से से भर जाते हैं.

संजीव कहते हैं, “दोनों देशों में फर्क इस बात का है कि यहां लोगों की पहुंच हेल्थ केयर तक है जोकि आपकी जान बचाती है. यहां (सांटा क्लारा काउंटी, कैलिफोर्निया) में गाइडेंस एकदम साफ तरीके से दिया गए थे. डेटा पब्लिश किए गए थे और आप डेटा पर विश्वास कर सकते थे. गलत आंकड़े नहीं दिए जा रहे थे. भारत में सरकारी आंकड़े सच्चाई से कोसों दूर हैं. जो सब हो रहा है, उस पर आप कैसे भरोसा कर सकते हैं?”

वह कहते हैं, “मैं (भारत) सरकार पर कोई टिप्पणी करूं, यह जायज नहीं, क्योंकि मैं वहां नहीं रहता. लेकिन अपनी राय रखने का मुझे पूरा हक है.”

बेबस और परिवार से दूर

देसी लोग अमेरिका में उम्मीद और भारत में हताशा, दोनों के शिकार हैं. खुशियों और जोश से भरे सोशल मीडिया ग्रुप्स उन्हें भारत में रहने वाले उनके प्रियजनों से जोड़ते हैं लेकिन वहां मौत का सन्नाटा पसरा होता है. खिलखिलाहट दुआओं के दर्द में बदल जाती है.

सोनिया भानोट कैलिफोर्निया की फॉस्टर सिटी में रहती हैं. इस बसंत में वह दिल्ली अपनी मां और बहनों से मिलने आने वाली थीं. उनका वैक्सीनेशन पूरा हो गया था, और इतना लंबा सफर करने के लिए पूरी तरह तैयार थीं. लेकिन भारत में हालात देखकर उन्हें अपना सफर रद्द करना पड़ा.

“पिछले साल मेरे बहनोई की मौत के बाद मैं अपनी बहन से नहीं मिली थी. मुझे उससे मिलने की उम्मीद थी. दिल्ली में मेरे कई फैमिली मेंबर्स और करीबी दोस्तों को कोविड हो गया. हमारे लिए कोविड खत्म ही नहीं हो रहा. पहले यहां, फिर वहां. मैं अपना मास्क नहीं हटा रही, हालांकि दूसरों ने मास्क हटा दिया है.”

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देसी लोग अपना मास्क जल्दी उतारने वाले नहीं

अमेरिका के लगभग एक तिहाई स्टेट्स में अब मास्क लगाना जरूरी नहीं. लेकिन आम राय यही है कि अभी सावधान रहना चाहिए, और अपने मास्क नहीं हटाने चाहिए.

सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में एक मशहूर सलों की मालकिन शिल्पी गोयल का वैक्सीनेशन पूरा हो चुका है. लेकिन वह सावधानी बरत रही हैं. कोविड-19 टेस्ट कराती रहती हैं और काम पर मास्क पहने रहती हैं.

“मैं अब भी छह लेयर वाला मास्क पहनती हूं. मुझे समझ नहीं आता कि लोगों ने मास्क लगाना क्यों छोड़ दिया है, जब वायरस अब भी मौजूद है.” वह कहती हैं.

हालांकि जनवरी-फरवरी 2021 के बाद अमेरिका में संक्रमण की दर में गिरावट आ गई थी, लेकिन भारत के दूसरी लहर के चपेट में आने और हाहाकार मचने के चलते भारतीय अमेरिकी अब भी परेशान हैं.

अमेरिका में दूसरे लोग मास्क उतार रहे हैं और घरों के अंदर एक दूसरे से मिल रहे हैं, पर ऐसा नहीं लगता कि देसी लोग मास्क का पीछा इतनी आसानी से छोड़ेंगे. वे लोग तो अपने 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को जल्द से जल्द वैक्सीन लगवाने की चिंता कर रहे हैं.

भूषण के कई रिश्तेदार अमेरिका में रहते हैं. वे लोग इन गर्मियों में शिकागो में मिलने की योजना बना रहे हैं. “हम लोग मिलेंगे और उन लोगों को याद करेंगे जिन्हें हमने इस साल खो दिया है.” वह उदास होकर कहते हैं.

भारतीय अमेरिकी फिर खुलकर सांस लें, इसमें अभी और वक्त लगेगा- और यह वक्त मुश्किलों भरा होगा.

(सविता पटेल एक सीनियर जर्नलिस्ट और प्रोड्यूसर हैं. उन्होंने डीडी पर आने वाले कार्यक्रमों ‘वर्ल्ड व्यू इंडिया’ और ‘एक्रॉस सेवेन सीज’ को प्रोड्यूस किया है. वह कैलिफोर्निया से वॉयस ऑफ अमेरिका टीवी के लिए स्टोरीज भी कवर कर चुकी हैं. वह फिलहाल सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में रहती हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @SsavitaPatel है. इस लेख में व्यक्त विचार लेखिका के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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